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पानी की आवश्यकता मानव जीवन की समस्त आवश्यकताओं में सबसे महत्वपूर्ण है यही कारण है की दुनिया भर की सभी मुख्य सभ्यताएं नदियों या जल श्रोतों के किनारे ही बसी हुयी हैं। जौनपुर शहर गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है, यहाँ पर कई तालाब व पोखरे बनाये गए हैं जो जल की व्यवस्था को बरक़रार रखने में व कृषि कार्य में मददगार साबित हुए हैं। वर्तमानकाल में जौनपुर में कुल 647 निजी तालाब हैं और 3585 तालाब उपस्थित हैं जो यहाँ के तालाबों की परंपरा को प्रदर्शित करते हैं। जौनपुर शहर में स्थित राजा तालाब 19विं शताब्दी में बनवाया गया था यह तालाब प्राचीन तालाबों के आधार पर ही बनाया गया है जिसमे सीढियां व एक सपाट रास्ता बनाया गया है। सपाट रास्ता हाथियों व घोड़ों को पानी पीने के लिए बनाया गया था। तालाब के किनारे पर वस्त्र बदलने के स्थान भी बनवाये गए हैं। तालाब में वर्षा में जल भरने के लिए विभिन्न नालियों का इंतज़ाम किया गया था वर्तमान काल में तालाब के किनारे का वट वृक्ष के बगल में ही एक नाली दिखाई दे जाती है। तालाब में जल की स्थिति नापने के लिए एक स्तम्भ भी लगाया गया है जो की यहाँ के जल की स्थिति बताता है। जौनपुर शहर में चौकिया मंदिर में भी ऐसे ही तालाब का निर्माण किया गया है। महाराजगंज थाना क्षेत्र में लोहिंदा चौराहे के समीप भी एक हवेली के पास भी ऐसे ही एक और तालाब का निर्माण किया गया है।
जौनपुर में तालाब बनाने वाले लोगों को पालीवाल कहा जाता है पालीवाल ब्राह्मण थे। जैसलमेर, जोधपुर के पास दसवीं सदी में पल्ली नगर में बसने के कारण ये पल्लीवाल या पालीवाल कहलाए। इन ब्राह्मणों को मरुभूमि में बरसने वाले थोड़े- से पानी को पूरी तरह से रोक लेने का अच्छा कौशल सध गया था। वे खडीन के अच्छे निर्माता थे। मरुभूमि का कोई ऐसा बड़ा टुकड़ा जहां पानी बहकर आता हो, वहां दो या तीन तरफ से मेड़बंदी कर पानी रोक कर विशिष्ट ढंग से तैयार बांधनुमा खेत को खडीन कहा जाता है। खडीन खेत बाद में है, पहले तो तालाब ही है। मरुभूमि में सैकड़ों मन अनाज इन्हीं खडीनों में पैदा किया जाता रहा है। आज भी जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर क्षेत्र में सैकड़ों खडीन खड़ी हैं। लेकिन पानी के काम के अलावा स्वाभिमान भी क्या होता है, इसे पालीवाल ही जानते थे। जैसलमेर में न जाने कितने गांव पालीवालों के थे। राजा से किसी समय विवाद हुआ। बस, रातों-रात पालीवालों के गांव खाली हो गए। एक से एक कीमती, सुन्दर घर, कुएं खडीन सब छोड़कर पालीवाल राज्य से बाहर हो गए। पालीवाल वहां से निकलकर कहां-कहां गए इसका ठीक अंदाज नहीं है पर एक मुख्य धारा आगरा और जौनपुर में जा बसी थी।
इस से यह तथ्य सिद्ध होता है की जौनपुर में पालीवाल लोग आये थे और उन्होंने यहाँ पर अवश्य कई तालाबों आदि का निर्माण किया।
1.आज भी खरे हैं तालाब, अनुपम मिश्र
2.सी डी आई प जौनपुर