जौनपुर से प्राप्त ईंटों के प्रकार

मिट्टी के बर्तन से काँच व आभूषण तक
10-06-2017 12:00 PM
जौनपुर से प्राप्त ईंटों के प्रकार
ईंट वर्तमान समय में भवनों को बनाने वाले प्रमुख कारको में से एक है परन्तु यदि इनके इतिहास को देखा जाए तो इनका इतिहास हड़प्पा काल तक जाता है। अपने सफ़र के शुरूआती समय में ईंट आग पर नहीं अपितु सूर्य की ऊष्मा का इस्तेमाल कर पकाई जाती थी। धीरे-धीरे आवश्यकतानुसार इनको आग पर पकाया जाने लगा। सिन्धु सभ्यता के पुरस्थालों से इसके कई प्रमाण मिलते हैं। ईंटों के आकर एवं प्रकार में समय के साथ साथ परिवर्तन भी आया। कुषाण कालीन ईंटों का आकार बड़ा होता था तथा उसी अनुपात में वह आकर में चौडीं भी होती थीं। मध्यकाल में ईंटों की प्रौद्योगिकी ने एक नए प्रकार के ईंटों को जन्म दिया जिनका नाम लाखौरी है। यह ईंट बहुतायतरूप में मध्यकालीन भवनों में दिखाई देती हैं। जौनपुर, जो एक मध्यकालीन शहर है, में इस प्रकार के ईंट कि बनी कई इमारतें देखने मिल जाती हैं। शाही किले के बाहरी दरवाजे के बायीं तरफ हुए उत्खनन में लाखौरी ईंट के बने आधार सामने आए थे। वर्तमान मे चहारसू, जामा मस्जिद, मछलीशहर आदि स्थानों पर लाखौरी ईंट के बने मकान दिखाई देते हैं। अनिरुद्ध रे की पुस्तक टाउन्स एंड सिटिज ऑफ़ मेडिवल इंडिया: अ ब्रिफ सर्वे, रूटलेज प्रकाशन, 2017, में इस प्रकार ईंट के बारे में जानकारी दी गयी है।