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योग न केवल शारीरिक व्यायाम है, बल्कि यह आत्मा, मन और शरीर के पूर्ण समन्वय की एक दिव्य प्रक्रिया है। योग आत्मज्ञान की वह राह है, जो व्यक्ति को बाहरी लालसाओं से मुक्त करके उसकी अंतरात्मा से जोड़ती है। ऋषि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग जीवन के प्रत्येक पहलू को संतुलित करने वाला ऐसा मार्ग है, जो हमें चित्त की चंचल वृत्तियों से ऊपर उठाकर आत्मिक शांति की ओर ले जाता है। इस लेख में हम पतंजलि योग दर्शन के आठ अंगों : यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि—को एक-एक करके समझेंगे। हम जानेंगे कि योग में इन आठ चरणों का क्या महत्व है, ये हमारे जीवन को कैसे संतुलित और उद्देश्यपूर्ण बनाते हैं। इसके बाद इन चरणों से होने वाले शारीरिक, मानसिक और आत्मिक लाभों की चर्चा करेंगे। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि इन्हें अपने दैनिक जीवन में कैसे अपनाया जा सकता है।
अष्टांग योग के आठ चरण (अर्थ और व्याख्या)
अष्टांग योग, जिसे हम "आठ अंगों वाला योग" भी कहते हैं, यह योग की एक प्राचीन प्रणाली है, जिसे योग विद्या के महान गुरु पतंजलि ने प्रस्तुत किया। अष्टांग योग में आठ महत्वपूर्ण चरण होते हैं, जिनका प्रत्येक अंग व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अनिवार्य है। ये आठ चरण क्रमशः एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, और उनका उद्देश्य जीवन के हर पहलू में संतुलन, शांति और समृद्धि लाना है। इन आठ अंगों का अभ्यास करने से व्यक्ति अपने जीवन को एक नए दिशा में, यानी आत्मज्ञान और आत्मानुभूति की ओर, ले जाता है। आइए अब प्रत्येक अंग को विस्तार से समझते हैं:

योग में इन आठ चरणों का महत्व
अष्टांग योग का प्रत्येक चरण व्यक्ति को बाह्य जीवन से आंतरिक चेतना की ओर ले जाने में सहायक है। यम और नियम हमें सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में अनुशासन सिखाते हैं, जिससे हमारा व्यवहार दूसरों के साथ समरस और सद्भावपूर्ण हो जाता है। इससे हमारे अंदर नैतिक बल और आत्म-संयम का विकास होता है।आसन और प्राणायाम शरीर की स्थिरता, लचीलापन, और ऊर्जा को संतुलित करते हैं। ये दोनों शरीर को रोगों से दूर रखने के साथ-साथ ध्यान के लिए आवश्यक स्थिरता और मानसिक शांति की नींव रखते हैं।प्रत्याहार, धारणा और ध्यान मानसिक स्तर पर कार्य करते हैं। प्रत्याहार से इंद्रियों का नियंत्रण होता है, धारणा से मन को एकाग्र करने की शक्ति मिलती है और ध्यान से भीतर की यात्रा प्रारंभ होती है। ये तीनों व्यक्ति को मानसिक अशांति, तनाव, और भटकाव से मुक्त करते हैं।समाधि योग का चरम लक्ष्य है। यह वह अवस्था है जब व्यक्ति अपने आत्म-स्वरूप से जुड़कर ब्रह्म से एकत्व का अनुभव करता है। यह पूर्ण शांति, संतुलन और आत्मिक आनंद की स्थिति है।
योग में इन आठ चरणों लाभ
अष्टांग योग के आठों अंगों का नियमित अभ्यास व्यक्ति को संपूर्ण रूप से लाभ पहुँचाता है। शारीरिक रूप से यह रोगों से मुक्ति, लचीलापन और स्फूर्ति देता है। मानसिक रूप से यह तनाव, चिंता और भ्रम को दूर करता है। नैतिक रूप से यह संयम, ईमानदारी, संतोष और आत्मनियंत्रण विकसित करता है। आत्मिक रूप से यह व्यक्ति को आंतरिक शांति, आत्म-ज्ञान और जीवन के गहरे अर्थ की अनुभूति कराता है। विशेष बात यह है कि ये लाभ धीरे-धीरे जीवन में स्थायित्व के साथ आते हैं, जिससे व्यक्तित्व में गहराई और स्थिरता आती है।

इन चरणों को दैनिक जीवन में कैसे अपनाएँ
अष्टांग योग को अपने जीवन में अपनाना कठिन नहीं है, बल्कि इसके लिए नियमितता और जागरूकता आवश्यक है। शुरुआत यम और नियम से करें – सत्य बोलना, अनावश्यक संग्रह से बचना, संतोष रखना आदि। फिर दिन में कम से कम 15-30 मिनट योगासन और प्राणायाम करें। भोजन करते समय, बातें करते समय या चलने के दौरान इंद्रियों को सजग रखने का प्रयास करें, यही प्रत्याहार है। हर दिन 5-10 मिनट शांत बैठकर किसी एक विचार या मंत्र पर ध्यान केंद्रित करें – यह धारणा और ध्यान का प्रारंभ है। नियमित अभ्यास के साथ एक समय ऐसा भी आएगा जब ध्यान स्वतः समाधि में परिवर्तित हो जाएगा। इस प्रकार अष्टांग योग का अभ्यास जीवन में सरलता, स्थिरता और शांति लाने का सशक्त साधन बन सकता है।