रामपुरवासियों, क्या आप जानते हैं कुछ लोग मच्छरों को ज़्यादा क्यों करते हैं आकर्षित?

तितलियाँ व कीड़े
21-08-2025 09:26 AM
रामपुरवासियों, क्या आप जानते हैं कुछ लोग मच्छरों को ज़्यादा क्यों करते हैं आकर्षित?

रामपुरवासियों, क्या आपने कभी गौर किया है कि कुछ लोगों को मच्छर ज़्यादा काटते हैं, जबकि बाकी लोग आराम से बैठे रहते हैं? बरसात के इस मौसम में जब रामपुर के कई इलाकों में मच्छरों की तादाद अचानक बढ़ जाती है, तब यह सवाल और भी ज़रूरी हो जाता है। कोई हर रात मच्छरों से परेशान रहता है, तो कोई बिल्कुल अछूता, आखिर ऐसा क्यों? क्या यह सिर्फ़ इत्तेफाक है, या इसके पीछे कोई गहरी वैज्ञानिक वजह है? आइए जानें कि मच्छर किन कारणों से किसी खास व्यक्ति की ओर खिंचे चले आते हैं, और यह हमारे खून के समूह, शरीर की गंध, गर्मी और यहाँ तक कि हमारी त्वचा पर मौजूद बैक्टीरिया (bacteria) पर भी निर्भर करता है। आज हम जानेंगे कि मच्छर किन कारणों से मनुष्यों की ओर आकर्षित होते हैं। फिर, हम यह समझेंगे कि किस रक्त समूह वाले लोग मच्छरों के लिए सबसे ज़्यादा आकर्षक होते हैं और क्यों। इसके बाद हम बात करेंगे मलेरिया जैसी गंभीर बीमारियों की, जो मच्छरों के माध्यम से फैलती हैं, और देखेंगे कि भारत ने इस दिशा में क्या प्रगति की है। अंत में, हम जानेंगे कि जीन-एडिटिंग (gene-editing) तकनीक की मदद से भविष्य में मच्छरों को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।

मच्छर किन कारणों से मनुष्यों की ओर आकर्षित होते हैं
क्या आपने कभी गौर किया है कि जब आप किसी पार्क या खुले स्थान में बैठते हैं, तो कुछ लोगों के चारों ओर मच्छरों की भीड़ लग जाती है, जबकि बाकी लोग बिना काटे बच जाते हैं? यह केवल किस्मत का मामला नहीं है। मच्छर बहुत ही विशिष्ट कारणों से किसी व्यक्ति को काटते हैं। मादा मच्छर को अपने अंडों के विकास के लिए प्रोटीन (protein) की ज़रूरत होती है, जो उसे केवल खून से मिलता है। वह इस खून के लिए कुछ प्राकृतिक संकेतों की मदद से अपने “शिकार” को चुनती है। शरीर से निकलने वाली गर्मी, पसीना, और साँस से छोड़ी गई कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide), ये सब मच्छरों के लिए संकेत होते हैं कि आसपास कोई जीवित प्राणी है। पसीने में मौजूद लैक्टिक एसिड (lactic acid) मच्छरों के लिए विशेष रूप से आकर्षक होता है। इसके अलावा, कुछ लोगों की त्वचा पर विशेष प्रकार के बैक्टीरिया की उपस्थिति और उनकी गंध मच्छरों को ज़्यादा आकर्षित करती है। जिन लोगों की मेटाबोलिक रेट (metabolic rate) तेज़ होती है, यानी जिनका शरीर ऊर्जा को तेजी से जलाता है, वे भी मच्छरों के लिए अधिक आकर्षक माने जाते हैं। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि मच्छर विज्ञान की बारीकियों के आधार पर अपना लक्ष्य चुनते हैं।

कौन सा रक्त समूह करता है, मच्छरों को सबसे अधिक आकर्षित
मच्छरों की पसंद भी काफी हद तक हमारे खून के प्रकार यानी "ब्लड ग्रुप" (blood group) पर निर्भर करती है। कई वैज्ञानिक अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि O रक्त समूह वाले लोग मच्छरों को सबसे ज़्यादा आकर्षित करते हैं। एक प्रसिद्ध जापानी अध्ययन के अनुसार, O ब्लड ग्रुप वाले व्यक्तियों को मच्छर A, B और AB ब्लड ग्रुप वालों की तुलना में लगभग दोगुना अधिक काटते हैं। इसका कारण यह है कि O रक्त समूह में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो त्वचा पर विशेष प्रकार के संकेत छोड़ते हैं, जिन्हें मच्छर आसानी से पहचान लेते हैं। इसके विपरीत, AB ब्लड ग्रुप वाले लोगों को सबसे कम काटा जाता है। A और B ब्लड ग्रुप वाले लोग इन दोनों के बीच आते हैं, न ज़्यादा आकर्षक और न ही पूरी तरह सुरक्षित। यह भी देखा गया है कि कुछ लोगों के डीएनए (DNA) इस तरह के होते हैं कि उनके शरीर से लैक्टिक एसिड और अमोनिया (ammonia) जैसे रसायन अधिक निकलते हैं, जो मच्छरों को संकेत देते हैं कि यह "उपयुक्त शिकार" है। इस तरह, आपका ब्लड ग्रुप भी आपके मच्छरों से रिश्ते की कहानी का एक अहम हिस्सा है।

