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गर्मियों में शरीर से पसीने की गंध को रोकने के लिए विभिन्न प्रसाधनों का उपयोग किया जाता है जिनमें प्रमुख हैं डिओ (Deo) और इत्र। डिओ का उद्भव मूलतः अमेरिका से हुआ है, जिसे उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पेंसिल्वेनिया के आविष्कारक, एडना मर्फी ने वैनिलिन (vanillin) या कोउमरिन (coumarin) जैसे सुगंध यौगिकों के वाणिज्यिक संश्लेषण के साथ आधुनिक सुगंध का अविष्कार किया, किंतु यह अमेरिका के बजार में ज्यादा न चला। वर्तमान समय में प्रयोग होने वाले डिओ का स्वरूप 1941 में जुल्स मॉन्टेनेयर ने तैयार किया, जो सर्वप्रथम “स्टॉपेट (Stopette)” डिओ स्प्रे (deo spray) में प्रयोग किया गया। यह डिओ टाइम पत्रिका के अनुसार 1950 का यह सबसे लोकप्रिय रूप से बिकने वाला उत्पाद बन गया था। धीरे-धीरे यह व्यवसाय विश्व स्तर पर फैल गया।
इत्र का उपयोग मेसोपोटामिया और मिश्र में देखने को मिलता है। विश्व की पहली इत्र निर्माता रसायनज्ञ महिला तप्पुति (Tapputi) थी, जिन्होंने लगभग दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में इसका अविष्कार किया था। भारत में, सिंधु सभ्यता (3300 ईसा पूर्व - 1300 ईसा पूर्व) में भी इसका प्रयोग देखा गया, साथ ही भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में भी इसका उल्लेख किया गया है। ये इत्र सामान्यतः जड़ी बुटियों और मसालों के माध्यम से तैयार किया जाता था।
डिओडोरेंट (Deodorant) और इत्र, सुखद सुगंध और शरीर की अच्छी गंध का प्रतीक हैं। हालांकि ये दोनों सुगंधित वस्तुओं के रूप में जाने जाते हैं, फिर भी अपनी रचना और उनके उपयोग के कारण एक दूसरे से भिन्न हैं। प्राचीन ग्रंथों और पुरातन विज्ञान की शुरुआती मानव सभ्यताओं में इत्र का उपयोग इसकी प्राचीनता को दर्शाता है। जबकि आविष्कार की दृष्टि से डिओ एक आधुनिक उत्पाद है।
इत्र की एक मोहक एवं सुरुचिपूर्ण सुगंध होती है। उपयोग के आधार पर इत्र को अलग अलग नामों से जाना जाता है तथा यह डिओ की तुलना में एक महंगा उत्पाद है। यह आमतौर पर तरल अवस्था में होता है, जिसका उपयोग शरीर को सुगंधित करने के लिए किया जाता है। दूसरी ओर डिओडोरेंट का एक निश्चित नैदानिक मूल्य होता है, जो शरीर से पसीने की अप्रिय गंध को दूर करने के लिए तैयार किया जाता है। डिओडोरेंट सुगन्धित होता है, साथ ही साथ इसका शरीर पर अलग-अलग प्रभाव देखने को मिलता है। यह शरीर के विभिन्न भागों में पसीने के जीवाणुओं के कारण उत्पन्न होने वाली गंध को रोकने में सहायक सिद्ध होता है। यह रसायनों, रोगाणुरोधी और अल्कोहल का उपयोग कर के बनाया जाता है, जिससे शरीर की दुर्गन्ध को कृत्रिम सुगंध में परिवर्तित कर दिया जाता है। इस प्रकार शरीर की गंध को खत्म करने के साथ साथ डिओडोरेंट इत्र की सुखद खुशबू भी प्रदान करता है। डिओडोरेंट्स में मौजूद एंटीपरर्सिपेंट्स (Antiperspirants) का एक उपसमूह, गंध को प्रभावित करता है और साथ ही पसीना ग्रंथियों को प्रभावित करके पसीने को रोकता है। अतः इसके अधिक उपयोग पर रोकथाम भी जरुरी है।
इत्र सदियों से समाज का हिस्सा रहा है और एक आकर्षक सुगंधक उद्योग के रूप में विकसित हुआ है। इत्र एक प्राकृतिक सामग्री के उपयोग और आवश्यक तेलों के निष्कर्षण की प्राचीन कला है। यह सुगंधित आवश्यक तेलों या सुगंधित यौगिकों, रसायनिक पदार्थ और विलयन का मिश्रण है, जो मानव शरीर, जानवरों, भोजन, वस्तुओं, और आवास स्थलों को सुगंधित करने के लिए भी उपयोग किया जाता है। परफ्यूम (perfume) का लैटिन अर्थ " धूम्र के माध्यम से" (to smoke through) है। यह पौधों को दबाकर और भाप द्वारा सुगंधित तेल निकालने की एक प्रक्रिया है। इत्र शरीर को डिओ की तुलना में लंबे समय तक सुगंधित करते हैं। साथ ही इसे एक समृद्ध उत्पाद के रूप में भी आंका जाता है। डिओ को विभिन्न माध्यमों में संरक्षित किया जाता है, जबकि इत्र आमतौर पर स्प्रे बोटलों और डिजाइनर कंटेनर (container) में ही रखा जाता है।
स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव
ज़िक्रोनियम (Zirconium) युक्त डिओडोरेंट का उपयोग करने के बाद त्वचा पर एलर्जी, ग्रैनुलोमा (Granuloma) हो सकता है। प्रोपिलीन ग्लाइकोल (Propylene glycol) के साथ एंटीपरस्पिरेंट्स (Antiperspirants) वाले डिओडोरेंट जब त्वचा पर लगाए जाते हैं, तो यह त्वचा पर जलन उत्पन्न करते हैं और एंटीपरस्पिरेंट्स के अन्य अवयव त्वचा की संवेदनशीलता को बढ़ावा दे सकते हैं। कृत्रिम रूप से बने पोटेशियम एलम (Potassium alum) युक्त डिओडोरेंट के क्रिस्टल त्वचा के लिए हानिकारक होते हैं। आज कल संवेदनशील त्वचा वाले लोगों के लिए विशेष प्रकार के डिओडोरेंट भी उपलब्ध हैं।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Deodorant
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Perfume
3.https://bit.ly/2GrRE2C