जौनपुर में योग की वापसी: पतंजलि के अष्टांग योग से आत्मशुद्धि तक

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
21-06-2025 09:24 AM
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जौनपुर में योग की वापसी: पतंजलि के अष्टांग योग से आत्मशुद्धि तक

योग न केवल शारीरिक व्यायाम है, बल्कि यह आत्मा, मन और शरीर के पूर्ण समन्वय की एक दिव्य प्रक्रिया है। योग आत्मज्ञान की वह राह है, जो व्यक्ति को बाहरी लालसाओं से मुक्त करके उसकी अंतरात्मा से जोड़ती है। ऋषि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग जीवन के प्रत्येक पहलू को संतुलित करने वाला ऐसा मार्ग है, जो हमें चित्त की चंचल वृत्तियों से ऊपर उठाकर आत्मिक शांति की ओर ले जाता है। इस लेख में हम पतंजलि योग दर्शन के आठ अंगों : यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि—को एक-एक करके समझेंगे। हम जानेंगे कि योग में इन आठ चरणों का क्या महत्व है, ये हमारे जीवन को कैसे संतुलित और उद्देश्यपूर्ण बनाते हैं। इसके बाद इन चरणों से होने वाले शारीरिक, मानसिक और आत्मिक लाभों की चर्चा करेंगे। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि इन्हें अपने दैनिक जीवन में कैसे अपनाया जा सकता है। 

अष्टांग योग के आठ चरण (अर्थ और व्याख्या)

अष्टांग योग, जिसे हम "आठ अंगों वाला योग" भी कहते हैं, यह योग की एक प्राचीन प्रणाली है, जिसे योग विद्या के महान गुरु पतंजलि ने प्रस्तुत किया। अष्टांग योग में आठ महत्वपूर्ण चरण होते हैं, जिनका प्रत्येक अंग व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अनिवार्य है। ये आठ चरण क्रमशः एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, और उनका उद्देश्य जीवन के हर पहलू में संतुलन, शांति और समृद्धि लाना है। इन आठ अंगों का अभ्यास करने से व्यक्ति अपने जीवन को एक नए दिशा में, यानी आत्मज्ञान और आत्मानुभूति की ओर, ले जाता है। आइए अब प्रत्येक अंग को विस्तार से समझते हैं:

  1. यम (Yama)
    यम पहले चरण के रूप में उस नैतिक और दैवीय जीवन के सिद्धांतों को स्थापित करता है, जो एक व्यक्ति के आचार-व्यवहार के मार्गदर्शक होते हैं। यम में पांच उपविभाग होते हैं:
    • अहिंसा (Non-violence): किसी भी प्रकार की हिंसा या चोट से बचना, न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक और वचनात्मक रूप से भी।
    • सत्य (Truth): हमेशा सत्य बोलना और किसी भी स्थिति में झूठ से बचना।
    • अस्तेय (Non-stealing): किसी का भी बिना अनुमति के लेना या चोरी करना, चाहे वह भौतिक वस्तु हो या किसी का समय।
    • ब्रह्मचर्य (Celibacy): संयमित और साधारण जीवन जीना, विशेष रूप से यौन वासनाओं पर नियंत्रण रखना।
    • अपरिग्रह (Non-possessiveness): किसी भी प्रकार के अति संग्रह से बचना और साधारण जीवन जीना।
  2. नियम (Niyama)
    नियम व्यक्तिगत अनुशासन और आत्म-स्वच्छता के लिए होते हैं। ये व्यक्ति को आंतरिक शुद्धता और आत्म-विकास की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। नियम में पाँच उपविभाग होते हैं:
    • शौच (Purity): शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध रहना, साफ-सफाई रखना।
    • संतोष (Contentment): जीवन में संतुष्ट रहना और जो कुछ भी है, उसे स्वीकार करना।
    • तप (Austerity): आत्म-नियंत्रण और कठोरता का अभ्यास करना, जैसे कठोर साधना और कठिनाइयों को सहन करना।
    • स्वाध्याय (Self-study): आत्म-निरीक्षण और आत्मज्ञान के लिए अपने कर्मों और विचारों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • ईश्वरप्रणिधान (Surrender to God): अपनी सभी क्रियाओं को ईश्वर के प्रति समर्पित करना और उनके मार्गदर्शन को अपनाना।
  3. आसन (Asana)
    आसन वह शारीरिक अभ्यास है, जो शरीर को स्वस्थ और लचीला बनाता है। यह मानसिक शांति और एकाग्रता में भी सहायक होता है। आसन का मुख्य उद्देश्य शरीर को आरामदायक स्थिति में लाकर ध्यान और साधना के लिए तैयार करना है। योग के अभ्यास से शरीर में लचीलापन, स्थिरता और शक्ति बढ़ती है। यह शारीरिक स्वास्थ्य को भी बनाए रखता है।
  4. प्राणायाम (Pranayama)
    प्राणायाम का अर्थ है "प्राण" (जीवन शक्ति) का "आयाम" (विस्तार)। इसमें श्वास की गति और नियंत्रण के माध्यम से मानसिक शांति, एकाग्रता और जीवनशक्ति को नियंत्रित किया जाता है। प्राणायाम के द्वारा शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ती है, जिससे मन शांत और उन्नत होता है। यह तनाव और चिंता को कम करने में भी सहायक होता है।
  5. प्रत्याहार (Pratyahara)
    प्रत्याहार का अर्थ है इन्द्रियों का नियन्त्रण। इस चरण में व्यक्ति अपनी इंद्रियों को बाहरी संसार से हटा कर अंतर्मुखी करता है। इसका उद्देश्य इंद्रियों को बाहरी उत्तेजनाओं से मुक्त करना है, ताकि मन और चेतना भीतर की ओर केंद्रित हो सके। यह एक मानसिक अभ्यास है जो ध्यान की तैयारी में सहायक होता है।
  6. धारणा (Dharana)
    धारणा का अर्थ है किसी एक बिंदु या विचार पर मानसिक एकाग्रता स्थापित करना। यह एक प्रकार की ध्यान की तैयारी होती है, जहाँ व्यक्ति अपने मन को किसी एक उद्देश्य पर एकाग्र करता है। यह एकाग्रता व्यक्ति को मानसिक स्पष्टता और उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्धता प्रदान करती है।
  7. ध्यान (Dhyana)
    ध्यान का अर्थ है गहरे ध्यान में प्रवेश करना, जहाँ व्यक्ति पूरी तरह से अपने विचारों और संवेदनाओं से मुक्त हो जाता है। ध्यान एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति एक बिंदु पर पूरी तरह से केंद्रित होता है, और बाहरी संसार की कोई भी उत्तेजना उसे प्रभावित नहीं करती। ध्यान से मानसिक शांति, तनाव मुक्ति, और आत्मिक आनंद प्राप्त होता है।
  8. समाधि (Samadhi)
    समाधि योग का अंतिम और सबसे ऊँचा चरण है। यह वह स्थिति है जब व्यक्ति पूर्णत: अपने आत्मा से जुड़ता है और ब्रह्म के साथ एकाकार हो जाता है। इस अवस्था में व्यक्ति का मस्तिष्क शांति की चरम स्थिति में होता है और उसे आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है। समाधि एक अनुभवात्मक अवस्था है, जिसमें व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत पहचान को छोड़कर सार्वभौमिक चेतना से जुड़ जाता है।

