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                                            क्योंकि भोजन के बिना जीवन असम्भव है इसलिये मनुष्य के जीवन में भोजन का महत्वपूर्ण स्थान है, और यदि आप दक्षिण एशियाई देशों में भोजन की बात करेंगे तो रोटी का नाम ना लिया जाए ऐसा असम्भव है। रोटी भारत, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, पूर्वी अफ्रीका और कैरेबियाई आदि में सामान्य रूप से पका कर खाये जाने वाली चपटी ब्रेड के सामान एक खाद्य सामग्री है। यहां भोजन में रोटी का सबसे ज्यादा महत्व है क्योंकि यही एकमात्र भोजन है जिसको प्रतिदिन खाया जा सकता है, भोजन की थाली इसके बिना अधूरी है। रोटी बनाने के लिए आमतौर पर गेहूँ का आटा प्रयोग किया जाता है परन्तु हम मक्का, जौ, चना, बाजरा आदि को भी रोटी बनाने के लिए उपयोग कर सकते हैं। वर्तमान में रोटी हमारे आहार का मुख्य हिस्सा है।
भारत के विभिन्न भागों में रोटी के लिए विभिन्न हिंदी नाम प्रचलित हैं, जिनमे प्रमुख हैं: - फुल्का और चपाती। इसके साथ ही ये विभिन्न प्रकार की भी होती हैं इसमें नान, परांठा, मिस्सी रोटी, लच्छा परांठा, मीठी रोटी, रूमाली रोटी, तन्दूरी रोटी, डबल रोटी (ब्रेड) आदि शामिल हैं। यह तो बात हुई रोटी के सामान्य परिचय की, जिसके बारे में लगभग सभी को पता है। तो चलिए आईए जानते है इसके इतिहास के बारे में।
रोटी जितनी स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है उतना ही रोचक और दिलचस्प इसका इतिहास भी रहा है। कहा जाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप से रोटी, प्रवासियों और भारतीय व्यापारियों के माध्यम से मध्य एशिया, दक्षिणपूर्व एशिया, पूर्वी अफ्रीका और कैरीबियाई द्वीपों से लेकर दुनिया के अन्य हिस्सों में भी फैल गयी थी। कई स्थानों में रोटी को चपाती के नाम से भी पेश किया गया था और आज भी इसे कई क्षेत्रों में चपाती के नाम से ही जाना जाता है। चपाती या चपत का अर्थ सपाट या चपटा से है, जिसे हाथों की गीली हथेलियों से आटे से बनाया जाता था।
रोटी खाना कब से चला आ रहा है यह बताना तो कठिन है, परंतु कई खाद्य इतिहासकारों का कहना है कि रोटी की उत्पत्ति 5000 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता से हुई थी। क्योंकि गेहूं की खेती के प्रमाण सर्वप्रथम सिंधु, मिस्र, और मेसोपोटामिया सभ्यताओं में ही मिलते है। और अरबों द्वारा रोटी को व्यापार मार्गों के माध्यम से पूरे दक्षिण एशिया में फैला दिया गया था। वहीं कुछ अन्य इतिहासकारों का कहना है कि इसकी शुरूआत पूर्वी अफ्रीका में हुई थी, जिसके बाद इसे भारत लाया गया था। ऐसी ही ना जाने कितनी कहानियां है जिसमें रोटी बनाने की शुरूआत के बारे में कई दावे किये गये है। परंतु इसकी उत्पत्ति के सर्वमान्य साक्ष्य दक्षिणी भारत से ही प्राप्त होते है।
भारत में भले ही रोटी का उल्लेख कई अलग-अलग नामों में से मिलता हो परंतु यह बात तो तय है कि भारत में रोटी प्राचीन काल से ही हमारे भोजन का एक हिस्सा रही है। मोहनजोदड़ो की खुदाई में भी 5000 वर्ष पुराने कार्बनयुक्त गेहूं मिले हैं जिससे सिद्ध होता है कि इस समय भी उसका उपयोग होता रहा होगा। 6000 साल पुराने संस्कृत पाठों में भी चपाती का उल्लेख मिलता है। यहां तक की 1600 में "करोटी" और "रोटिका" जैसे शब्दों का उल्लेख तुलसीदास और भारत-मिश्रा ने किया था, निश्चित तौर पर ये रोटी के स्थान पर उपयोग किये जाने वाले शब्द ही है।
यह भी कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में रोटी सम्राट अकबर की पसंदीदा थी। इसका जिक्र आइन-ए-अकबरी में भी मिलता है जिसकी रचना अकबर के ही एक नवरत्न दरबारी अबुल फजल इब्न मूबारक ने की थी। चपाती 1857 के प्रथम स्वतंत्रता युद्ध के दौरान अंग्रेजों के बीच भी बहुत लोकप्रिय हो गई थी। यहां तक की सैनिकों के डाइनिंग हॉल (dining hall) में भी सैनिकों को रोटियां खाने को दी जाने लगी थी, और देखते ही देखते ये अमेरिका और ब्रिटेन में भी अन्य व्यंजनों की भांति रोटी का भी प्रवेश हो गया था।
इस तरह रोटी को अलग अलग हिस्सों में अलग अलग प्रकार से बनाया जाने लगा। भारत में भी इसे कई प्रकार से बनाया जाता है और यहां तक कि जिनके नाम भी प्रदेश के साथ बदल जाते है। उपरोक्त विवरण से आप समझ ही गये होंगे कि किस तरह रोटी प्राचीन समय से वर्तमान तक पहुँची जिसका रंग रूप समय और स्थान के साथ बदलता गया।
संदर्भ:
1. https://www.desiblitz.com/content/history-of-chapati 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        