
जौनपुरवासियों, क्या आपने कभी सोचा है कि जिस कपड़े को हम रोज़ पहनते हैं, वह केवल एक परिधान नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था, तकनीक और रोज़गार का आधार बन चुका है? बदलते भारत में कपड़ा उद्योग अब सिर्फ पारंपरिक करघों या हाथों से बुने धागों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence), ऑटोमेशन (Automation) और नवाचार जैसे अत्याधुनिक पहलू जुड़ चुके हैं। यह उद्योग अब लाखों लोगों की आजीविका का साधन है और भारत को वैश्विक बाज़ार में एक नई पहचान दिला रहा है। भारत आज मानव-निर्मित टेक्सटाइल फाइबर (Man-Made Textile Fibers) जैसे पॉलिएस्टर (Polyester), विस्कोस (Viscose) और ऐक्रेलिक (Acrylic) के उत्पादन में दुनिया के शीर्ष देशों में गिना जाता है। इन कृत्रिम रेशों से बने वस्त्र न केवल देश में बिकते हैं, बल्कि विदेशों में भी भारत की गुणवत्ता, डिज़ाइन और टिकाऊपन की पहचान बन चुके हैं। यह उद्योग 4.5 करोड़ से अधिक लोगों को सीधा रोज़गार देता है और इससे जुड़े छोटे-बड़े उद्योगों में 10 करोड़ से अधिक लोग कार्यरत हैं। जौनपुर जैसे शहर, जहाँ एक ओर पारंपरिक कशीदाकारी, जरदोज़ी और बुनाई की समृद्ध विरासत रही है, वहीं दूसरी ओर यहां की नई पीढ़ी तकनीक आधारित भविष्य की संभावनाओंको भी तलाश रही है। स्थानीय स्तर पर यदि प्रशिक्षण, निवेश और सरकारी योजनाओं से समर्थन मिले, तो जौनपुर भी कृत्रिम वस्त्र उद्योग की इस राष्ट्रीय यात्रा में अपना मुकाम बना सकता है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि भारत में मानव-निर्मित टेक्सटाइल फाइबर का उत्पादन किस स्तर पर है और इसके प्रमुख प्रकार कौन-कौन से हैं। फिर हम भारत के निर्यात क्षेत्र में इसकी स्थिति, चुनौतियाँ और वैश्विक मांग के बारे में बात करेंगे। इसके बाद, हम यह समझेंगे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) कैसे वस्त्र उद्योग को आधुनिकता की ओर ले जा रहा है। फिर, हम जानेंगे कि सरकार की कौन-कौन सी योजनाएँ इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय हैं। अंत में, हम भारत के कुछ प्रमुख वस्त्र निर्माण शहरों के योगदान पर एक नज़र डालेंगे।
भारत में मानव-निर्मित टेक्सटाइल फ़ाइबरों की वर्तमान स्थिति
भारत आज मानव-निर्मित टेक्सटाइल फ़ाइबरों (एमएमएफ - MMF) के क्षेत्र में एक मज़बूत वैश्विक खिलाड़ी बन चुका है। वर्तमान में भारत इस क्षेत्र में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जो इस बात का प्रमाण है कि टेक्सटाइल उद्योग किस तेज़ी से तकनीकी रूप से उन्नत और सशक्त हो रहा है। भारत हर साल लगभग 1700 मिलियन (million) किलोग्राम कृत्रिम रेशे और 3400 मिलियन किलोग्राम कृत्रिम धागे (filaments) का उत्पादन करता है। इनसे तैयार होने वाले कपड़े की कुल मात्रा 35,000 मिलियन वर्ग मीटर से भी अधिक है, जो एक विशाल उद्योग क्षमता का परिचायक है। भारत में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय रेशे पॉलिएस्टर और विस्कोस हैं, लेकिन साथ ही ऐक्रेलिक और पॉलीप्रोपाइलीन (Polypropylene) जैसे रेशों की मांग भी तेज़ी से बढ़ रही है। ये सभी फाइबर अब फैशन, होम टेक्सटाइल्स (home textiles), औद्योगिक उपयोग और स्पोर्ट्सवेयर (sportwear) तक हर क्षेत्र में उपयोग हो रहे हैं। इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण है भारत में इस्तेमाल हो रही अत्याधुनिक मशीनें और तकनीक, जो उत्पादन की गुणवत्ता, स्थिरता और गति - तीनों में सुधार लाती हैं। इनका परिणाम है कि भारत आज वैश्विक कंपनियों के लिए एक भरोसेमंद उत्पादन केंद्र बनता जा रहा है।
कृत्रिम वस्त्रों के निर्यात में भारत की स्थिति और चुनौतियाँ