योग में इन आठ चरणों का महत्व

अष्टांग योग का प्रत्येक चरण व्यक्ति को बाह्य जीवन से आंतरिक चेतना की ओर ले जाने में सहायक है। यम और नियम हमें सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में अनुशासन सिखाते हैं, जिससे हमारा व्यवहार दूसरों के साथ समरस और सद्भावपूर्ण हो जाता है। इससे हमारे अंदर नैतिक बल और आत्म-संयम का विकास होता है।आसन और प्राणायाम शरीर की स्थिरता, लचीलापन, और ऊर्जा को संतुलित करते हैं। ये दोनों शरीर को रोगों से दूर रखने के साथ-साथ ध्यान के लिए आवश्यक स्थिरता और मानसिक शांति की नींव रखते हैं।प्रत्याहार, धारणा और ध्यान मानसिक स्तर पर कार्य करते हैं। प्रत्याहार से इंद्रियों का नियंत्रण होता है, धारणा से मन को एकाग्र करने की शक्ति मिलती है और ध्यान से भीतर की यात्रा प्रारंभ होती है। ये तीनों व्यक्ति को मानसिक अशांति, तनाव, और भटकाव से मुक्त करते हैं।समाधि योग का चरम लक्ष्य है। यह वह अवस्था है जब व्यक्ति अपने आत्म-स्वरूप से जुड़कर ब्रह्म से एकत्व का अनुभव करता है। यह पूर्ण शांति, संतुलन और आत्मिक आनंद की स्थिति है।

योग में इन आठ चरणों लाभ

अष्टांग योग के आठों अंगों का नियमित अभ्यास व्यक्ति को संपूर्ण रूप से लाभ पहुँचाता है। शारीरिक रूप से यह रोगों से मुक्ति, लचीलापन और स्फूर्ति देता है। मानसिक रूप से यह तनाव, चिंता और भ्रम को दूर करता है। नैतिक रूप से यह संयम, ईमानदारी, संतोष और आत्मनियंत्रण विकसित करता है। आत्मिक रूप से यह व्यक्ति को आंतरिक शांति, आत्म-ज्ञान और जीवन के गहरे अर्थ की अनुभूति कराता है। विशेष बात यह है कि ये लाभ धीरे-धीरे जीवन में स्थायित्व के साथ आते हैं, जिससे व्यक्तित्व में गहराई और स्थिरता आती है।

इन चरणों को दैनिक जीवन में कैसे अपनाएँ

अष्टांग योग को अपने जीवन में अपनाना कठिन नहीं है, बल्कि इसके लिए नियमितता और जागरूकता आवश्यक है। शुरुआत यम और नियम से करें – सत्य बोलना, अनावश्यक संग्रह से बचना, संतोष रखना आदि। फिर दिन में कम से कम 15-30 मिनट योगासन और प्राणायाम करें। भोजन करते समय, बातें करते समय या चलने के दौरान इंद्रियों को सजग रखने का प्रयास करें, यही प्रत्याहार है। हर दिन 5-10 मिनट शांत बैठकर किसी एक विचार या मंत्र पर ध्यान केंद्रित करें – यह धारणा और ध्यान का प्रारंभ है। नियमित अभ्यास के साथ एक समय ऐसा भी आएगा जब ध्यान स्वतः समाधि में परिवर्तित हो जाएगा। इस प्रकार अष्टांग योग का अभ्यास जीवन में सरलता, स्थिरता और शांति लाने का सशक्त साधन बन सकता है।