जौनपुर में सार्वजनिक वितरण प्रणाली: हर घर की थाली तक पहुँचती खाद्य सुरक्षा की डोर

आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
26-09-2025 09:20 AM
जौनपुर में सार्वजनिक वितरण प्रणाली: हर घर की थाली तक पहुँचती खाद्य सुरक्षा की डोर

जौनपुरवासियों, हमारे दैनिक जीवन में खाने-पीने के अनाज की उपलब्धता सिर्फ पेट भरने का साधन नहीं, बल्कि जीवन की सुरक्षा और स्थिरता का आधार है। इसी ज़रूरत को पूरा करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) हमारे शहर के लिए एक भरोसेमंद सहारा बनी हुई है। चाहे आर्थिक तंगी का समय रहा हो, महामारी जैसी चुनौती सामने आई हो या सामान्य दिनों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी - जौनपुर की गलियों, कस्बों और गाँवों तक फैली उचित मूल्य की दुकानें यह सुनिश्चित करती हैं कि हर पात्र परिवार को सस्ती दर पर चावल, गेहूँ और ज़रूरी खाद्यान्न मिलते रहें। यह प्रणाली न केवल भूख को मिटाने में मदद करती है, बल्कि जौनपुर जैसे ज़िले में गरीब और वंचित परिवारों के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है। यही वजह है कि आज सार्वजनिक वितरण प्रणाली हमारे घरों की रसोई तक सीधा जुड़कर, सिर्फ एक सरकारी योजना नहीं रही, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है।
इस लेख में हम सार्वजनिक वितरण प्रणाली को विस्तार से समझेंगे। सबसे पहले हम देखेंगे कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली का इतिहास क्या है और यह व्यवस्था 1960 के दशक में किस तरह शुरू हुई। इसके बाद हम जानेंगे कि 1960 के दशक से योजनाओं का विकास कैसे हुआ और किस प्रकार नई योजनाओं जैसे लक्षित पी.डी.एस. और अंत्योदय अन्न योजना ने गरीब वर्ग को राहत पहुँचाई। फिर हम समझेंगे कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कार्यप्रणाली किस तरह केंद्र और राज्य सरकारों के सहयोग से खाद्यान्न को किसानों से जनता तक पहुँचाती है। अंत में, हम यह भी देखेंगे कि खाद्य सुरक्षा और सामाजिक कल्याण में इसका योगदान कितना महत्त्वपूर्ण रहा है और क्यों आज के भारत में यह प्रणाली करोड़ों लोगों के जीवन की रीढ़ बन चुकी है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली का इतिहास
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System - PDS) खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन की सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली सरकारी नीतियों में से एक मानी जाती है। इसकी शुरुआत 1960 के दशक में हुई, जब देश खाद्यान्न की भारी कमी और भुखमरी की समस्या से जूझ रहा था। उस समय सरकार का मुख्य उद्देश्य था - खाद्यान्न की कीमतों को स्थिर बनाए रखना, आम जनता तक सुलभ दर पर भोजन पहुँचाना और भूख की समस्या को नियंत्रित करना। शुरूआत में यह योजना मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों तक सीमित थी, ताकि शहरों में रह रहे गरीब और मजदूर वर्ग को राहत मिल सके। इसके बाद हरित क्रांति (Green Revolution) के प्रभाव से उत्पादन बढ़ा और सरकार ने इस प्रणाली को धीरे-धीरे ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों तक विस्तारित किया। समय के साथ राज्यों की जिम्मेदारी भी बढ़ी और राशन कार्ड (Ration Card) जारी करने से लेकर निष्पक्ष मूल्य की दुकानों के संचालन तक की व्यवस्था राज्यों द्वारा संभाली जाने लगी। इस प्रकार यह सुनिश्चित किया गया कि खाद्य सुरक्षा केवल शहरों तक ही सीमित न रहे, बल्कि देश के हर कोने में रहने वाले गरीब और वंचित वर्ग तक भी पहुँच सके।