भारत का टेक्सटाइल निर्यात क्षेत्र पिछले कुछ दशकों में तेज़ी से विकसित हुआ है और विशेष रूप से मानव-निर्मित वस्त्रों की माँग में निरंतर वृद्धि देखी गई है। वर्तमान में भारत से हर साल लगभग 6 बिलियन (billion) अमेरिकी डॉलर मूल्य के एमएमएफ टेक्सटाइल्स का निर्यात किया जाता है, जो भारत के कुल वस्त्र निर्यात का लगभग 30% हिस्सा है (परिधानों को छोड़कर)। पॉलिएस्टर और विस्कोस जैसे रेशों में भारत का निर्यात लगातार बढ़ा है, जिससे देश की वैश्विक उपस्थिति भी मज़बूत हुई है। हालांकि 2015 के बाद वैश्विक आर्थिक सुस्ती और 2020 में आई कोविड-19 (Covid-19) महामारी के कारण निर्यात में ठहराव आया, लेकिन भारतीय टेक्सटाइल उद्योग ने जल्द ही अपनी स्थिति संभाल ली। भारत की ताकत इसकी स्वदेशी और आत्मनिर्भर आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) है, जिसमें कच्चे माल से लेकर कपड़ा निर्माण तक की पूरी प्रक्रिया देश के भीतर ही होती है। इससे गुणवत्ता पर नियंत्रण, समय की बचत और प्रतिस्पर्धी मूल्य जैसी विशेषताएँ सुनिश्चित होती हैं। भारत सरकार ने अब लक्ष्य रखा है कि 2029-30 तक वस्त्र निर्यात को 100 बिलियन डॉलर तक पहुँचाया जाए, जिसमें मानव-निर्मित टेक्सटाइल्स का योगदान 12 बिलियन डॉलर तक होगा। यह संकेत है कि भारत आने वाले वर्षों में वैश्विक बाज़ार में और अधिक मज़बूती से खड़ा होने वाला है।
भारतीय वस्त्र उद्योग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बढ़ता उपयोग
वस्त्र उद्योग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का आगमन अब केवल भविष्य की कल्पना नहीं, बल्कि वर्तमान की आवश्यकता बन गया है। एआई अब केवल डिज़ाइन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उत्पादन, गुणवत्ता नियंत्रण, आपूर्ति प्रबंधन और ग्राहकों की पसंद को समझने तक इसका उपयोग हो रहा है। एआई आधारित स्वचालन से फैब्रिक की गुणवत्ता की जाँच पहले से कई गुना तेज़ और सटीक हो गई है। छोटे-छोटे दोष जिन्हें पहले पकड़ना मुश्किल होता था, अब स्वचालित प्रणाली उन्हें तुरंत चिन्हित कर सकती है। इससे उत्पाद की क्वालिटी (quality) और ब्रांड वैल्यू (brand value) दोनों में वृद्धि होती है। एआई के माध्यम से डिज़ाइनर अब कस्टमाइज़्ड (customized) उत्पाद और ट्रेंड (trend) आधारित डिज़ाइन बना पा रहे हैं। ग्राहक के व्यवहार और डेटा का विश्लेषण कर एआई यह समझता है कि अगले सीज़न (season) में कौन-से डिज़ाइन चलन में रहेंगे, जिससे उत्पादन और बिक्री दोनों में लाभ होता है। सबसे अहम बात यह है कि एआई अब पर्यावरणीय स्थिरता में भी बड़ा योगदान दे रहा है। एआई की सहायता से संसाधनों का बेहतर प्रबंधन होता है, जिससे ऊर्जा की बचत, कच्चे माल की बर्बादी में कमी और कम कार्बन उत्सर्जन (carbon emissions) सुनिश्चित होता है। इस तरह एआई तकनीक, भारत को एक जिम्मेदार और भविष्य उन्मुख वस्त्र राष्ट्र बनाने में मदद कर रही है।
सरकारी योजनाएं और नीतियाँ जो वस्त्र उद्योग को दे रही हैं गति
भारत सरकार ने वस्त्र उद्योग की संभावनाओं को देखते हुए कई योजनाएं शुरू की हैं जो इसे वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बनाए रखने में मदद करती हैं। पीएम मित्र योजना (PM MITRA - Prime Minister Mega Integrated Textile Region and Apparel Parks) के अंतर्गत देश में 7 विशाल टेक्सटाइल पार्क बनाए जा रहे हैं। इन पार्कों का उद्देश्य पूरे उत्पादन चक्र (फाइबर से लेकर तैयार वस्त्र तक) को एक ही जगह पर उपलब्ध कराना है, जिससे निवेशक आकर्षित हों और औद्योगिक प्रक्रिया अधिक सुदृढ़ और केंद्रित बने। पीएलआई स्कीम (PLI - Production Linked Incentive Scheme) वस्त्र कंपनियों को बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए प्रोत्साहन देती है। इस योजना के तहत दो स्तर की श्रेणियाँ बनाई गई हैं, जिनमें से बड़ी कंपनियों को अधिक निवेश और कारोबार के आधार पर अधिक प्रोत्साहन मिल सकता है। अब तक 64 टेक्सटाइल कंपनियों को इस योजना के तहत लाभ के लिए चुना गया है। एनटीटीएम (NTTM - National Technical Textiles Mission) का केंद्र-बिंदु तकनीकी वस्त्रों (Technical Textiles) पर है - जैसे कि मेडिकल (medical), कृषि, स्पोर्ट्स (sports), ऑटोमोबाइल (automobile) और रक्षा क्षेत्र में उपयोग होने वाले फैब्रिक। इस योजना का उद्देश्य देश में बायोडिग्रेडेबल फैब्रिक (Biodegradable Fabric), स्वदेशी मशीनों और नई तकनीकों का विकास करना है। इन योजनाओं के ज़रिए भारत न केवल उत्पादन कर रहा है, बल्कि नवाचार और अनुसंधान के क्षेत्र में भी तेज़ी से अग्रसर हो रहा है।
भारत के प्रमुख वस्त्र निर्माण शहर और उनका योगदान
भारत के विभिन्न क्षेत्र विशेष वस्त्र उत्पादों के लिए प्रसिद्ध हैं और ये मिलकर पूरे देश की टेक्सटाइल छवि को आकार देते हैं।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/mw4fazv9
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.