जौनपुर में शहरी विकास का ग्रामीण विकास पर पड़ता प्रभाव

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
22-08-2019 02:12 PM
जौनपुर में शहरी विकास का ग्रामीण विकास पर पड़ता प्रभाव

पिछले कुछ समय में भारत सरकार द्वारा कुछ एतिहासिक निर्णय लिए गए जैसे तीन तलाक और धारा 370 का निराकरण आदि। किंतु एक समस्‍या ऐसी है जो स्‍वतंत्रता के बाद से तीव्रता से बढ़ती जा रही है, लेकिन इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। वह है ग्रामीण और शहरी विकास दर के मध्‍य बढ़ता अंतर, जिसने दोनों के मध्‍य एक विशाल सामाजिक और आर्थिक खाई बना दी है। जनसंख्‍या की दृष्टि से भारत का विश्‍व में चीन के बाद दूसरा स्‍थान है, जिसकी जनसंख्‍या का एक बड़ा हि‍स्‍सा ग्रामीण क्षेत्र में रहता है। अतः विकास दर दोनों के मध्‍य समान होनी अनिवार्य है। आज भारत की ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था मात्र कृषि पर निर्भर नहीं है। पिछले दो दशकों के दौरान, ग्रामीण भारत ने गैर-कृषि गतिविधियों में काफी विविधता लाई है। जिसने इसे शहरों के काफी निकट खड़ा कर दिया है, किंतु फिर भी दोनों के मध्‍य विकास प्रक्रिया अभी भी पिछड़ी हुयी है, जिसके निवारण हेतु दोनों की धरातलीय स्थिति को जानना अत्‍यंत आवश्‍यक है।

भौगोलिक अध्ययनों में पृथ्‍वी का परिसीमन करने के लिए दो मानदंडों का उपयोग किया जाता है 1- समरूपता और 2 - स्थानिक बातचीत तथा प्रवाह। पहला मानदंड 'औपचारिक क्षेत्र' की पहचान करने के लिए उपयोग किया जाता है, जबकि दूसरा 'कार्यात्मक क्षेत्र' के लिए। इसमें पहले वाले के स्थिर रहने की कल्‍पना की जाती है जबकि दूसरा एक गतिशील खुली क्षेत्रीय प्रणाली को दर्शाता है, जिसमें मानवीय गतिविधियों के स्थानिक संगठन की एकता शामिल है। स्थानिक योजना क्षेत्रीय या स्थानीय योजना को संदर्भित करती है, जो विभिन्न विकासात्मक गतिविधियों को सर्वोत्‍तम स्थान प्रदान करने और क्षेत्रीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने का प्रयास करती है। यह उन केंद्रीय स्थानों या सेवा केंद्रों के नेटवर्क (Network) की पहचान के लिए आवश्यक है, जो अपनी आबादी की ज़रूरतों को पूरा करते हैं और अपने कार्यों और सेवाओं के आधार पर आसपास के क्षेत्रों की आवश्यकताओं को भी पूरा करते हैं।

स्थानिक योजना की अवधारणा और अनुप्रयोग का अध्ययन तथा क्षेत्रीय विकास में इसकी भूमिका कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। जौनपुर क्षेत्र के कृषिगत सामाजिक संदर्भ में सेवा केंद्रों के माध्‍यम से कार्यात्मक क्षेत्र का अध्‍ययन करके कई सामाजिक आर्थिक समस्याओं को उजागर किया जा सकता है। कुछ क्षेत्रों और सेवा केंद्रों में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक सेवाओं के अनियमित केन्‍द्रीकरण, परिवहन और अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच एक बड़ा सामाजिक और आर्थिक अंतर पैदा हो गया है। इसके अतिरिक्‍त, विशाल मानव संसाधन और जिले के दूरस्थ अनारक्षित क्षेत्रों के स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों का उत्पादक क्षेत्रों में ठीक से उपयोग नहीं किया गया है। जिस कारण शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक समृद्ध हो गए हैं। इसलिए, जौनपुर में स्थानिक औद्योगिक योजना, क्षेत्रीय कृषि, औद्योगिक और सामाजिक/सुविधाएं अनिवार्य हो गयी हैं और समय की सर्वोपरि आवश्यकता भी बन गयी हैं।

1947 में भारत को ब्रिटिश शासन से आज़ादी मिलने के तुरंत बाद नीति निर्माताओं ने कृषि निवेश और ग्रामीण भूमि सुधार के बजाय पूंजी-गहन, औद्योगिकीकरण और शहरी बुनियादी ढांचे पर ज़ोर दिया जिससे शहरीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ी तथा ग्रामीण असंतुलन आगे बढ़ा। किंतु ये स्थिति सदैव ऐसी नहीं रही। ग्रामीण अर्थव्यवस्था अब केवल कृषि तक ही सीमित नहीं रही है। पिछले दो दशकों के दौरान ग्रामीण भारत में गैर-कृषि गतिविधियों में काफी विविधता आई है। इस विविधता ने भारत के शहरों और गांवों को अपने बहुत करीब ला दिया है। अध्ययनों से पता चलता है कि शहरी व्यय में 10% की वृद्धि ग्रामीण गैर-कृषि रोज़गार की 4.8% की वृद्धि के साथ जुड़ी हुई है।

यदि पूरे देश में आपूर्ति श्रृंखला मज़बूत हो, तो शहरी मांग बढ़ने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिल सकता है। ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्थाओं के बीच प्रायः चार संबंध- उत्पादन संबंध, उपभोग संबंध, वित्तीय संबंध और प्रवास संबंध हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि बढ़ते शहरी खपत व्यय का प्रभाव ग्रामीण रोज़गार और आय पर पड़ता है। ऐसा अनुमानित है कि पिछले 26 वर्षों में शहरी उपभोग व्यय में ₹100 की वृद्धि से ग्रामीण घरेलू आय में ₹39 की वृद्धि हुई है और यह सब ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र में रोज़गार की बढ़ोत्तरी के कारण हुआ है।

आंकड़े बताते हैं कि यदि शहरी घरेलू खपत वृद्धि दर पिछले दशक के बराबर बनी रहे, तो यह ग्रामीण क्षेत्रों में 63 लाख गैर-कृषि नौकरियों का नेतृत्व कर सकती है। तेज़ी से हो रहा शहरीकरण का प्रभाव सीधा ग्रामीण भारत पर पड़ता है। पिछले दो दशकों के दौरान, भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था शहरी अर्थव्यवस्था की तुलना में काफी तेज़ी से बढ़ी है। पिछले एक दशक के दौरान शहरी अर्थव्यवस्था में 5.4% की तुलना में ग्रामीण अर्थव्यवस्था औसतन 7.3% बढ़ी है। यदि राष्‍ट्र को वास्‍तविक विकास के पथ में अग्रसर होना है तो इसे शहरी और ग्रामीण विकास को एक साथ लेकर चलना होगा।

संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2Za0H1j
2. https://whr.tn/31Xt8fw
3. https://bit.ly/2L0uiAn