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नमस्कार मेरठवासियों, आज जब हमारी गलियों में ठंडी हवाओं के साथ एक खास सुबह धीरे से उतरती है तब यह दिन केवल कैलेंडर की एक तारीख नहीं रह जाता, बल्कि उस आदर्श की याद बनकर सामने आता है जिसने समाज की बुनियाद को नई दिशा दी। ऐसी सुबहें हमें ठहरकर यह सोचने का अवसर देती हैं कि हमारा मेरठ किन मूल्यों पर टिका है और हम इसे आगे किस रूप में देखते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन मेरठ की इसी विविधता और मिलजुलकर रहने की परंपरा से गहरा मेल खाता है क्योंकि वे हमेशा इंसानियत, समानता और साहस को जीवन का असली आधार मानते थे। उनकी शिक्षाएं हमें यह समझाती हैं कि एक समाज तब मजबूत बनता है जब उसके लोग एक दूसरे की गरिमा को पहचानते हैं, संवाद को महत्व देते हैं और हर परिस्थिति में इंसाफ और सम्मान को प्राथमिकता देते हैं। यही वजह है कि यह जयंती हमें अपने भीतर झाँककर यह तय करने का मौका देती है कि हम अपने व्यवहार में किन मूल्यों को और दृढ़ करें ताकि हमारा मेरठ हर नागरिक के लिए सुरक्षित, न्यायपूर्ण और आत्मीयता से भरा हुआ घर बन सके।
यह जयंती सिख दर्शन की उस निरंतर परंपरा को समझने का अवसर भी देती है जिसमें सत्य, परिश्रम और साझा उत्तरदायित्व को जीवन का आधार माना गया है। गुरु नानक के विचारों से लेकर गुरु गोबिंद सिंह के साहस और अनुशासन तक, यह परंपरा सामाजिक न्याय और नैतिक नागरिकता की ओर मार्गदर्शन करती है। इस दृष्टि से यह पर्व केवल ऐतिहासिक नहीं बल्कि आज के सामाजिक ढाँचे के लिए भी अत्यंत प्रासंगिक बन जाता है।
आज हम जानेंगे कि गुरु गोबिंद सिंह जी कौन थे और उनकी जयंती किस भावना के साथ मनाई जाती है। हम उनकी प्रमुख शिक्षाओं और खालसा की स्थापना के महत्व को समझेंगे, फिर यह देखेंगे कि सामाजिक न्याय और संविधान के मूल्यों से उनका संदेश कैसे जुड़ता है और आज हमें क्या सीख देता है।
गुरु गोबिंद सिंह कौन थे और जयंती की तिथि
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना साहिब में हुआ था और वे सिख पंथ के दसवें गुरु थे। उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी के शौर्य और बलिदान ने उनके जीवन में स्वतंत्रता और धार्मिक सहिष्णुता के संघर्ष को परिभाषित किया। गुरु जी ने 1699 में खालसा की स्थापना की जो समानता अनुशासन और साहस का प्रतीक बना। जयंती पारंपरिक पंचांग के अनुसार पौष महीने की शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को मनाई जाती है और अलग सालों में इसका ग्रेगोरियन (Gregorian) तारीख बदल सकता है पर 2025 में यह पर्व 27 दिसंबर को मनाया जायेगा। 
गुरु गोबिंद सिंह की प्रमुख शिक्षाएं
गुरु जी ने अपनी शिक्षाओं में हमेशा मानवीय गरिमा पर जोर दिया। वे जाति धर्म या सामाजिक पद के आधार पर भेदभाव के खिलाफ रहे और उन्होंने हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिलने की बात कही। खालसा की स्थापना ने सामूहिक अनुशासन और सेवा के विचार को बल दिया जिससे समाज में एक सकारात्मक सामाजिक पहचान बन सकी। गुरु जी ने सत्य के लिए संघर्ष करने और अन्याय के विरुद्ध खड़े होने का साहस सिखाया जो आज के समय में सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के अर्थ को दोहराता है।
इतिहास और सामाजिक प्रभाव
इतिहास में गुरु गोबिंद सिंह जी का योगदान केवल धार्मिक नेतृत्व तक सीमित नहीं रहा। वे एक कवि और दार्शनिक भी थे जिनकी वाणी और लेखनी में नैतिकता और साहस के संदेश मिलते हैं। खालसा की स्थापना ने उस समय की सामाजिक संरचना को चुनौती दी और लोगों को एकजुट होकर अन्याय का विरोध करने के नए रूप दिए। यह पहल आज भी तब महत्वपूर्ण लगती है जब हम समाज में असमानता और अन्याय के खिलाफ सक्रिय नागरिकता की बात करते हैं।

गुरु गोबिंद सिंह जयंती का अर्थ और इसकी प्रेरणा
मेरठ एक बहुसांस्कृतिक शहर है जहाँ विभिन्न समुदाय एक साथ रहते हैं और यही विविधता इसे समृद्ध बनाती है। गुरु गोबिंद सिंह जयंती ऐसे संदेश को पुष्ट करती है कि भिन्नताओं के बावजूद इंसानियत और न्याय को प्राथमिकता देनी चाहिए। इस दिन गुरुद्वारों में कीर्तन अरदास और लंगर आयोजित होते हैं और समुदायिक मेल जोल से लोगों में एकता की भावना बढ़ती है। मेरठ में स्कूल और सामाजिक संस्थान इस दिन को शिक्षा और समझ के अवसर के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं ताकि युवा पीढ़ी साहस समानता और सेवा के मूल्यों को अपनाए।
जयंती मनाने के अर्थ और उसके तरीके
मेरठ में जयंती को पारंपरिक रीति से मनाने के साथ साथ इसे स्थानीय संवेदनशीलता और सहअस्तित्व को प्रोत्साहित करने के अवसर के रूप में भी देखा जा सकता है। गुरुद्वारों में सामूहिक कीर्तन और लंगर के साथ ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं जहाँ अलग अलग समुदाय मिलकर सेवा करें और संवाद करें। विद्यालयों में गुरु जी के जीवन पर नाट्य पाठक कार्यक्रम और चर्चा सत्र कराए जा सकते हैं जिससे युवा न केवल इतिहास जानें बल्कि आज के सामाजिक संदर्भ में उनसे क्या सीख मिलती है यह भी समझें। रामबेनच चौराहों पर छोटे संवाद सत्र आयोजित करके शहर के नागरिकों को एक दूसरे के अनुभव सुनने का अवसर दिया जा सकता है ताकि आपसी समझ और सम्मान बढ़े।
आज की चुनौतियों में गुरु जी की सीख का असली अर्थ
आज, जब सामाजिक असमानता और विभाजन की चुनौतियाँ मौजूद हैं, तब गुरु जी का संदेश हमें यह याद दिलाता है कि बदलाव नेता बनाने या नारों से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत व्यवहार और समुदायगत प्रयासों से आता है। यदि हर नागरिक अपने आस पास किसी की गरिमा की रक्षा करता है अन्याय के खिलाफ बोलता है और सार्वजनिक सेवा को अपनाता है तो छोटे छोटे बदलाव मिलकर बड़े परिणाम दे सकते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/55a987md
https://tinyurl.com/a6smf6et
https://tinyurl.com/2baazwcm
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