1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जौनपुर से जो उठी थीं वीर गाथाएं

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
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1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जौनपुर से जो उठी थीं वीर गाथाएं

1779 के स्थायी बंदोबस्त के आधार पर, जौनपुर ज़िले को ब्रिटिश भारत में मिला लिया गया था। जिसके बाद जौनपुर ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ 1857 के विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाई थी। 1857 के विद्रोह के दौरान, जौनपुर में पंडित बद्रीनाथ तिवारी के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों ने नीभापुर के रेलवे स्टेशन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया। बहादुर पंडित तिवारी जी ने ब्रिटिश अत्याचारों के सामने झुकने से इनकार कर दिया। आइए आज के इस लेख में 1857 के विद्रोह में जौनपुर के शामिल होने के कारण और उसके बाद शहर पर विद्रोह के प्रभाव समझने का प्रयास करते हैं।
जब 1779 के स्थायी बंदोबस्त के आधार पर, जौनपुर ज़िले को ब्रिटिश भारत में मिला लिया गया था, तो इस प्रकार यह भूमि राजस्व संग्रह की जमींदारी प्रणाली के अधीन थी । हालांकि कंपनी के अधिकारियों का संपूर्ण ध्यान जौनपुर के प्रशासनिक मामलों के बजाय भूमि राजस्व पर था। 1818 में जौनपुर ज़िले का गठन भी किया गया, लेकिन 1857 के विद्रोह तक यहां कुछ भी महत्वपूर्ण घटित नहीं हुआ। 1857 के विद्रोह की शुरुआत में, जौनपुर ज़िले में लेफ्टिनेंट मारा के अधीन लुधियाना सिख रेजिमेंट द्वारा राजकोष की रक्षा का कार्य किया जाता था। जब 5 जून को ब्रिटिश सैनिकों द्वारा बनारस की सिख रेजिमेंट पर गोलियां चलाने की खबर जौनपुर पहुंची, तो जौनपुर के सिक्ख सैनिक क्रोधित हो गये। उन्होंने ज्वाइंट मजिस्ट्रेट मिस्टर कुप्पेज को गोली मार दी, कमांडिंग ऑफिसरों पर गोलियां चलाईं, सरकारी खज़ाना लूट लिया और शस्त्रागार में रखे हथियारों को लेकर अवध के लिए रवाना हो गए। 6 जून को, अन्य विद्रोहियों ने एक डिप्टी मजिस्ट्रेट थॉमस ट्रिपलेंट की हत्या कर दी और अदालत को अंग्रेजों से खाली करा लिया। अंततः विद्रोहियों ने ज़िले में यूरोपीय अधिकारियों के बंगले ध्वस्त कर दिये। जौनपुर के ज़िला मजिस्ट्रेट श्री फेन ने विद्रोहियों की गतिविधियों के डर से ज़िले का प्रभार राजा शिव गुलाम दुबे को सौंप दिया और बनारस चले गये। इस प्रकार, जौनपुर ज़िले में कुछ समय के लिए ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया।
जो ज़मींदार पहले अपनी ज़मीन से वंचित हो गए थे, उन्होंने नए ज़मींदारों को उनकी ज़मीन से खदेड़ दिया और उनकी ज़मीन पर कब्जा करना शुरू कर दिया। डोभी तल्लुका के रघुवंशी राजपूतों ने आस-पास के इलाकों पर हमला कर दिया और बनारस आज़मगढ़ मार्ग को बाधित कर दिया। इस मार्ग को खोलने के लिए, कंपनी ने बनारस से मिस्टर चैपमेन के नेतृत्व में एक सेना भेजी और विद्रोहियों को दंडित किया। 8 सितम्बर, 1857 को कर्नल रॉटन के नेतृत्व में जौनपुर में गोरखा सेना को तैनात कर दिया गया, जिसके बाद जौनपुर ज़िले में प्रशासनिक व्यवस्था बहाल हो गयी। लेकिन ज़िले के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों पर अभी भी विद्रोहियों का वर्चस्व था। लेकिन इन दोनों पक्षों का आपस में भी संघर्ष था जिसके कारण विद्रोहियों को हार का सामना करना पड़ा। इन इलाकों के विद्रोही नेताओं, राजा इरादत जहां और फसाहत जहां को पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गई, जबकि अमर सिंह की लड़ाई के दौरान मृत्यु हो गई। इस क्षति के फलस्वरूप जौनपुर क्षेत्र में विद्रोह लगभग समाप्त हो गया। क्या आप जानते हैं कि इसी विद्रोह के दौरान जौनपुर के किले को भी ढहा दिया गया था जिस पर पहले ब्रिटिश सरकार ने अपना कब्ज़ा कर लिया था। जौनपुर का शाही किला, जिसे ‘करार किला’ भी कहा जाता है, 14वीं शताब्दी के दौरान निर्मित एक किला है। यह किला गोमती नदी पर शाही पुल के पास स्थित है। शाही किले का अतीत उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। अपने प्रारंभिक रूप में यह एक टीले पर बना था, उस समय इसे करार किला कहा जाता था। 1376-77 में फिरोज़ शाह तुगलक के सरदार इब्राहिम नायब बारबक द्वारा इसका पुनर्निर्माण कराया गया। फिर, मुगल सम्राट हुमायूं और अकबर के शासनकाल के दौरान बड़े स्तर पर इसका पुनरुद्धार किया गया। जौनपुर से 2.2 किलोमीटर दूर स्थित यह किला शहर के मुख्य पर्यटक आकर्षणों में से एक है। शाही किले का आंतरिक द्वार 26.5 फीट ऊंचा और 16 फीट चौड़ा है, जबकि केंद्रीय द्वार 36 फीट ऊंचा है। शीर्ष पर एक विशाल गुम्बद है। वर्तमान में केवल इसका पूर्वी द्वार और भीतरी कुछ मेहराबें आदि ही शेष बचे हैं जो इसके प्राचीन वैभव की गाथा सुनाते हैं। किले के अंदर तुर्की शैली में बना स्नानघर और एक मस्जिद भी है। मस्जिद का निर्माण 1376 ईसवी में फ़िरोज़ शाह के भाई द्वारा करवाया गया था। इसमें तीन गुंबद और पूर्वी तरफ एक तिहरा धनुषाकार प्रवेश द्वार है। मस्जिद के सामने एक मीनार है। मस्जिद से थोड़ी दूरी पर तुर्की शैली में बना हम्माम स्थित है और इसे मुगल काल के दौरान बनाया गया था। इस किले से गोमती नदी और शहर का मनमोहक दृश्य देखा जा सकता है। इस मस्जिद में हिंदू और बौद्ध स्थापत्य शैली की छाप देखी जा सकती है। किले की संरचना पत्थर की दीवारों से घिरा एक अनियमित चतुर्भुज है। 16वीं शताब्दी में जौनपुर के गवर्नर मिनम खान के संरक्षण में मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान इसका एक और बाहरी द्वार बनाया गया था। बाहरी द्वार के मेहराबों के बीच रिक्त स्थान को नीले और पीले रंग की टाइलों से सजाया गया था।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2mwnu2tt
https://tinyurl.com/yur8vxc2
https://tinyurl.com/nher3623

चित्र संदर्भ
1. 30 जुलाई 1857 के दिन लखनऊ में रेडान बैटरी (Redan Battery) पर क्रांतिकारियों के हमले को संदर्भित करता एक चित्रण (getarchive)
2. 14 सितंबर 1857 के दिन दिल्ली के कश्मीरी गेट पर क़ब्ज़े को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
3. जौनपुर के किले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. जौनपुर के शाही किले में मौजूद शाही मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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