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भारत में जब अंग्रेजों का शासन काल (20वीं शताब्दी) था तब ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार हुआ। अंग्रेजों के काल में पश्चिमी ईसाई धर्म के लाखों प्रचारकों ने इस धर्म को फैलाया। उन्हीं में से अमेरिकी ई. स्टैनली जोन्स को भारत का सबसे प्रभावशाली ईसाई धर्म प्रचारक माना जाता है। उन्होंने यहां पर धर्म प्रचार के समय एक पुस्तक “क्राइस्ट ऑफ द इंडियन रोड” (Christ of the Indian Road) लिखि थी। यह पुस्तक लगभग 90 साल पहले लिखी गई थी। इस पुस्तक में उन्होंने अंग्रेजों के शासन काल के ईसाई धर्म और अन्य संस्कृतियों के बारे में कई तथ्यों को उजागर किया है।
इस पुस्तक में उन्होंने उन तथ्यों का भी वर्णन किया है जिन पर उन्होंने चिंतन मनन किया था जब वे भारत में ईसाई धर्म प्रचार कर रहे थे जैसे कि: किस प्रकार हम ईसा मसीह के अनुयायी मसीह के सुसमाचार की मौलिक बातों को बता सकते है, और ये मौलिक बाते कौन सी होंगी; क्या ईसा मसीह का परिचय कराना ही काफी होगा, क्या हम उन सभी विचारों को हटा सकते हैं जो पश्चिमी ईसाई धर्म ने सुसमाचार से जुड़े हुए हैं; क्या हम किसी संस्कृति को मसीह के साथ प्रेम करने की अनुमति दे सकते हैं, जो मसीह के जीवन से प्रेरित हो, और उसका अनुसरण करना चाहते हो; मसीह अपरिवर्तित और सार्वभौमिक है परंतु हमारे रिवाज सार्वभौमिक नहीं हैं, क्या हम इनको हटा या इनको संशोधित कर सकते है ताकि मसीह अन्य संस्कृति और उनके लोगों में प्रवेश कर सके आदि।
इस पुस्तक के सबसे दिलचस्प पहलुओं में से एक यह है कि इसे गांधी जी के जीवन और कार्य के दौरान लिखा गया था इसलिये इसमें उन्होंने यह भी बताया है की गांधी को तत्कालीन दुनिया के ज्यादातर ईसाई मतवादी बड़ी श्रद्धा से देखते थे। जोन्स बताते हैं कि भारतीय गांधी जी की मसीह से तुलना करते थे। उन्हें लगता था की गांधी जी मसीह की तरह ही एक मनुष्य थे, कुछ लोगों ने उन्हें मसीह अवतार भी माना था।
स्टैनली जोन्स ने महात्मा गांधी को बहुत निकट से देखने और जानने की कोशिश की थी। एक बार उन्हें गांधी जी से बातचीत करने का मौका मिला तो उन्होंने गांधी जी से पूछा – "आप भारत में पश्चिमी अनुयायी (ईसाई) को क्या सलाह देंगे?" गांधीजी का जवाब बड़ा दिलचस्प था, जिसमें गहराई थी और जिसे आज हम में से प्रत्येक को अपने जीवन में अनुसरण करना चाहिये। जोन्स बताते हैं गांधीजी ने कहा:
"मैं सुझाव दूंगा कि, आप सभी ईसाइयों, प्रचारकों और अन्य सभी को ईसा मसीह की तरह जीवन जीना शुरू करना चाहिए।"
"दूसरा, मैं सुझाव दूंगा कि आपको बिना किसी मिलावट या टोनिंग (toning) के अपने धर्म का अभ्यास करना चाहिए।"
"तीसरा, मैं सुझाव दूंगा कि आपको प्रेम पर अपना जोर देना चाहिए, क्योंकि प्रेम ही ईसाई धर्म का केंद्र और आत्मा है।"
"चौथा, मैं सुझाव दूंगा कि आप गैर-ईसाई धर्मों और संस्कृति का अधिक हमदर्दी के साथ अध्ययन करें ताकि आप लोगों के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण प्राप्त कर सकें।"
यह पुस्तक मिशन के बारे में और भारत के बारे में भी है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें सबसे ज्यादा मसीह के बारे में है। स्टेनली जोन्स के जीवन में मसीह सब कुछ थे और अंत भी वही थे। इस पुस्तक में भारत में उनके द्वारा किए गये मिशनरी कार्यों के बारे में बताया गया है, उन्हें अपनी बात व्यक्त करने के लिए अंतहीन पृष्ठों की आवश्यकता नहीं थी। अक्सर सारी बात कहने के लिए उन्हें सिर्फ दो वाक्य की जरूरत पड़ती थी। मुख्य पृष्ठ में ही जोन्स बताते हैं कि मसीह की एक भारतीय व्याख्या के बारे में यह पुस्तक होने के बजाय इस पुस्तक में यह वर्णन करने का प्रयास है कि भारतीय सड़क पर मसीह कैसे स्वाभाविक हुए। हालांकि इस भेद को तुरंत समझा नहीं जा सकता लेकिन जैसे ही पुस्तक में आगे बढ़ते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है।
इसमें हमें यह समझ आता है कि भारतीय लोग मसीह की तरफ कैसी प्रतिक्रिया दिखा रहा है। हालांकि यह पुस्तक पश्चिमी ईसाई धर्म के खिलाफ कोई तर्क नहीं है, बल्कि जोन्स स्वयं भारतीय चर्च को पश्चिमी चर्च के सहायक पहलुओं के लिए उपयुक्त बताते है। वे पूरी तरह से जानते थे कि न्याय और सामाजिक परिवर्तन के मुद्दे भारतीय जीवन को प्रभावित कर सकते थे। लेकिन उन्होंने एक अनुवांशिक वास्तविकता को पेश किया और उसके लिए कोई माफी नहीं मांगी।
संदर्भ:
1.https://discerningreader.com/the-christ-of-the-indian-road/
2.http://dustinkrutsinger.com/?p=13