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रामपुर की पुरानी हवेलियाँ, तंग गलियाँ और नवाबी रिवायतें अपने भीतर तस्वीरों से भरा एक लंबा इतिहास समेटे हुए हैं। जब 19वीं सदी में कैमरा पहली बार भारत पहुँचा, उसी समय इस शहर ने भी लेंस (lens) के ज़रिए अपने अतीत को सहेजना शुरू किया। किले की ऊँची दीवारें, इमामबाड़े की नफ़ासत और चौक-बाज़ार की चहल-पहल, सब कुछ तस्वीरों में ढलकर एक दस्तावेज़ बनते चले गए। इन तस्वीरों ने केवल इमारतों को ही नहीं, बल्कि उस दौर की संस्कृति, रिवाज़ और जीवन की कहानियों को भी हमेशा के लिए थाम लिया। रामपुर का हर कोना उस वक़्त के फ़ोटोग्राफ़रों के लिए एक जीवित कैनवास था, जहाँ समय को रोककर रखा जा सकता था। आज जब 19 अगस्त को ‘विश्व फोटोग्राफी दिवस’ (World Photography Day) मनाया जाता है, तो यह शहर अपनी उसी परंपरा को याद करता है। पुराने एल्बमों की पीली पड़ चुकी तस्वीरें और आज के आधुनिक स्टूडियो - दोनों मिलकर इस सफ़र की गवाही देते हैं। रामपुर ने फोटोग्राफी के हर दौर को महसूस किया है और हर तस्वीर के ज़रिए अपनी पहचान को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाया है।
इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि 19वीं सदी में भारत में फोटोग्राफी का आगमन और विकास कैसे हुआ। फिर, हम रामपुर की शुरुआती तस्वीरों और यहाँ की स्थानीय फोटोग्राफी की यात्रा को देखेंगे। इसके बाद, भारतीय फोटोग्राफी में रघु राय के योगदान को समझेंगे और अंत में, स्मार्टफोन (smartphone) युग में फोटोग्राफी के बदलते स्वरूप की चर्चा करेंगे।
19वीं सदी में भारत में फोटोग्राफी का आगमन और विकास
1839 में फ्रांस में जब डगरोटाइप (daguerreotype) प्रक्रिया का आविष्कार हुआ तो किसी ने शायद ही सोचा होगा कि यह तकनीक आने वाले समय में दुनिया भर की संस्कृतियों और सभ्यताओं का चेहरा बदल देगी। यूरोप से निकलकर यह नई कला 1840 तक भारत पहुँची और सबसे पहले कलकत्ता व बॉम्बे जैसे बड़े शहरों में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ। उस दौर में फोटोग्राफी सिर्फ़ तस्वीर खींचने का जरिया नहीं थी, बल्कि यह इतिहास को संजोने और लोगों के जीवन, उनकी भावनाओं, रीति-रिवाजों और परिवेश को दर्ज करने का एक जादुई माध्यम बन गई। यूरोपीय फोटोग्राफ़र बड़े-बड़े कैमरे लेकर भारत आए और यहाँ के महलों, किलों, मंदिरों, गलियों, खेतों और प्राकृतिक दृश्यों को अपने लेंस में कैद करने लगे। उन शुरुआती तस्वीरों ने दुनिया को भारत की विविधता और गहराई से अवगत कराया। धीरे-धीरे यह कला सीमित दायरे से निकलकर और व्यापक हो गई। 19वीं सदी के दूसरे हिस्से में जब भारत के अलग-अलग शहरों में पेशेवर फोटोग्राफी स्टूडियो खुलने लगे तो आम लोग भी इस नई कला से जुड़ने लगे। यह समय फोटोग्राफी के लिए सुनहरा युग कहा जा सकता है, जिसने भारत की स्मृतियों को हमेशा के लिए कैद कर दिया।
रामपुर की शुरुआती तस्वीरें और स्थानीय फोटोग्राफी का सफ़र
