क्या आप जानते हैं हर साल उत्तर प्रदेश में बाढ़ की मार क्यों बढ़ती जा रही है?

नदियाँ
25-09-2025 09:18 AM
क्या आप जानते हैं हर साल उत्तर प्रदेश में बाढ़ की मार क्यों बढ़ती जा रही है?

मेरठवासियों,क्या आपने भी कभी बरसात के मौसम में खबरों में ये सुना है कि "हमीरपुर, प्रयागराज या वाराणसी के सैकड़ों गाँव जलमग्न हो गए"? क्या आपने कभी यह सोचा है कि आज जब विज्ञान और तकनीक इतनी आगे बढ़ चुकी है, तब भी हर साल उत्तर प्रदेश के दर्जनों ज़िले बाढ़ की मार क्यों झेलते हैं? गंगा, यमुना, शारदा और घाघरा जैसी जीवनदायिनी नदियाँ, जो हमारी आस्था और कृषि की रीढ़ रही हैं, अब मानसून में जब अपना रौद्र रूप दिखाती हैं, तो वे खेतों, घरों और सपनों को लील लेती हैं। यह सिर्फ कुदरत का क्रोध नहीं है - बल्कि इसमें हमारी लापरवाहियों, अनियंत्रित शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन की गहरी छाया भी है। मेरठ भले ही उन जिलों में नहीं आता जो हर साल सीधे तौर पर बाढ़ से प्रभावित होते हैं, लेकिन क्या हम इससे अछूते हैं? बिलकुल नहीं। जब राज्य के दूसरे हिस्सों में फसलें डूबती हैं, सड़कों का संपर्क टूटता है, और सैकड़ों परिवार अपने घरों से उजड़ते हैं - तो उसकी आर्थिक और मानवीय गूंज मेरठ तक भी पहुँचती है।
इस लेख में हम उत्तर प्रदेश की बाढ़ समस्या को व्यापक पहलुओं में समझने की कोशिश करेंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि नदियाँ हमारे पारिस्थितिक तंत्र में क्या भूमिका निभाती हैं और बाढ़ वास्तव में क्या होती है। इसके बाद, हम उन जिलों की पहचान करेंगे जो हर साल इस आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं और किन आँकड़ों से इस संकट की गंभीरता का आकलन किया जा सकता है। आगे हम जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming), और बारिश-बर्फबारी के बदलते पैटर्न (pattern) के कारणों पर बात करेंगे, जिनकी वजह से बाढ़ अब अधिक तीव्र और अनियंत्रित हो गई है। इसके साथ ही हम विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के उन जिलों का विश्लेषण करेंगे जहाँ बाढ़ सबसे गंभीर रूप में सामने आती है। अंत में, हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि वर्तमान समय में कौन-से आधुनिक समाधान और नीतियाँ अपनाकर इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।

नदियों की पारिस्थितिक भूमिका और बाढ़ की परिभाषा
नदियाँ केवल जल की धाराएं नहीं होतीं, वे जीवनदायिनी शक्ति हैं, जो हमारी कृषि, संस्कृति और आस्था की नींव रखती हैं। उत्तर प्रदेश में गंगा, यमुना, शारदा जैसी नदियाँ न केवल खेती के लिए पानी का स्रोत हैं, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत पवित्र मानी जाती हैं। ये नदियाँ लाखों लोगों के दैनिक जीवन से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई हैं - चाहे वह काशी के घाटों पर सुबह की आरती हो या बुंदेलखंड के खेतों की सिंचाई। किंतु जब इनका जलस्तर संतुलन खो देता है, विशेषकर मानसून के महीनों में, तब यही नदियाँ विनाश का रूप ले लेती हैं। बाढ़ एक ऐसी स्थिति है, जब पानी अपने नियत रास्ते को छोड़कर आस-पास की ज़मीन को डुबो देता है। यह डूबाव प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों को क्षति पहुँचाता है, मिट्टी को बहा ले जाता है, और ग्रामीण तथा शहरी जीवन को स्थिर कर देता है। जब तक नदियों के साथ मानवीय संतुलन नहीं साधा जाएगा, तब तक यह पारिस्थितिक वरदान, अभिशाप बनता रहेगा।

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उत्तर प्रदेश में बाढ़ से प्रभावित जिले और वार्षिक आंकड़े
उत्तर प्रदेश देश के सबसे बाढ़ संवेदनशील राज्यों में गिना जाता है। हर वर्ष यहाँ के लगभग 18 जिले बाढ़ की विभीषिका का सामना करते हैं। वर्ष 2023 में हमीरपुर के 114, वाराणसी के 107, प्रयागराज के 96, जालौन के 74और इटावा के 49 गाँव बाढ़ की चपेट में आए। यह केवल एक आँकड़ा नहीं, बल्कि हजारों परिवारों के उजड़ने की कहानी है। सिंचाई विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में औसतन 27 लाख हेक्टेयर (hectare) भूमि बाढ़ से प्रभावित होती है, जिससे 432 करोड़ रुपए तक की वार्षिक क्षति होती है। गंगा, यमुना, चंबल, घाघरा और शारदा नदियाँ वर्षा ऋतु में बार-बार खतरे के निशान को पार कर जाती हैं। इन नदियों के किनारे बसे गाँवों में जनजीवन रुक जाता है, स्कूल बंद हो जाते हैं, फसलें बर्बाद होती हैं और लोग सुरक्षित स्थानों पर पलायन के लिए विवश हो जाते हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि राज्य को बाढ़ के स्थायी समाधान की सख्त ज़रूरत है।