मलेरिया का कारण और भारत में इसके मामले
मलेरिया एक ऐसी बीमारी है जो मच्छरों की एक खास प्रजाति, मादा एनोफिलीज़ (Anopheles) द्वारा फैलती है। यह मच्छर जब किसी संक्रमित व्यक्ति को काटता है, तो उसके खून में मौजूद प्लाज्मोडियम (Plasmodium) नामक परजीवी को अपने शरीर में ले लेता है। जब वही मच्छर किसी अन्य व्यक्ति को काटता है, तो यह परजीवी उसके शरीर में पहुंच जाता है और वहाँ तेजी से फैलने लगता है, जिससे बुखार, कंपकंपी और कभी-कभी जानलेवा स्थितियाँ पैदा हो जाती हैं। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहां कई इलाकों में जल-जमाव और साफ-सफाई की कमी है, मलेरिया जैसी बीमारियाँ दशकों से एक चुनौती रही हैं। वर्ष 2000 में भारत में मलेरिया से लगभग 29,500 मौतें हुई थीं। लेकिन सरकार, वैज्ञानिकों और स्वास्थ्यकर्मियों की लगातार मेहनत से 2022 तक यह संख्या घटकर लगभग 7,700 रह गई है। भारत अब वैश्विक स्तर पर मलेरिया के 3% मामलों का ही प्रतिनिधित्व करता है, जो एक बड़ी उपलब्धि है।

मलेरिया उन्मूलन में भारत की प्रगति और चुनौतियाँ
भारत सरकार ने यह लक्ष्य तय किया है कि वह 2027 तक मलेरिया-मुक्त राष्ट्र बन जाए और 2030 तक इसका पूर्ण उन्मूलन कर ले। इस दिशा में अब तक कई ठोस कदम उठाए गए हैं। उदाहरण के लिए, कीटनाशक-उपचारित मच्छरदानियों का वितरण, घर-घर स्प्रे (spray) अभियान, और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ्त जांच और उपचार सुविधाएं, इन सभी ने मिलकर मलेरिया के मामलों में काफी गिरावट लाई है। 2016 से 2018 के बीच मलेरिया के मामलों में 24% और 28% की गिरावट दर्ज की गई, जो यह दिखाता है कि भारत मलेरिया नियंत्रण की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी भारत की इस प्रगति की सराहना की है। हालांकि, कोविड-19 (Covid-19) महामारी के समय इन प्रयासों में थोड़ी बाधा ज़रूर आई, जैसे कई क्षेत्रों में मच्छरदानी वितरण रुक गया और स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ा। इसके बावजूद, आर्टीमिसिनिन-आधारित (Artemisinin-based) संयोजन उपचार (ACT) जैसे आधुनिक इलाज ने बीमारी की गंभीरता को कम करने में अहम भूमिका निभाई है।

जीन-एडिटिंग तकनीक से मच्छरों पर नियंत्रण का भविष्य
भविष्य में मच्छरों को नियंत्रित करने का तरीका केवल दवाओं या मच्छरदानी तक सीमित नहीं रहेगा, अब वैज्ञानिक उनकी जैविक संरचना में ही बदलाव करने की दिशा में काम कर रहे हैं। जीन-एडिटिंग, विशेष रूप से CRISPR जैसी तकनीकों की मदद से मादा मच्छरों की प्रजनन क्षमता को नियंत्रित किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने ऐसे जेनेटिक कोड विकसित किए हैं जो मच्छरों को कमज़ोर या बांझ बना देते हैं, जिससे उनकी संख्या अपने आप घटने लगती है। कुछ प्रयोगों में तो वैज्ञानिकों ने ऐसे मच्छर भी विकसित किए हैं जो प्लाज्मोडियम परजीवी को अपने शरीर में पनपने ही नहीं देते, यानी वे मलेरिया फैलाने की क्षमता ही खो बैठते हैं। यदि ये प्रयोग बड़े पैमाने पर सफल होते हैं, तो हम आने वाले वर्षों में मच्छर-जनित बीमारियों से लगभग पूरी तरह छुटकारा पा सकते हैं। हालांकि यह तकनीक अभी प्रारंभिक चरण में है और इसके नैतिक व पर्यावरणीय पक्षों पर चर्चा जारी है, फिर भी यह भविष्य की उम्मीदों को ज़रूर रोशन करती है।

संदर्भ-

https://shorturl.at/tiRto 
https://shorturl.at/Qd4xJ 

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