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                                            वनस्पतियां हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। इनके प्रत्येक भाग से हम किसी न किसी रूप में लाभांवित होते रहते हैं। इसी प्रकार का एक पेड़ गुग्गल का भी है जिसका वैज्ञानिक नाम कॉमीफोरा विघटी (Commiphora wightii) है। बर्सरेसी (Burseraceae) परिवार से सम्बंधित इस पेड़ कई स्थानीय नामों जैसे बेदेलियम, गुगल, गुगुल इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। पहले यह वृक्ष जौनपुर में व्यापक रूप से पाया जाता था किंतु अब कुछ चुनिंदा स्थानों पर ही दिखाई देता है। इसका उपयोग मुख्य रूप से आयुर्वैदिक दवाईयों के लिए किया जाता है।
 
गुग्गुल का पौधा उत्तरी अफ्रीका से लेकर मध्य एशिया तक पाया जा सकता है। लेकिन यह उत्तरी भारत में सबसे आम है। यह शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु और खराब मिट्टी में भी उग सकता है। गुग्गल एक झाड़ी या छोटे पेड़ के रूप में बढ़ता है जिसकी ऊंचाई 4 मीटर (13 फीट) तक हो सकती है। पत्तियाँ सरल या ट्राइफॉलेट (trifoliate), ओवेट (ovate) होने के साथ 1-5 सेमी लंबी तथा 0।5-2।5 सेमी चौड़ी और अनियमित रूप से लगी होती हैं। इसके कुछ पौधे उभयलिंगी और नर फूल वाले जबकि अन्य मादा फूल वाले होते हैं। एक फूल या तो लाल या फिर गुलाबी रंग का होता है, जिसमें चार छोटी पंखुड़ियाँ लगी होती हैं। पक जाने पर इसके छोटे गोल फल लाल रंग के हो जाते हैं।
 
भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में गुग्गुल का उत्पादन व्यावसायिक रूप से किया जाता है। इसकी छाल से निकलने वाला रेसिन (Resin) गोंद की भांति कार्य करता है। यह प्राचीन भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का एक प्रमुख घटक है। भारत में लगभग 3,000 वर्षों से यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा में इसके लिपिड अर्थात गुग्गुलिपिड (Guggulipid) का उपयोग किया जा रहा है। यकृत में कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) के नियंत्रण के लिए भी यह प्रभावी माना जाता है। आज गुग्गुल गोंद राल आमतौर पर उच्च कोलेस्ट्रॉल के लिए मुंह द्वारा उपयोग किया जाता है। मोटे या अधिक वजन वाले लोगों में वजन को कम करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
 
 
गुग्गुल में पौधे के स्टेरॉयड (steroids) होते हैं जो कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स (triglycerides) को कम करने में मदद करते हैं। इन पदार्थों में से एक मुँहासों की लालिमा और सूजन को भी कम करने में मदद करता है। गुग्गुलिपिड में गुग्गुलस्टरोन (guggulsterones) नामक अद्वितीय सक्रिय पदार्थ होता हैं। इसके साथ ही इसमें कई आवश्यक तेल जैसे यूजेनॉल (eugenol), सिनेोल (cineol) और लिमोनेन (limonene) भी होते हैं जो एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) के रूप में कार्य करते हैं। इसके रेसिन के सेवन से भूख तुरंत शांत हो जाती है। इसके अलावा यह बांझपन, त्वचा रोग, प्रतिरक्षा में कमी, कैंसर इत्यादि के लिए भी प्रभावी माना जाता है।
 
 
पारंपरिक चिकित्सा में इसका बहुत अधिक उपयोग होने के कारण इसका अत्यधिक दोहन किया गया जिसके परिणामस्वरूप भारत के दो प्रदेशों गुजरात और राजस्थान में यह पौधा दुर्लभ रूप से देखने को मिलता है। विश्व संरक्षण संघ (IUCN) ने इसे संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में सूचीबद्ध किया है। हालांकि इस स्थिति को दूर करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। भारत के राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड ने कच्छ जिले में 500 से 800 हेक्टेयर में गुग्गल की खेती करने के लिए एक परियोजना शुरू की है तथा इसके अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए भी विभिन्न कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Commiphora_wightii
2. https://www.webmd.com/vitamins/ai/ingredientmono-591/guggul
3. https://www.ayurvedabansko.com/what-is-guggul-in-ayurveda/
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Commiphora_wightii#/media/File:Commiphora_wightii_06.JPG
2. https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Commiphora_wightii_04.JPG
 
                                         
                                         
                                         
                                        