भदोही की कालीन बुनाई को प्राप्त है भौगोलिक संकेतक टैग

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06-03-2019 12:34 PM
भदोही की कालीन बुनाई को प्राप्त है भौगोलिक संकेतक टैग

उत्तर प्रदेश के प्रमुख उद्योगों में से एक कालीन उद्योग है, जो यहाँ के निर्यात में एक अहम भुमिका निभाता है तथा इसका केन्‍द्र मुख्‍यतः संत रविदास नगर, भदोही के विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है। यह हस्तनिर्मित कालीन के लिए भी जाना जाता है। यह उद्योग लगभग 3.2 मिलियन लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है और यहाँ 22 लाख ग्रामीण कारीगर कार्यरत हैं।

भदोही और उसके आसपास के क्षेत्र में कालीन के लिए उपयोग होने वाले कच्‍चे माल का कोई उत्पादन या उपलब्धता नहीं थी, फिर भी यह क्षेत्र कालीन उत्‍पादक के रूप में बहुत अच्‍छा पनपा था। भदोही के प्रसिद्ध कालीन प्रकारों में कपास की दरी, छपरा मिर कालीन, लोरिबाफ्ट, इंडो गब्बे शामिल हैं। 16 वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान इस क्षेत्र में कालीन बुनाई का कार्य शुरू हुआ था। वहीं मुगल शासक जहाँगीर के शासनकाल में अच्छे से विकसित हुआ। सम्राट जहांगीर ने 16 वीं ईस्वी सन् में भारत पर शासन किया और उनकी राजधानी अकबराबाद में इन्होने हस्तकला को प्रोत्साहित किया। जहांगीर और ईरान के शाह अब्बास समकालीन थे तथा दोनों बहुत अच्‍छे मित्र भी थे। शाह अब्बास के शासन के दौरान, कालीन उद्योग ने एक शानदार प्रगति की। उनके द्वारा कई आकर्षक डिजाइन विकसित किए गए थे और वे आज भी लोकप्रिय हैं।

1857 की क्रांति से प्रभावित होकर आगरा से कई कालीन बुनकर भाग गये तथा भदोही और मिर्जापुर के बीच स्थित जीटी रोड पर माधोसिंह गांव में शरण लेने लगे और बहुत छोटे पैमाने पर कालीन बुनाई शुरू की। वहीं 19 वीं शताब्दी के अंत में ब्राउनफोर्ड का ध्यान कालीन निर्माताओं पर गया और उन्होंने इसकी आर्थिक व्यवहार्यता को महसूस कर खमरिया के छोटे से गाँव में ई.हिल एंड कंपनी स्थापित करने का फैसला किया। इसके बाद ए टेलरी ने भदोही में अपनी फैक्ट्री स्थापित की। आगे चलकर इसका व्‍यवसाय तीव्रता से विकसित हुआ।

भदोही के कालीनों को भौगोलिक संकेतक टैग प्राप्त है, जिसका अर्थ है कि क्षेत्र के नौ जिलों, भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी, गाजीपुर, सोनभद्र, कौशाम्बी, इलाहाबाद, जौनपुर और चंदौली में निर्मित कालीनों को भदोही के `हस्तनिर्मित कालीन 'के साथ संबंधित किया जाता है।

एक बार भदोही जिले में, टाटा की कंपनी ने कालीन निर्माण के लिए एक शाखा खोली थी। 80 के दशक के दौरान टाटा कंपनी ने कालीन उद्योग में प्रवेश किया था। लेकिन कंपनी के विस्तार की असुरक्षित स्थिति को देख कालीन निर्माण के व्यवसाय को बंद कर दिया। भदोही के हस्तनिर्मित कालीन ईरान में बने कालीनों के विकल्प पर प्रसिद्ध हुए थे। यही वह कारण था जिसकी वजह से यह उद्योग फलता-फूलता गया और वहाँ के लोगों के लिए कमाई का जरिया बन गया था। उस समय सरकार द्वारा भी इसके लिए प्रोत्साहन दिया गया और कालीन के कौशल को सीखने के लिए बुनाई केंद्रों की भी स्थापना की गई।

वहीं कालीनों का निर्यात भी काफी बढ़ता गया और कुल उत्पादन का लगभग 90 प्रतिशत देश के बाहर निर्यात होने लगा। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उद्योग को काफी बुरे समय का सामना करना पड़ा, उद्योगों को सामग्री, शिपिंग और विनिमय कठिनाइयों की कमी से गुजरना पड़ा और विभाग के लिए कंबल के उत्पादन ने कालीन की जगह ले ली थी। युद्ध के बाद, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और अन्य देशों से ऊनी कालीनों की बढ़ती मांग से 1951 में भदोही में कालीनों ने अपना स्थान वापस ले लिया था। उस समय भदोही और मिर्जापुर से निर्यात किए गए कालीनों ने लगभग छह करोड़ रुपये का व्यवसाय कर लिया था। 1951 के बाद मशीन-निर्मित कालीनों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण व्यापार में मंदी होने लगी थी।

कालीन की निर्माण प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है:
डिजाइनिंग:
कालीन को सुन्‍दर और आकर्षक बनाने हेतु डिजाइनिंग इसका पहला चरण होता है। डिजाइन एक प्राच्य गलीचा है जिसे दो भागों क्षेत्र और सीमा में विभाजित किया जा सकता है। क्षेत्र गलीचा का केंद्र बिंदु है और सीमा क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले डिजाइन के लिए एक फ्रेम के रूप में कार्य करती है।
रंगाई:
ऊन की रंगाई एक नाजुक प्रक्रिया है जो उपयोग की गई रंगाई और वांछित रंग के अनुसार भिन्न भिन्न होती है। व्यावसायिक रूप से यह प्रक्रिया एक पारंगम रंगरेज़ द्वारा निर्देशित की जाती है। ऊन के रंगाई को गर्म कक्ष में पूरा किया जाता है फिर इसे सूर्य के प्रकाश में खुली जगह पर सुखाया जाता है।
बुनाई की प्रक्रिया:
बुनकर ठेकेदार से किलोग्राम के हिसाब से ऊन बंडल के खरीदते हैं फिर बुनकर, घर की महिलाओं तथा बच्‍चों द्वारा वांछित मोटाई और अलग अलग किस्मों के उचित ऊन के धागों को खोला जाता है तथा काठ के माध्‍यम से कालीन बुनी जाती है।
धुलाई:
बुनाई की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ठेकेदार कालीन को फिर से किलोग्राम में मापते हैं। फिर धूल और अतिरिक्त कपास तथा ऊन के सूक्ष्म कणों को साफ करने के लिए कालीन को अच्छी तरह से धोया जाता है।
परिष्करण और पैकेजिंग:
फिर कालीन को बनावट और डिजाइन की रंग समता के निरीक्षण के लिए आगे भेजा जाता है। जिसमें कुछ मैनुअल समायोजन करने के बाद पैकिंग और शिपिंग के लिए भेज दिया जाता है।

संदर्भ :-
1. https://bit.ly/2XyyUmy