गणेश विसर्जन: भक्ति, प्रतीकात्मकता और जीवन की अनित्यता का संदेश

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
07-09-2025 08:55 AM
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विसर्जन का अर्थ है पूजा में उपयोग किए गए वस्तु या मूर्ति को पुनः प्रकृति में समर्पित करना। हिंदू पूजा-पद्धति प्रतीकात्मकता से भरी होती है और हर अनुष्ठान के पीछे गहरा आध्यात्मिक अर्थ छिपा होता है। पूजा के दौरान, निराकार ईश्वर को किसी निर्जीव वस्तु जैसे चित्र, मिट्टी की मूर्ति या कलश में आमंत्रित किया जाता है। इस प्रक्रिया को प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता है। इसके माध्यम से भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति को उस मूर्त रूप में केंद्रित कर पाता है, जो उसकी प्रार्थना में सहायक होता है। पूजा पूर्ण होने के बाद, ईश्वर को विधिपूर्वक पुनः निराकार रूप में विदा किया जाता है। चित्र, कलश या विग्रह के मामले में उन्हें उत्तर दिशा की ओर कर दिया जाता है, जबकि मिट्टी की मूर्तियों को जल में प्रवाहित किया जाता है।
पहले वीडियो में हम हैदराबाद का गणपति विसर्जन देखेंगे।
नीचे दिए गए वीडियो में हम मुंबई का भव्य बप्पा विसर्जन देखेंगे।

मूर्ति का जल में विसर्जन विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा में प्रचलित है। गणेशोत्सव में, मिट्टी की मूर्ति में भगवान गणेश का आह्वान कर पूजा की जाती है। इस पूजा में पांचों इंद्रियों के माध्यम से भगवान का अनुभव किया जाता है - उनकी सुंदर मूर्ति का दर्शन, फूलों की सुगंध, मूर्ति को स्पर्श कर प्रणाम करना, प्रसाद का स्वाद लेना और मंत्रों व भजनों को सुनना। 3, 5, 7 या 11 दिनों की पूजा के बाद, गणेश जी की मूर्ति को विधिवत जल में विसर्जित किया जाता है और अगले वर्ष पुनः उनका स्वागत किया जाता है। यह परंपरा हमें जीवन की अस्थिरता का स्मरण कराती है, जैसे मृत्यु के बाद हमारा भौतिक शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है, लेकिन आत्मा अमर रहती है और नए रूप में पुनर्जन्म लेती है। यह हमें सिखाती है कि हमें भौतिक संपत्ति के बजाय उस आध्यात्मिक ज्ञान को अर्जित करना चाहिए, जिसे आत्मा अपने साथ आगे ले जा सके।

संदर्भ-
https://short-link.me/1b5bm 
https://short-link.me/16Fud