नेताजी का प्रसिद्ध भाषण तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
23-01-2019 02:00 PM
नेताजी का प्रसिद्ध भाषण तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा

महान स्‍वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस को उनकी 122वीं जयंती पर देश ने मंगलवार को याद किया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का साहस हर भारतीय को गौरवान्वित करता है। हम उनकी जयंती पर इस महान शख्सियत को नमन करते हैं। सुभाष चंद्र बोस एक भारतीय राष्ट्रवादी थे, जिनकी देशभक्ति ने उन्हें भारत में काफी सम्मान दिलाया। इस दिन 23 जनवरी, 1897 में, नेताजी का जन्म उड़ीसा के कटक में हुआ था।

सुभाष चंद्र बोस भारत के सबसे लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे, जो महात्मा गांधी के अहिंसा के तरीकों से भिन्न थे और और हमारे औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ युद्ध करना चाहते थे। कांग्रेस के एक कट्टरपंथी नेता, वे 1938 में पार्टी के अध्यक्ष बने लेकिन गांधी और पार्टी के साथ असहमती के चलते उन्हें बाहर कर दिया गया था। हालाँकि, सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय जनता पर जो प्रभाव डाला, उसका कोई खंडन नहीं है, और वे एक अत्यंत प्रिय नेता थे, जो अपने प्रेरक भाषणों के लिए जाने जाते थे। तो चलिए जानते हैं उनके एक ऐसे ही प्रभावशाली भाषण के बारे में। आइये पढ़ते हैं उनका वह भाषण जो उन्होंने भारतीय सेना के सामने 1944 में बर्मा में दिया था, जिसमें उन्होंने "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा" का नारा दिया था।

“दोस्तों! बारह महीने पहले पूर्वी एशिया में भारतियों के सामने संपूर्ण सैन्य संगठन या अधिकतम बलिदान का कार्यक्रम पेश किया गया था। आज मैं आपको पिछले साल की हमारी उपलब्धियों का हिसाब दूंगा और आने वाले साल की हमारी मांगें आपके सामने रखूंगा। लेकिन ऐसा करने से पहले मैं आपको एक बार फिर यह एहसास कराना चाहता हूँ कि हमारे पास आज़ादी हासिल करने का कितना सुनहरा अवसर है। ब्रिटिश एक विश्वव्यापी संघर्ष में उलझे हुए हैं और इस संघर्ष के दौरान उन्हें कई मोर्चों पर हार का सामना करना पड़ा है। इस तरह शत्रु के काफी कमज़ोर हो जाने से स्वतंत्रता के लिए हमारी लड़ाई पांच साल पहले की तुलना में बहुत आसान हो गई है। हमारी मातृभूमि को ब्रिटिश काल से मुक्त करने के लिए इस तरह का अनूठा और ईश्वर-प्राप्त अवसर सौ वर्षों में एक बार आता है।

मैं हमारे इस संघर्ष के परिणाम के बारे में अत्यंत आशावान और आशावादी हूँ, क्योंकि मैं सिर्फ पूर्वी एशिया में मौजूद 30 लाख भारतीयों के प्रयत्नों पर निर्भर नहीं हूँ। भारत के अंदर भी एक विशाल आंदोलन चल रहा है और हमारे करोड़ों देशवासी स्वतंत्रता पाने के लिए अधिकतम कष्ट सहने और बलिदान देने के लिए तैयार हैं। दुर्भाग्यवश, सन 1857 के महान संघर्ष के बाद से हमारे देशवासी निहत्थे हैं, जबकि दुश्मन हथियारों से लदा हुआ है। आज के इस आधुनिक युग में निहत्थे लोगों के लिए हथियारों और एक आधुनिक सेना के बिना स्वतंत्रता हासिल करना असंभव है। ईश्वर की कृपा और जापानियों की मदद से पूर्वी एशिया में मौजूद भारतीयों के लिए हथियार प्राप्त करके आधुनिक सेना का निर्माण करना संभव हो गया है। साथ ही आज़ादी हासिल करने के प्रयासों में पूर्वी एशिया के भारतीय एकता में बंधे हुए हैं और धार्मिक और अन्य भिन्नताओं का, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने भारत के अंदर लाने की कोशिश की, यहाँ पूर्वी एशिया में उसका नामोनिशान नहीं है। नतीजतन, आज परिस्थितियों का ऐसा आदर्श मिलाप हमारे पास है, जो हमारे संघर्ष की सफलता के पक्ष में है – अब जरूरत सिर्फ इस बात की है कि अपनी आज़ादी की कीमत चुकाने के लिए हर भारतीय स्वयं आगे आए। ‘संपूर्ण सैन्य संगठन’ के कार्यक्रम के अनुसार मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री की मांग की थी। जहाँ तक जवानों का संबंध है, मुझे आपको बताने में खुशी हो रही है कि हमें पर्याप्त संख्या में रंगरूट मिल गए हैं। हमारे पास पूर्वी एशिया के हर कोने से रंगरूट आए हैं – चीन, जापान, इंडोचीन, फिलीपींस, जावा, बोर्नियो, सेलेबस, सुमात्रा, मलाया, थाईलैंड और बर्मा...