File:Chennai flood water logging near ofice nandanam6.jpg

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से बाढ़ का बढ़ता खतरा
आज जलवायु परिवर्तन कोई दूर की आशंका नहीं, बल्कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक दे चुकी हकीकत है। वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (greenhouse gases) की अत्यधिक वृद्धि के कारण तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे हिमालय के ग्लेशियर (glacier) पिघल रहे हैं और समुद्री तथा नदी जलस्तर बढ़ते जा रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, वातावरण में हर 1°C वृद्धि से हवा में 7% अधिक नमी समा सकती है, जिससे अत्यधिक वर्षा की संभावना बढ़ जाती है। यही कारण है कि आज बाढ़ की घटनाएं पहले की तुलना में अधिक तीव्र और व्यापक हो चुकी हैं। ऑस्ट्रेलिया, पश्चिमी यूरोप, भारत और चीन जैसे देश जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न अतिवृष्टि और बाढ़ से प्रभावित हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। यदि इस दिशा में समय रहते ठोस नीति नहीं बनाई गई, तो ये बाढ़ की घटनाएँ सालाना आपदा बन जाएँगी, और हम केवल राहत शिविरों में असहाय लोगों की भीड़ देखते रहेंगे।

वर्षा और हिमपात के बदलते पैटर्न का बाढ़ पर प्रभाव
पहले वर्षा और हिमपात के मौसम स्पष्ट और नियमित थे, लेकिन अब मौसम विज्ञानियों के अनुसार यह पैटर्न तेजी से बिगड़ रहा है। विशेषकर पर्वतीय और ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बर्फ का गिरना कम हो गया है और बारिश की मात्रा बढ़ गई है। यह परिवर्तन दोहरा खतरा बन गया है। पहले बर्फ धीरे-धीरे पिघलकर नदियों में समाहित होती थी, जिससे जलप्रवाह नियंत्रित रहता था। अब बारिश सीधे बर्फ पर गिरती है, जिससे तत्काल और तीव्र अपवाह (Runoff) उत्पन्न होता है और अचानक बाढ़ आती है। यह प्रक्रिया अब अधिक सामान्य होती जा रही है, जिससे न केवल पहाड़ी राज्य, बल्कि उत्तर प्रदेश जैसे मैदानी राज्य भी प्रभावित हो रहे हैं। बारिश और बर्फ का यह खतरनाक मेल अपार जलराशि को एकसाथ नीचे धकेलता है, जिससे नदियाँ रातोंरात उफान पर आ जाती हैं। यह बदलता प्रकृति-चक्र हमारी पारंपरिक बाढ़ पूर्वानुमान पद्धति को भी चुनौती दे रहा है।

File:Chennai flood water logging near ofice nandanam5.jpg

उत्तर प्रदेश के विशेष जिलों में खतरे की स्थिति
बाढ़ की तीव्रता केवल आँकड़ों से नहीं, बल्कि प्रभावित जिलों के हालात से समझी जा सकती है। हमीरपुर, प्रयागराज, वाराणसी, जालौन, इटावा, मिर्जापुर और आगरा जैसे जिले हर साल बाढ़ की चपेट में आते हैं। इन जिलों में बहने वाली शारदा, यमुना, चंबल और गंगा नदियाँ अक्सर खतरे के निशान से ऊपर बहती हैं। वाराणसी और प्रयागराज जैसे तीर्थ नगरों में गंगा और यमुना का उफान न केवल जनजीवन को बाधित करता है, बल्कि काशी विश्वनाथ से लेकर संगम तट तक के धार्मिक आयोजनों को भी ठप कर देता है। गांवों में स्कूल बंद हो जाते हैं, अस्पतालों की पहुँच कट जाती है और बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं ठप्प हो जाती हैं। यही कारण है कि इन जिलों को प्राथमिकता देते हुए दीर्घकालिक बाढ़ प्रबंधन योजनाओं की आवश्यकता है।

संभावित समाधान और बाढ़ प्रबंधन की आधुनिक रणनीतियाँ
बाढ़ से निपटना केवल राहत पैकेज (relief package) और नावों से संभव नहीं है। इसके लिए वैज्ञानिक सोच, पूर्वानुमान तकनीक और स्थानीय भागीदारी की ज़रूरत है। सबसे पहले बांधों, रिटेंशन बेसिन (Retention basin) और बैराज जैसी संरचनाओं का निर्माण करके जल प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है। नदियों के किनारे मजबूत तटबंध बनाकर उनके विस्तार को सीमित किया जा सकता है। वृक्षारोपण से वर्षा जल का अवशोषण बढ़ता है और मृदा कटाव रुकता है। इसके साथ-साथ फ्लड फोरकास्टिंग सिस्टम (flood forecasting system), रेन वॉटर हार्वेस्टिंग (rain water harvesting), और समुदाय-आधारित चेतावनी प्रणाली जैसे आधुनिक उपाय भी अपनाने चाहिए। स्थानीय ग्रामीणों को जागरूक करना, स्कूलों में आपदा शिक्षा देना और तकनीक से जुड़े डैशबोर्ड्स का विकास करना भी एक अहम कदम होगा। बाढ़ की आपदा को हम तभी नियंत्रित कर सकते हैं, जब इसे केवल संकट नहीं, बल्कि साझा जिम्मेदारी मानकर समग्र समाधान की दिशा में काम करें।

संदर्भ-  
https://shorturl.at/VGfmW 

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