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भारत अपने कालीन के उत्कृष्ट डिज़ाइन (Design) विशेषकर फारसी डिज़ाइन के लिए वैश्विक बाजार में अत्यंत लोकप्रिय है। भारत में निर्मित कालीन का लगभग 80% निर्यात किया जाता है। भारत आज विश्व के सबसे बड़े कालीन उत्पादक और निर्यातक राष्ट्रों में से है, विशेष रूप से हस्तनिर्मित कालीनों के। भारतीय कालीन विश्व के लगभग 73 देशों में निर्यात किया जाता है जिसमें अमेरिका सबसे बड़ा है। भारत में कार्पेट बुनाई का कार्य मुगलकाल से प्रारंभ हुआ। वर्तमान समय में राजस्थान, कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश भारत के प्रमुख कालीन उत्पादक राज्य हैं। जौनपुर से 50-70 कि.मी. की दूरी पर स्थित उत्तर प्रदेश का भदोही-मिर्ज़ापुर क्षेत्र भारत में और भारत के बाहर अपने गब्बे ऊनी कालीन के लिए प्रसिद्ध है। यहां निर्मित कालीन मुख्य रूप से निर्यात केंद्रित हैं।
भादोही क्षेत्र बुनकरों का घर है। यहां के बुनकर ऊनी, गुच्छेदार, तिब्बती कालीन और दरियों के लिए जाने जाते हैं। यहां कलीन उत्पादन क्षेत्र लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर तक फैला है और कई ग्रामीणों की आजीविका पूरी तरह से कालीन उद्योग पर निर्भर है। भदोही और उसके आस-पास के क्षेत्रों में कालीन बनाने में उपयोग होने वाले कच्चे माल का कोई उत्पादन या उपलब्धता नहीं थी, फिर भी यह क्षेत्र कालीन उत्पादक के रूप में काफी अच्छा पनपा। भारत में कालीन उत्पादन मुगल काल में जन्मा तथा मुगल शासक जहाँगीर के शासनकाल में अच्छा विकसित हुआ। सम्राट जहांगीर ने अकबराबाद (आगरा) को अपनी राजधानी बनाकर भारत पर शासन किया। अकबराबाद में उन्होंने कालीन हस्तकला को प्रोत्साहित किया। जहांगीर और ईरान के शाह अब्बास समकालीन शासक थे तथा दोनों बहुत अच्छे मित्र भी थे। शाह अब्बास के शासन के दौरान, कालीन उद्योग ने एक शानदार प्रगति की। इन्होंने कालीन के नए आकर्षक डिज़ाइन विकसित करने में विशेष रुचि ली जिनमें से कुछ आज भी लोकप्रिय हैं।
1857 की क्रांति से प्रभावित होकर आगरा के कई कालीन बुनकर यहां से भाग गये तथा इन्होने भदोही और मिर्ज़ापुर के बीच स्थित जी.टी. रोड पर माधोसिंह के गांव में शरण ली और बहुत छोटे पैमाने पर कालीन बुनाई शुरू की। शायद यह 19वीं शताब्दी के अंत के दौरान था कि एक श्री ब्राउनफोर्ड ने कालीन बनाने वालों पर ध्यान दिया और इन्हें इसकी आर्थिक व्यवहार्यता का एहसास हुआ और खमरिया के छोटे से गांव में मेसर्स ई हिल एंड कंपनी (M/s. E. Hill & Co.) के नाम और शैली के तहत एक कंपनी स्थापित करने का फैसला किया। इसके बाद ए टेलरी ने भदोही में अपनी फैक्ट्री स्थापित की। आगे चलकर इसका व्यवसाय तीव्रता से विकसित हुआ। नवप्रवर्तन और प्रौद्योगिकी उन्नयन की सुविधा के लिए, कपड़ा मंत्रालय, भारत सरकार ने 2001 में भदोही, उत्तर प्रदेश में भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना की। यह भारत में कालीन उद्योगों के उन्नयन हेतु मानवीय संसाधन को विकसित करने वाला एशिया का पहला इस तरह का संस्थान था। इसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह के सहयोग हैं।
भदोही-मिर्ज़ापुर कालीन की निर्माण प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है:
