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दक्षिण भारत के सांस्कृतिक हृदय, कर्नाटक के मैसूर शहर में स्थित मैसूर महल (Mysore Palace) भारतीय शिल्पकला, राजशाही और इतिहास का अद्भुत संगम है। यह महल केवल ईंट-पत्थरों का ढांचा नहीं है, बल्कि सदियों पुरानी एक समृद्ध परंपरा और गौरवशाली शासकों की गाथा है। मैसूर की पहचान दशहरा उत्सव से लेकर भव्य दरबार तक, इस महल की भव्यता में रची-बसी है। हजारों पर्यटक हर वर्ष इस महल की भव्यता को देखने आते हैं, जहां इतिहास, वास्तुकला और किंवदंतियाँ एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं।
मैसूर महल की कहानी 14वीं शताब्दी में यदुराया वाडियार (Yaduraya Wadiyar) द्वारा निर्मित एक लकड़ी के किले से शुरू होती है। यह किला कालांतर में कई बार पुनर्निर्मित हुआ, लेकिन 1897 में एक विनाशकारी आग ने मूल भवन को नष्ट कर दिया। इस नुकसान के बाद, महाराजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ (Maharaja Krishnaraja Wadiyar IV) ने एक नए, अधिक भव्य महल के निर्माण का आदेश दिया। इस कार्य का दायित्व ब्रिटिश वास्तुकार हेनरी इरविन को सौंपा गया।
हेनरी इरविन ने 1897 में नवनिर्माण कार्य प्रारंभ किया और इसे 1912 में पूर्ण किया गया। इस महल का डिज़ाइन एक सांस्कृतिक समन्वय है — हिंदू, राजपूत, इस्लामी और गोथिक शैलियों का ऐसा सुंदर मेल जिसमें हर कोण से कलात्मकता झलकती है।
पहले वीडियो में आप मैसूर महल की वास्तुकला के बारे में देखेंगे।
नीचे दिए गए वीडियो में आप मैसूर महल के भव्य इंटीरियर डिज़ाइन और शानदार आंतरिक वास्तुकला की झलक पा सकते हैं।
वास्तुकला की विशेषताएँ: एक सांस्कृतिक संगम
मैसूर महल का स्थापत्य इंडो-सारासेनिक शैली (Indo - Saracenic architecture) का बेहतरीन उदाहरण है। इस शैली में भारतीय और इस्लामी डिज़ाइनों के साथ यूरोपीय प्रभावों का अद्वितीय समावेश होता है।
कलात्मक धरोहरें, कथाएँ और परंपराएँ
मैसूर महल केवल स्थापत्य ही नहीं, बल्कि इतिहास और संस्कृति का संग्रहालय भी है। इसमें अनेक दुर्लभ कलाकृतियाँ और किंवदंतियाँ जुड़ी हैं:
नीचे दिए गए वीडियो के माध्यम से आप मैसूर पैलेस की खूबसूरत रोशनी से सजी शानदार लाइटिंग शो को देख सकते हैं।
हर शाम मैसूर महल एक अलग ही रंग में जगमगा उठता है। लाइट एंड साउंड शो में महल की बाहरी दीवारें एक विशाल परदे की तरह जगमगाने लगती हैं। इस शो में पारंपरिक संगीत, कथावाचन और प्रकाश संयोजन से महल का इतिहास जीवंत रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
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