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यदि हमारे देश में किसी से भी पूछा जायेगा सबसे रसीला और स्वादिष्ट फल कौन सा है तो अधिकतर लोगों के मुँह से आम का नाम ही निकलेगा। यह है ही इतना रसीला और स्वादिष्ट कि इसका नाम सुनते ही मुँह से पानी आने लगता है। आम से जुड़ी कई पौराणिक कहानियां है उसी में से एक पौराणिक कहानी आज हम बताने जा रहें हैं जो भगवान गणेश और कार्तिकेय से जुड़ी है। भगवान शिव और पार्वती के दो पुत्र गणेश और कार्तिकेय हुआ करते थे। भगवान शिव इन तीनों के साथ कैलाश पर विराजमान हुआ करते थे। उनके दोनों ही पुत्र बढ़े सुन्दर और बुद्धिमान थे। एक दिन साधू नारद कैलाश में आ धमकते हैं और भगवान को उनकी आराधना के तौर पर आम का फल देते हैं।
भगवान शिव और माता पार्वती उनके आम को देने के पीछे की चालकी को जानते थे लेकिन उनके दिमाग में किस तरीके की चालाकी चल रही उससे अनजान थे। फल देते हुए नारद भगवान शिव से बोलते हैं यह आम अमृत से ज्यादा स्वादिष्ट है और जो इसे खायेगा वो बहुत बुद्धिमान बन जायेगा। नारद के द्वारा फल भगवान शिव को देने के बाद भगवान शिव ने फल को दो भागों में काट दिया और उसका एक हिस्सा माता पार्वती के साथ साझा करते हैं। भगवान शिव को यह करता देख नारद बोल पड़ते हैं कि इसे यदि दो लोगों ने खाया तो इसकी उपयोगिता ख़त्म हो जाएगी। इतना सुनते ही भगवान शिव पार्वती से आग्रह करते हैं कि पूरे फल को वो खा ले।
जैसे ही भगवान शिव माता पार्वती को खाने के लिये देते हैं वैसे ही पार्वती उनको बिना पति के कुछ भी न खाने की बात बोलती हैं और फल खाने से इंकार कर देती हैं। इसके बाद पार्वती आम के फल को नारद को वापस कर देती हैं। जैसे ही नारद को फल वापस किया जाता है वो नाटक शुरू करते हैं और भगवान से बोलते हैं कि आप ने मेरी पेशकश को नकार दिया है। इसी बीच वहां भगवान गणेश और कार्तिकेय आ पहुंचते हैं और नारद के साथ अपने माता पिता की गंभीर हो रही बातों को सुनते हुए नारद के पीछे खड़े हो जाते हैं। जैसे ही कार्तिकेय नारद से पूछते हैं कि क्या हुआ। नारद तुरंत भगवान के द्वारा उनके फल को नकारने की बात बोल देते हैं। कटे हुए आम की सुगंध से पूरा घर मेहक गया होता है और गणेश अपनी माता से इतने प्यारे उपहार को नकारने का कारण पूछने लगते हैं।
तब पार्वती गणेश को बताती है कि इस आम को किसी के बीच बांटा नहीं जायेगा और किसी एक को ही इसे खाना होगा इसलिये हमने इसे नारद को वापस कर दिया। इतना सुनते ही कार्तिकेय अपनी माँ से आग्रह करने लगते हैं कि उन्हें इस आम को खाने की आज्ञा दे क्योंकि उनको आम बहुत पसंद हैं। इसी बीच गणेश भी कार्तिकेय की बात काट कर आम खाने की तीव्र इच्छा जाहिर करते हैं और दोनों ही नारद के हाथ से आम को झपट ने की कोशिश करते हैं। नारद बड़ी चालकी के साथ आम को दूसरी साइड में कर देते हैं। इस बात पर दोनों भाईयों में लड़ाई शुरू हो जाती हैं। यह देख नारद बहुत प्रसन्न होते हैं।
नारद की इस चालकी से भगवान शिव उन पर क्रोधित हो उठते हैं और उनसे बोलते हैं तुम्हे यह करवा कर प्रसन्नता हासिल हो गयी होगी। नारद फिर से निर्दोष होने का नाटक करते हुए शिव से कहते कि यह आम मैं आपके लिये लेकर आया था और इसमें मेरा कोई भी दोष नहीं है। यह देख पार्वती ने हस्तक्षेप किया और मुस्कराते हुए बोला कि इसके लिये प्रतियोगिता का अयोजन करते हैं जो उसमें विजय होगा उसे आम खाने को मिल जायेगा। इतना सुनते ही दोनों भाइयों ने लड़ाई रोक दी और नारद ने प्रतियोगिता की शर्त रख दी। नारद ने कहा जो पूरे ब्रह्माण्ड के 3 चक्कर लगा कर सबसे पहले वापस आयेगा उसे विजय माना जायेगा और उसे ही आम खाने को मिलेगा।
इतना सुनते ही कार्तिकेय ब्रह्माण्ड के चक्कर के लिए निकल जाते हैं लेकिन गणेश न तो अपने भाई के बराबर भाग सकते थे और न ही उनका वाहन मूषक तेज भाग सकता था। कुछ देर सोचने के बाद गणेश एक तरकीब निकालते हैं। जिससे उन्हें आम मिल जाता है और वो विजय हो जाते हैं। जैसे ही वो आम खाने वाले होते है कार्तिकेय 3 चक्कर लगाकर वापस आ जाते हैं और गणेश के हाथ में आम देख चौक जाते हैं। कार्तिकेय उनसे पहले 3 चक्कर लगाकर वापस आने कारण पूछते हैं तो गणेश उनको बोलते हैं मैंने माँ और पिता को एक साथ खड़ा किया और उनके परिकर्मा कर दी। गणेश इसके पीछे तर्क देते हैं कि माता-पिता ही हमारा संसार है इसलिए उनकी परिकर्मा करना संसार की परिकर्मा करने जैसा है।
संदर्भ:
1.http://hindumythologyforgennext.blogspot.com/2011/10/ganesha-wins-mango.html
2.http://zeenews.india.com/spirituality/significance-of-ganesha-s-mango-story-1851144.html