 
                                            समय - सीमा 268
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                                            वर्तमान में जहाँ विश्व में हर चीज में काफी बदलाव आ गया है, वहीं बाजार की बढ़ती भूमिका वाले बदलते दौर में खेती के तौर-तरीके भी बदल रहे हैं। भारत के कुछ हिस्सों में खेती का नया रूप सामने आया है, यह नया रूप है संविदात्मक कृषि। संविदात्मक कृषि अग्रिम समझौतों के अंतर्गत प्रायः पूर्व-निर्धारित कीमतों पर कृषि उत्पादों के उत्पादन और आपूर्ति हेतु किसानों और विपणन कंपनियों के बीच एक समझौते को संदर्भित करती है।
आमतौर पर इसमें किसान एक विशिष्ट कृषि उत्पाद की अनुकूल मात्रा प्रदान करने के लिए अपनी सहमती देता है। साथ ही किसानों को खरीददार की गुणवत्ता मानकों को पूरा करना होगा और खरीददार द्वारा निर्धारित समय पर आपूर्ति भी करनी होगी। इसके बदले में खरीददार उत्पाद खरीदने के लिए बाध्य है और कुछ मामलों में उत्पादन का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं, जैसे कि कृषि आदानों की आपूर्ति, भूमि की तैयारी और तकनीकी सलाह की व्यवस्था आदि।
संविदा कृषि किसानों की दशा को सुधारने के लिए वैसे तो एक अच्छा विकल्प है, लेकिन क्या हाल ही में की गई आलू की संविदा कृषि बड़ी कंपनियों द्वारा शोषण का एक रूप है? गुजरात में हुए एक हालिया घटनाक्रम से जौनपुर के किसान बहुत कुछ सीख सकते हैं। हाल ही में पेप्सिको इंडिया (Pepsico India) ने गुजरात में चार किसानों पर उनके द्वारा पंजीकृत आलू की किस्म को अवैध रूप से उगाने और बेचने का आरोप लगाकर मुकदमा दायर कर दिया और मुकदमा दायर करने के कुछ दिनों बाद प्रत्येक किसान द्वारा 1.05 करोड़ का भुगतान करने की मांग की। वहीं दूसरी ओर किसानों का कहना है कि कानून उन्हें सभी प्रजाति की फसल और बीज उगाने का अधिकार देता है।
संविदा कृषि की वजह से ऐसी कई चुनौतियाँ भी उभर सकती हैं, इसके अतिरिक्त कुछ चुनौतियाँ निम्न हैं :-
•	संविदा कृषि में यह माना जाता है कि यह कंपनियों और बड़े किसानों के पक्ष में है और इसमें छोटे किसानों की क्षमता को नज़रंदाज़ कर दिया जाता है।
•	एक और चुनौती है उत्पादकों द्वारा झेली जाने वाली समस्याएं जैसे उत्पादन की अनुचित गुणवत्ता में कटौती, भुगतान में देरी, कम कीमत और अनुबंध फसल पर कीट के हमले का सामना करने पर उत्पादन की लागत में उछाल आना, आदि।
•	अनुबंध शर्तें अक्सर मौखिक या अनौपचारिक होती हैं, और यहां तक कि लिखित अनुबंध अक्सर भारत में उतनी कानूनी सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं जो अन्य देशों में देखे जा सकते हैं। संविदात्मक प्रावधानों की प्रभावशीलता में कमी के परिणामस्वरूप किसी भी पक्ष द्वारा अनुबंध का उल्लंघन किया जा सकता है।
•	इसमें खरीदार एक होता है, जबकि विक्रेता अनेक।
•	पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संविदा कृषि में भागीदारी कम है, जो समावेशी विकास के सिद्धांत के प्रतिकूल है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा “पेप्सिको (PepsiCo) के फ्रिटो ले (Frito Lay) के लिए आलू की आपूर्ति की श्रृंखला” नामक एक रिपोर्ट साझा की गयी है, जिसे आप विस्तृत रूप से इस लिंक पर जा कर पढ़ सकते हैं।
पेप्सिको का उद्योग जौनपुर में भी है जहाँ पर कोल्ड ड्रिंक (Cold Drink) बोतल में पेप्सी भरी जाती है तथा साथ ही साथ यहाँ पर किसानों से आलू की खरीददारी भी की जाती है। यहाँ से खरीदे गए आलू के चिप्स (Chips) बनाये जाते हैं जो कि देश भर में विभिन्न स्थानों पर भेजे जाते हैं। जौनपुर के आलू से संबंधित विषयों के बारे में आप प्रारंग के निम्न लिंकों में जा कर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं:-
https://jaunpur.prarang.in/posts/1365/postname
https://jaunpur.prarang.in/posts/860/postname
https://jaunpur.prarang.in/posts/1305/postname
https://jaunpur.prarang.in/posts/857/postname
संदर्भ :-
1.	https://bit.ly/2DDdBYM
2.	https://bit.ly/2PBjpXA
3.	https://bit.ly/2V4rGt7
 
                                         
                                         
                                         
                                        