आपको और अधिक उत्साह एवं ऊर्जा के साथ जवानों, धन तथा सामग्री की व्यवस्था करते रहना चाहिये, विशेष रूप से आपूर्ति और परिवहन की समस्याओं का संतोषजनक समाधान होना चाहिये।

हमें मुक्त किए गए क्षेत्रों के प्रशासन और पुनर्निर्माण के लिए सभी श्रेणियों के पुरुषों और महिलाओं की जरूरत होगी। हमें उस स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए, जिसमें शत्रु किसी विशेष क्षेत्र से पीछे हटने से पहले निर्दयता से घर-फूंक नीति अपनाएगा तथा नागरिक आबादी को अपने शहर या गाँव खाली करने के लिए मजबूर करेगा, जैसा उन्होंने बर्मा में किया था। सबसे बड़ी समस्या युद्धभूमि में पर लड़ रहे सैनिकों को अतरिक्त सैन्य बल और सामग्री को पहुंचाने की है। यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम युद्धभूमि पर अपनी कामयाबी बनाए रखने की उम्मीद नहीं कर सकते, न ही हम भारत के आंतरिक भागों तक पहुंचने में कामयाब हो सकते हैं।

आपमें से जो लोग इस घरेलू मोर्चे पर काम करना जारी रखेंगे उन्हें यह कभी नहीं भूलना चाहिये कि पूर्वी एशिया – विशेष रूप से बर्मा – हमारे संघर्ष का आधार है। यदि यह आधार मजबूत नहीं है तो हमारी लड़ने वाली सेनाएं कभी विजयी नहीं होंगी। याद रखिये कि यह एक संपूर्ण युद्ध है – केवल दो सेनाओं के बीच युद्ध नहीं है। इसीलिए, पिछले पूरे एक साल से मैंने पूर्व में संपूर्ण सैन्य संगठन पर इतना जोर दिया है।

एक और वजह है कि क्यों मैं आपको घरेलू मोर्चे पर सजग रहने के लिए कह रहा हूँ। आने वाले महीनों में मैं और मंत्रिमंडल की युद्ध समिति के मेरे सहयोगी युद्ध के मोर्चे पर और भारत के अंदर क्रांति लाने के लिए अपना सारा ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। नतीजतन, हम पूरी तरह आश्वस्त होना चाहते हैं कि हमारी अनुपस्थिति में भी यहाँ का काम बिना बाधा के सुचारू रूप से चलता रहेगा।

दोस्तों, एक साल पहले जब मैंने आपसे कुछ मांगें की थीं, तब मैंने कहा था कि अगर आप मुझे पूर्ण एकता देंगे तो मैं आपको दूसरा मोर्चा दूंगा। मैंने उस वचन को निभाया है। हमारे अभियान का पहला चरण ख़तम हो गया है। हमारे विजयी सैनिक जापानी सैनिकों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर लड़ रहे हैं, उन्होंने दुश्मन को पीछे ढकेल दिया है और अब बहादुरी से अपनी मात्रभूमि की पावन धरती पर लड़ रहे हैं।

आगे आने वाले कार्य के लिए अपनी कमर कस लीजिये। मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री की व्यवस्था करने के लिए कहा था। मुझे वे सब भरपूर मात्रा में मिल गए हैं। अब मैं आपसे कुछ और चाहता हूँ। जवान, धन और सामग्री में प्रेरक शक्ति होती है जो हमें बहादुर कार्यों और वीरतापूर्ण कारनामों के लिए प्रेरित करेंगी।

सिर्फ ऐसी इच्छा रखना कि अब भारत स्वतंत्र हो जायेगा क्योंकि जीत अब हमारे समीप है, एक घातक गलती होगी। किसी के अन्दर स्वतंत्रता का आनंद लेने के लिए जीने की इच्छा नहीं होनी चाहिए। हमारे सामने अभी भी एक लम्बी लड़ाई है। आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए- मरने की इच्छा, ताकि भारत जी सके- एक शहीद की मृत्यु की इच्छा, ताकि स्वतंत्रता का पथ शहीदों के रक्त से प्रशस्त हो सके।

दोस्तों! स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले रहे मेरे साथियों! आज मैं किसी भी चीज़ से ज्यादा आपसे एक चीज़ की मांग करता हूँ। मैं आपसे आपके खून की मांग करता हूँ। केवल खून ही दुश्मन द्वारा बहाए गए खून का बदला ले सकता है। सिर्फ ओर सिर्फ खून ही आज़ादी की कीमत को चुका सकता है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा!”

संदर्भ :-

1.https://www.dnaindia.com/india/report-full-text-of-netaji-s-historic-give-me-blood-and-i-shall-give-you-freedom-speech-2169165



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