1960 के दशक से योजनाओं का विकास
1960 के दशक से शुरू हुई सार्वजनिक वितरण प्रणाली समय-समय पर कई सुधारों और विस्तारों से गुज़री। 1992 में ‘नई सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ (Revamped PDS) की शुरुआत की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य दूर-दराज़ और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले गरीब वर्ग को इस प्रणाली के दायरे में लाना था। इस योजना के अंतर्गत 1775 ब्लॉकों को शामिल किया गया और लाभार्थियों को सस्ती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया। इसके बाद 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted PDS) लागू की गई, जिसने गरीब परिवारों की सही पहचान करने और उन्हें पारदर्शी ढंग से अनाज वितरित करने पर ज़ोर दिया। दिसंबर 2000 में शुरू हुई ‘अंत्योदय अन्न योजना’ इस प्रक्रिया में एक बड़ा कदम थी, जिसने सबसे गरीब और कमजोर तबकों को अत्यधिक सब्सिडी (subsidy) दर पर चावल और गेहूँ उपलब्ध कराए। इस योजना का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कोई भी गरीब परिवार दो वक्त की रोटी पाने से वंचित न रहे और देश में कोई भूखा न सोए। इस प्रकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली लगातार विकसित होती रही और बदलती परिस्थितियों के अनुसार नई योजनाओं को जोड़कर इसे और मज़बूत बनाया गया।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कार्यप्रणाली
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कार्यप्रणाली कई चरणों में विभाजित है, जिनमें केंद्र और राज्य दोनों की भूमिकाएँ महत्त्वपूर्ण होती हैं। सबसे पहले, सरकार किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price - MSP) पर खाद्यान्न खरीदती है, ताकि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके और उन्हें स्थिर आय का आश्वासन प्राप्त हो। इसके बाद भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India - FCI) खरीदे गए अनाज का सुरक्षित भंडारण करता है, जो आमतौर पर बड़े गोदामों और आधुनिक साइलो (silo) में किया जाता है। इसके पश्चात केंद्र सरकार राज्यों को एक निर्धारित मूल्य (Central Issue Price - CIP) पर खाद्यान्न आवंटित करती है। राज्य सरकारें पात्र परिवारों की पहचान करती हैं और राशन कार्ड जारी करती हैं। फिर उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से लाभार्थियों तक अनाज पहुँचाया जाता है। हालांकि इस प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ भी सामने आती हैं, जैसे अपर्याप्त भंडारण क्षमता, अनाज का खराब होना, परिवहन के दौरान रिसाव और फर्जी राशन कार्ड का बनना। इन कठिनाइयों के बावजूद, यह प्रणाली करोड़ों परिवारों के लिए जीवन रेखा बनी हुई है और गरीबों को नियमित रूप से खाद्य सुरक्षा प्रदान करती है।

खाद्य सुरक्षा और सामाजिक कल्याण में योगदान
सार्वजनिक वितरण प्रणाली ने भारत में गरीबी उन्मूलन और सामाजिक कल्याण की दिशा में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। यह कम आय वाले वर्गों को भोजन पर सब्सिडी प्रदान करके उनके पोषण की ज़रूरतों को पूरा करती है और उनके जीवन स्तर को स्थिर बनाए रखती है। 30 जून 2023 तक, पूरे भारत में लगभग 5.45 लाख उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से 80.1 करोड़ लाभार्थियों को इस प्रणाली का लाभ मिला। यह आँकड़ा अपने आप में इस योजना की विशालता और महत्व को दर्शाता है। मुद्रास्फीति और खाद्य संकट के समय सार्वजनिक वितरण प्रणाली गरीबों के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करती है। साथ ही, यह कुपोषण को रोकने में भी मददगार है, विशेष रूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और कमजोर वर्गों के लिए। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जाने वाली खाद्यान्न खरीद ने किसानों को स्थिर आय और आर्थिक सुरक्षा प्रदान की है। इसके अलावा, यह प्रणाली भोजन की अधिकता वाले क्षेत्रों से खाद्यान्न को उन क्षेत्रों तक पहुँचाने में मदद करती है जहाँ कमी होती है, जिससे संतुलन और सामाजिक स्थिरता बनी रहती है।

आज के भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का महत्व
आज के भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली केवल भूख मिटाने का साधन नहीं रही, बल्कि यह सामाजिक समानता और खाद्य सुरक्षा की आधारशिला बन चुकी है। यह गरीब और वंचित वर्गों को जीवन-निर्वाह के लिए आवश्यक सहयोग प्रदान करती है और उनके दैनिक जीवन को आसान बनाती है। बड़े शहरों में पी.डी.एस केंद्र यह सुनिश्चित करते हैं कि हर पात्र व्यक्ति को उसके राशन कार्ड के आधार पर आवश्यक खाद्यान्न मिलता रहे। विशेष परिस्थितियों में, जैसे महामारी, आर्थिक संकट या प्राकृतिक आपदाओं के दौरान, यह प्रणाली समाज के लिए सबसे बड़ा सहारा सिद्ध होती है। इसके महत्व को देखते हुए यह कहना बिल्कुल उचित होगा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली भारत के सामाजिक-आर्थिक ढाँचे की रीढ़ है। यह न केवल भूख मिटाने में मदद करती है, बल्कि गरीब वर्गों को आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी प्रदान करती है और एक समान तथा न्यायपूर्ण समाज की नींव रखती है।

संदर्भ- 
https://shorturl.at/PUVsG 

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