आइए जानें, भारत में हर वर्ष, कितने लोग, हृदय रोगों के शिकार होते हैं

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
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आइए जानें, भारत में हर वर्ष, कितने लोग, हृदय रोगों के शिकार होते हैं

जौनपुर के अस्पतालों में हृदय से संबंधी समस्याओं से जूझ रहे मरीज़ों को देखना आम बात है। न केवल जौनपुर बल्कि समूचे भारत में हृदय रोग अब एक खामोश महामारी का रूप ले चुका है। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश में होने वाली कुल मौतों में से लगभग 27% मौतें इसी वजह से होती हैं। 2017 में भारत में कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ (Cardiovasular Diseases (CVD)) के कारण 26.4 लाख लोगों की मृत्यु हुई। एक और चिंताजनक बात यह है कि हर साल लगभग 15.8 लाख भारतीय कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़ (CHD) के कारण अपनी जान गंवा देते हैं। इनमें से 20% यानी 3 लाख से अधिक मौतें उत्तर प्रदेश में होती हैं। इसलिए आज विश्व जन्मजात हृदय दोष जागरूकता दिवस के अवसर पर, हम उत्तर प्रदेश में हृदय रोगियों की मौजूदा स्थिति पर चर्चा करेंगे। साथ ही, यह भी समझने की कोशिश करेंगे कि पिछले 30 वर्षों में उत्तर प्रदेश में हृदय रोगियों की संख्या क्यों बढ़ रही है। इसके बाद, हम भारत में हृदय रोग से जुड़े कुछ प्रमुख आँकड़ों पर नज़र डालेंगे। फिर, हृदय रोगियों को उपचार और प्रबंधन के दौरान आने वाली चुनौतियों पर बात करेंगे। अंत में, भारत में हृदय विफलता प्रबंधन के क्षेत्र में मौजूद बड़ी कमियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

हृदय में जमा वसा |  | Source: Wikimedia

आइए सबसे पहले उत्तर प्रदेश में हृदय रोगियों की वर्तमान स्थिति का आंकलन करते हैं:

भारत में कोरोनरी हृदय रोग (Coronary Heart Disease (CHD))   के कारण हर साल 15.8 लाख लोगों की मृत्यु होती है। इसमें से लगभग 3 लाख मौतें उत्तर प्रदेश में होती हैं। पिछले तीन दशकों में हृदय रोग के मामलों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है। 
उत्तर प्रदेश में हृदय रोग क्यों बढ़ रहे हैं?

स्वास्थ्य अध्ययन बताते हैं कि 1990 के बाद से 60 साल से कम उम्र के लोगों में हृदय रोग से होने वाली असामयिक मौतें 85% तक बढ़ी हैं। यह स्थिति शहरीकरण, जीवनशैली में बदलाव और आनुवंशिक कारणों से जुड़ी हुई है। शहरीकरण के चलते, लोग अधिक कैलोरी वाले आहार का सेवन करने लगे हैं। ऊपर से हमारी शारीरिक गतिविधियां कम हो गई हैं, और बैठकर काम करने की आदतें बढ़ गई हैं। इन कारणों से मोटापा और अन्य कार्डियोमेटाबोलिक (cardiometabolic) समस्याएं तेज़ी  से बढ़ रही हैं।

कोरोनरी धमनी रोग के सबसे सामान्य रूप (एथेरोस्क्लेरोसिस (atherosclerosis)) और चिह्नित ल्यूमिनल संकुचन के साथ कोरोनरी धमनी का माइक्रोग्राफ़  | Source: Wikimedia

भारत में हृदय रोगों से जुड़े कुछ हैरानी भरे तथ्य निम्नवत दिए गए हैं:

- भारत की आबादी दुनिया की 20% से भी कम है, लेकिन दुनिया के कुल हृदय रोग के मामलों का लगभग 60% भारत में है।

