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दूसरी सदी ईसा पूर्व के ग्रन्थ चरक सम्हिता में लिखा है कि हमारा जीवन (“आयु”) शरीर, चेतना, मन व आत्मा का मेल (“संयोग”) है; और आयुर्वेद हमारे जीवन का सबसे पवित्र ज्ञान है; इसका न सिर्फ इस जीवन में बल्कि अगले जन्मों में भी कल्याण है।
भारत में पौधों के औषधीय गुणों का ज़िक्र सबसे पहले ऋषि-मुनियों द्वारा हस्त लिखित वेदों में पाया गया है, रिग वेद (3500 – 1800 ईसा पूर्व) से शुरू होकर, खासकर अथर्व वेद। कहा जाता है कि वेदों में जीवन-संबंधी सारा ज्ञान मौजूद है, और वैदिक शिक्षा में आयुर्वेद, वेद से उत्पन्न ‘उपवेद’ है। यद्यपि यह सदियों से मौखिक तौर पर गुरु से शिष्य को सौंपी जाती थी, आयुर्वेद पर कुछ प्रमुख हस्तलिपि बनाये गए थे। इसका एक उदाहरण है ऊपर स्थित चरक सम्हिता, और साथ ही सुश्रुत सम्हिता (रिग वेद के लगभग 1000 वर्ष पूर्व) – प्राचीन काल के दो विशिष्ट वैज्ञानिक व् चिकित्सक द्वारा रचित। सुश्रुत-संहिता में कुल 700 आयुर्वेदिक औषधीयों का वर्णन है, जिनमे से कुछ भारत में नहीं पायी जाती है।
रिग वेद में आयुर्वेदिक औषधीयों (जैसे कि सेमल, पिथ्वन, पलाश, पीपल इत्यादि) का वर्णन है। यजुर वेद में आयुर्वेद की चर्चा शारीरिक अंग एवं ऊतक (“धातु”) को लेकर है। साम वेद, जहां से शाश्त्रीय संगीत का जन्म हुआ है, आयुर्वेद के समग्र स्वरूप को दर्शाते हुए अच्छे स्वास्थ के लिए मंत्र दिए गए हैं।
6वी सदी के ब्रह्मसंहिता में एक खंड है, वृक्षायुर्वेद, जिसमे औषधीय वृक्षों का न ही वर्णन है परन्तु यह भी विवरण है कि कैसे वृक्ष की देखभाल की जाये, उनका महत्त्व किस-किस प्रकार से है, उनको घर से कितना दूर लगाना बेहतर है, आदि। उसी प्रकार, 1600 ईस्वी के भावप्रकाश में 600 से अधिक औषधीय पौधे का विवरण है।
संदर्भ:
1.अंग्रेजी पुस्तक: Jain, Dr SK. 1968. Medicinal Plants, National Book Trust
2.अंग्रेजी पुस्तक: Sadhale, Nalini (Trans). 1996. Surapala’s Vrikshayurveda, Asian Agri-History Foundation
3.अंग्रेजी पुस्तक: Frawley, David & Ranade, Subhash. 2004. Ayurveda, Nature's Medicine, Motilal Banarsidass Pub.
4.अंग्रेजी पुस्तक: Frawley, David. 2000. Yoga and Ayurveda: Self-healing and Self-realization, Motilal Banarsidass Pub.
5.http://sdlindia.com/index.php/ancient-ayurvedic-texts?bb=ayurved/ayurved%20history
6.http://www.healthandhealingny.org/tradition_healing/ayurveda-history.html