रामपुर जैसे तहज़ीब और नवाबी रंग वाले शहर ने भी फोटोग्राफी के इस जादू को बहुत जल्दी अपना लिया। 1905 के आसपास की जो तस्वीरें आज भी संग्रहालयों में सुरक्षित हैं, वे हमें उस दौर के रामपुर की एक जीवंत झलक दिखाती हैं। इनमें किले की विशालता, इमामबाड़े की शाही भव्यता, गलियों में बिखरी संस्कृति और धार्मिक आयोजनों का अद्भुत दृश्य दर्ज है। इन तस्वीरों को देखकर ऐसा लगता है मानो वक्त रुक गया हो और हम उस दौर में लौट गए हों। यह वही समय था जब शहर की आत्मा को कैमरे की नज़र से समझने की परंपरा शुरू हुई। इसके बाद धीरे-धीरे स्थानीय फोटोग्राफरों ने भी इस कला को सीखा और अपने स्टूडियो खोले। ए.एच. स्टूडियो, पंजाबी स्टूडियो और मन्नत स्टूडियो जैसे नाम आज भी इस परंपरा की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। इन स्टूडियो ने न केवल फोटोग्राफी को जीवित रखा, बल्कि नई पीढ़ी को भी यह सिखाया कि तस्वीरें केवल फोटो नहीं होतीं, बल्कि यादें होती हैं जो पीढ़ियों तक हमारे साथ रहती हैं।
भारतीय फोटोग्राफी में रघु राय का योगदान
अगर भारतीय फोटोग्राफी की दुनिया में किसी एक नाम को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का श्रेय दिया जाए तो वह रघु राय का होगा। 1971 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया और यह उस समय किसी भी भारतीय फोटोग्राफर के लिए सबसे बड़ा गौरव था। रघु राय ने अपने कैमरे के ज़रिए इतिहास की कई बड़ी घटनाओं और शख्सियतों को हमेशा के लिए अमर कर दिया। बांग्लादेश युद्ध की त्रासदी, शरणार्थियों का संघर्ष, भोपाल गैस त्रासदी की पीड़ा, मदर टेरेसा के मानवीय चेहरे की कोमलता, दलाई लामा की शांति भरी मुस्कान और ताजमहल जैसे धरोहर की अनकही कहानियाँ, इन सबको उन्होंने अपनी तस्वीरों में जीवंत कर दिया। उनकी तस्वीरें तकनीक से ज़्यादा मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित होती हैं। वे हमेशा कहते हैं कि फोटोग्राफी केवल क्लिक (click) करने की क्रिया नहीं, बल्कि धैर्य, संवेदनशीलता और सच्चाई से देखने का नाम है। उनकी तस्वीरें हमें यह अहसास कराती हैं कि एक कैमरा तब ही सार्थक है जब वह दिल और दिमाग दोनों से सोचकर किसी पल को पकड़ता है।
स्मार्टफोन युग और फोटोग्राफी का बदलता स्वरूप
21वीं सदी में तकनीक ने फोटोग्राफी की दुनिया को पूरी तरह बदल दिया है। जहाँ पहले तस्वीर खींचने के लिए कैमरे का इंतज़ार करना पड़ता था, अब स्मार्टफोन ने इस काम को बेहद आसान बना दिया है। उच्च गुणवत्ता वाले लेंस और आधुनिक फीचर्स (features) ने स्मार्टफोन को ऐसा साधन बना दिया है जिससे हर कोई फोटोग्राफर बन सकता है। आज आम लोग रोज़मर्रा के छोटे-बड़े पलों को तुरंत अपने फोन में कैद कर लेते हैं। इससे न केवल यादें बनती हैं, बल्कि हर किसी को अपनी रचनात्मकता को व्यक्त करने का मौका भी मिलता है। हालाँकि पेशेवर फोटोग्राफर अब भी बड़े और उन्नत कैमरों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन स्मार्टफोन ने तस्वीर लेने के मायने बदल दिए हैं। अब फोटोग्राफी केवल कुछ खास लोगों की कला नहीं रही, बल्कि यह जीवन के हर छोटे-बड़े अनुभव का हिस्सा बन चुकी है। शादी-ब्याह, सफ़र, दोस्ती, त्योहार या बस एक साधारण दिन - हर चीज़ स्मार्टफोन के कैमरे में कैद हो रही है। यह बदलाव इस बात का संकेत है कि फोटोग्राफी अब सिर्फ़ एक कला नहीं, बल्कि हर इंसान की रोज़मर्रा की ज़िंदगी की भाषा बन गई है।
संदर्भ-
https://short-link.me/1a4Oz
https://short-link.me/15I4I
https://short-link.me/15I4L
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