- भारतीयों में हृदय रोग औसतन 33% कम उम्र में होता है।

- भारतीय पुरुषों में 50% दिल के दौरे 50 वर्ष से कम उम्र के लोगों में होते हैं। इनमें से 25% मामले 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों में होते हैं।

- जनसांख्यिकीय आंकड़ों के अनुसार, भारतीयों में हृदय रोग की दर पश्चिमी देशों की औसत दर से दोगुनी है।

यह आंकड़े दिखाते हैं कि, हृदय रोग, एक गंभीर समस्या है और इससे बचने के लिए जीवनशैली में सुधार की बहुत आवश्यकता है।

लेकिन, भारत में हृदय रोगियों के उपचार और प्रबंधन से संबंधित कई बड़ी चुनौतियां भी हैं! इनमें रोगी देखभाल में विसंगतियां और उन्नत नैदानिक तकनीकों तक सीमित पहुंच शामिल हैं। इसका परिणाम यह होता है कि रोग का प्रारंभिक चरण में ही सटीक निदान नहीं हो पाता। विशेष रूप से वंचित समुदायों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण ये समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं।

लेकिन भारत में हृदय रोगियों के उपचार और प्रबंधन में आने वाली प्रमुख चुनौतियों में शामिल हैं:

निदान में देरी और भ्रम: कोरोनरी धमनी रोग (Coronary Artery Disease (CAD))   और परिधीय धमनी रोग  (Peripheral Artery Disease (PAD)) से पीड़ित 42% मरीज मानते हैं कि उनके लिए "आगे क्या करना है?" इस बारे में स्पष्टता का अभाव एक बड़ी बाधा है।

मानकीकृत दृष्टिकोण की कमी: 40% भारतीय चिकित्सकों के अनुसार, सी ए डी/पी ए डी के निदान के लिए मानकीकृत प्रक्रिया का अभाव सटीक निदान को कठिन बना देता है।

चिकित्सा प्रणाली की सीमाएं: मरीज़ों की स्थिति को जल्दी पहचानने और उन्हें सही उपचार की ओर मार्गदर्शन देने में डॉक्टरों को कठिनाई होती है।

कम सुविधा वाले क्षेत्रों में भौगोलिक दूरी, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, आयु और लिंग जैसे कारक मरीज़ों की देखभाल को प्रभावित करते हैं।

कोरोनरी धमनी रोग | Source: Wikimedia

हृदय रोग प्रबंधन में सबसे बड़ी  आवश्यकताएं:

सार्वजनिक जागरूकता की कमी: भारत में लाखों लोग हृदय रोग और इसके खतरों के प्रति जागरूक नहीं हैं।

निदान में देरी: यहाँ पर समय पर रोग की पहचान न हो पाना एक बड़ी समस्या है।

शुरुआती उपचार: मरीज़ों को जल्दी और प्रभावी उपचार नहीं मिल पाता।

अस्पताल में भर्ती के लिए अपर्याप्त सुविधाएं: गंभीर स्थिति वाले मरीज़ों के लिए भी भारत में उचित व्यवस्था का अभाव है।

रिमोट मॉनिटरिंग की कमी: इलाज शुरू होने के बाद, मरीज़ों की निगरानी की सुविधाएं बहुत कम हैं।

बहु-विशेषज्ञ टीम का अभाव: मरीज़ों की स्थिति का सही मार्गदर्शन और मूल्यांकन करने वाली टीम की कमी है।

ये सभी समस्याएं, यह दिखाती हैं कि, भारत में हृदय रोग प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने की सख्त आवश्यकता है। डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवाओं को नई तकनीकों और प्रक्रियाओं को अपनाकर मरीज़ों को बेहतर उपचार देना चाहिए।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/2373kzx9

https://tinyurl.com/268y4r4m

https://tinyurl.com/2d8nak8a

https://tinyurl.com/2ykg2k8p

मुख्य चित्र स्रोत: Wikimedia