डिज़ाइनिंग: कालीन को सुन्दर और आकर्षक बनाने हेतु डिज़ाइनिंग इसका पहला चरण होता है। इस उद्योग में मौजूद अन्य श्रमसाध्य नौकरियों की तुलना में यह थोड़ा अधिक भुगतान करने वाला काम है। डिज़ाइनर को नक्शकार कहा जाता है। नक्शकार अपनी कल्पना को ठोस कागज़ की चादर या कपड़े के टुकड़े पर उकेरता है तथा बुनकर इस डिज़ाइन का अनुसरण करते हैं।
रंगाई: ऊन की रंगाई एक नाज़ुक प्रक्रिया है जो उपयोग की गई रंगाई और वांछित रंग के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। व्यावसायिक रूप से यह प्रक्रिया एक अत्यधिक कुशल और सम्मानित शिल्पकार द्वारा निर्देशित की जाती है। ऊन की रंगाई को गर्म कक्ष में पूरा किया जाता है फिर इसे सूर्य के प्रकाश में खुली जगह पर सुखाया जाता है।
बुनाई की प्रक्रिया: बुनकर ठेकेदार से किलोग्राम के हिसाब से ऊन के बंडल खरीदते हैं। फिर बुनकर, घर की महिलाओं तथा बच्चों द्वारा ऊन के धागों को सुलझाने में मदद लेते हैं। तथा काठ के माध्यम से कालीन बुनी जाती है।
धुलाई: बुनाई की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ठेकेदार कालीन को फिर से किलोग्राम में मापते हैं। फिर धूल और अतिरिक्त कपास तथा ऊन के सूक्ष्म कणों को साफ करने के लिए कालीन को अच्छी तरह से धोया जाता है।
परिष्करण और पैकेजिंग: फिर कालीन को बनावट और डिज़ाइन की रंग समता के निरीक्षण के लिए आगे भेजा जाता है। इसमें कुछ सुधार करने के बाद इन्हें पैकिंग (Packing) और शिपिंग (Shipping) के लिए भेज दिया जाता है।
कार्य प्रवाह: कालीन उद्योग में भिन्न आयु और वर्ग के लोग शामिल होते हैं। सामान्य तौर पर, निर्यातक ग्राहक से खरीद की मांग को स्वीकार करते हैं। फिर वे श्रमिकों से कार्य करवाने वाले मध्यम व्यक्ति (ठेकेदार) का चयन करते हैं। वे ठेकेदार को रंगीन ऊन, धागे, परिवहन शुल्क और मजदूरी तथा अन्य आवश्यक राशि प्रदान कर निर्माण का अनुबंध देते हैं। इसके बाद ठेकेदार द्वारा बुनकरों से निर्माण कार्य पूरा कराया जाता है।
कार्य और कार्यक्षेत्र के अनुसार कालीन बुनकरों को भिन्न-भिन्न राशि भुगतान की जाती है। बुनकरों को कालीन की गुणवत्ता के आधार पर 1 फुट X 9 फुट के लिए 1200-1800 रूपय दिये जाते हैं। धागे को खोलने वाली महिलाओं को ठेकेदार उपलब्ध धन के आधार पर प्रति दिन औसतन 60-70 रूपए का भुगतान करते हैं। कंपनियों में कार्य करने वाले कुशल श्रमिकों को कालीन की मोटाई के आधार पर 200-350 रुपये प्रतिदिन मिल जाते हैं। क्योंकि ये बुनकर टफ्टेड गन (Tufted guns) का उपयोग करने में कुशल होते हैं, जिस कारण ये अन्य बुनकरों की तुलना में अधिक कार्य खींच लेते हैं। अर्ध-कुशल श्रमिक प्रति दिन 100-150 रुपये तक कमाते हैं, क्योंकि इनके द्वारा लगभग सभी कार्य हाथ से किये जाते हैं। इसलिए एक कालीन को पूरा होने में 30-40 दिन लग जाते हैं।
यह उद्योग बुनकरों और भू स्तर के मजदूरों को नौकरी की सुरक्षा, कर्मचारी लाभ योजना और चिकित्सा वित्त सहायता प्रदान नहीं करता है। इस कारण, नई पीढ़ी के युवा ग्रामीण स्तर पर इस उद्योग में कार्य करने के इच्छुक नहीं हैं। वे मुंबई या दिल्ली क्षेत्रों में कुछ कंपनियों में नौकरी करने को तैयार होते हैं। इसी क्षेत्र में इस कार्य को बढ़ावा देने के लिए एक सहकारी समिति का निर्माण करना लाभकारी हो सकता है।
1.https://crimsonpublishers.com/downloadPdf.php?folder=tteft&file=TTEFT.000563
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Bhadohi
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Mirzapur