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                                            जौनपुर शहर अपनी कई समृद्ध विरासतों के लिए जाना जाता है जोकि वाराणसी के निकट स्थित है। यहां के ऐतिहासिक स्थल अपने राजस्व और विकास के लिए अनूठे अवसर प्रदान कर सकते हैं किंतु वर्षों से ही यहां विरासत स्थलों को उपेक्षित किया जाता रहा है। वर्तमान में इन स्थलों के आस-पास कई अन्य स्थलों का निर्माण किया जा रहा है जिसके शिथिल नियमों और कानूनों ने जौनपुर की इन विरासत स्थलों को और भी अधिक गिरावट की स्थिति में डाल दिया है।
 
जौनपुर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर तथा नगरपालिका बोर्ड (Board) है जो लखनऊ से 228 किमी दक्षिण पूर्व में स्थित है। इस शहर का नाम मुहम्मद-बिन-तुगलक उर्फ जौना खान के नाम पर रखा गया था। जौनपुर कई मुगल स्मारकों के संदर्भ में प्रेरणा का स्रोत है और इसी कारण इसे शिराज़-ए-हिंद के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। ईरान में शिराज़ अपनी प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक भव्यता के लिए प्रसिद्ध था। यदि यहां के विरासत स्थलों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर नज़र डाली जाए तो यह अपनी सुन्दरता और भव्यता के लिए मुगल शासकों के लिए काफी प्रिय रह चुकी हैं। 1359 में सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा जौनपुर की स्थापना के बाद एक किला बनावाया गया जिसमें एक हमाम और एक मस्जिद थी तथा साथ ही अन्य इमारतें भी थीं। जौनपुर में शर्की पहले निर्माणकर्ता थे जिन्होंने इंडिक (Indic) और इस्लामी वास्तु शैलियों के मिश्रण से इमारतों का निर्माण कराया। बाद में मुगल शासकों द्वारा इनका अनुकरण किया गया। अटाला मस्जिद इस मिश्रण का ही प्रत्यक्ष प्रमाण है।
 
 
स्क्विंच (Squinch) गुंबद को छिपाने वाली एक बुलंद केंद्रीय पिश्ताक शर्की स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषता बनी। इसकी अलग-अलग दीवारों पर जालीदार पटलें बनी हैं, काले संगमरमर के मेहराब अलंकृत नक्काशीदार वास्तुशिल्प से सजे हैं। जौनपुर की अन्य स्मारकों जैसे जामा मस्जिद, लाल दरवाज़ा, झांझरी मस्जिद और खालिस मुखलिस मस्जिद में सूक्ष्म बदलाव के साथ इस शैली को दोहराया गया है। शर्की राजाओं की कब्रों और महलों को मिलाकर, जौनपुर में एक दर्जन से अधिक स्मारक हैं। 1564 में अकबर द्वारा गोमती नदी पर बनाये गये भव्य शाही पुल जिसे आज भी उपयोग किया जा रहा है, के बाद से किसी भी शासक द्वारा जौनपुर में किसी भव्य ऐतिहासिक स्थल का निर्माण नहीं किया गया।
 
 
यहां के इन विरासत स्थलों के आसपास आज भारी अतिक्रमण किया जा रहा है। प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष (संशोधन और मान्यता) अधिनियम, 2010 के अनुसार किसी भी स्मारक क्षेत्र के चारों ओर से 100 मीटर तक की दूरी पर किसी भी प्रकार का निर्माण निषिद्ध है, जबकि 200 मीटर क्षेत्र अतिरिक्त छोड़ने का अधिनियम है। इस प्रकार कोई भी निर्माण कार्य स्मारक से 300 मीटर तक की दूरी पर होना चाहिए। इस नियम का उल्लंघन करने पर दो साल तक की जेल या एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। किंतु जौनपुर में इस नियम की खुलेआम अवहेलना की जा रही है और प्रशासन अभी भी निष्क्रिय बैठा है। लाल दरवाज़ा और शाही किले के बगल में ही घनी आबादी वाला क्षेत्र है। अक्सर लोग अपने व्यक्तिगत निर्माण कार्य के लिए स्मारक के संगमरमर को यहां से चुरा ले जाते हैं। किंतु यह सब होने पर भी सरकार ने चुप्पी साधी हुई है। जौनपुर में कई स्मारक और पवित्र स्थान हैं जिनमें शाही पुल, शाही किला, अटाला मस्जिद, जामा मस्जिद और लाल दरवाज़ा मस्जिद शामिल हैं जोकि पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यदि राज्य द्वारा इन विरासत स्थलों को थोड़ी मदद दी जाए और योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जाए तो यह स्थल अभूतपूर्व लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

संदर्भ:
1.https://bit.ly/2KiR06c
2.https://bit.ly/2YvtSdP
 
                                         
                                         
                                         
                                        