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आज कालीन या कारपेट (Carpet) प्रायः हर भारतीय घर का हिस्सा है। जौनपुर शहर में कारपेट को ‘एक जिला एक उत्पाद’ योजना के तहत चयनित भी किया गया है। कारपेट के विभिन्न प्रकार के प्रारूप हैं जिनमें से दरी (Dhurrie) भी एक है। पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करके बनायी गयी ऊनी कालीन या दरी सदियों से क्षेत्र का लोकप्रिय शिल्प है। हाथ से बुनी गयी इन कालीनों या दरियों की एक विस्तृत श्रृंखला स्थानीय कारीगरों द्वारा हाथ से बनाई जाती है। कालीन एक प्रकार की कपड़े जैसी सामग्री है, जिसका प्रयोग फर्श को ढकने के लिए किया जाता है। कारीगरों द्वारा बनाए गए उत्पादों को अन्य क्षेत्रों में भी निर्यात किया जाता है, जिससे रोज़गार के अधिक अवसर उत्पन्न होते हैं।
जौनपुर जिले का प्रमुख विनिर्माण क्षेत्र और प्रमुख निर्यात योग्य सामग्री ऊनी कालीन या दरी है। जिले में कई सूती मिल (Mill) स्थापित की गयी हैं ताकि दरियों का निर्माण किया जा सके। दरी को बनाने के लिए मुख्य रूप से कपास, ऊन, जूट और रेशम का प्रयोग किया जाता है। पतले, सपाट तथा बुने हुए इस कालीन का उपयोग पारंपरिक रूप से दक्षिण-एशिया में फर्श-आवरण के रूप में किया जाता है। यह सामान्य कालीन से थोड़ी अलग होती है क्योंकि इसका प्रयोग केवल फर्श को ढकने के लिए ही नहीं बल्कि बिस्तर के आवरण (बेडिंग/Bedding) के लिए भी किया जाता है। आकार, पैटर्न (Pattern) और सामग्री के आधार पर इसका विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जाता है। सबसे छोटी दरी का उपयोग प्रायः टेलीफोन स्टैंड (Telephone stand) और फूलदान के लिए टेबल कवर (Table cover) के रूप में किया जाता है। इसके अलावा दरी का उपयोग ध्यान लगाने के लिए भी किया जाता है जिसे आसन के रूप में जाना जाता है। बड़े राजनीतिक या सामाजिक समारोहों में उपयोग में लायी जाने वाली दरियां 20 x 20 फीट तक बड़ी हो सकती हैं। इन्हें आसानी से उठाया या मोड़ा जा सकता है।
दरियों की रखरखाव लागत कम होती है, क्योंकि दरियां प्रायः कीटों द्वारा संक्रमित नहीं होती जिससे इनके खराब होने का भय नहीं होता। पूरे साल भर दरियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। कपास से बनी दरियां सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडी होती हैं। अवसरों के आधार पर विभिन्न पैटर्न और रंग की दरियां बाज़ारों में उपलब्ध हैं। भारत में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हिमाचल प्रदेश प्रायः विशिष्ट प्रकार की दरियों के लिए जाने जाते हैं। फर्श पर बिछायी जाने वाली दरियों को दरी रग (Dhurrie rugs) कहा जाता है। सामान्य रूप से यह एक मोटा, सपाट बुना हुआ कालीन है। इन दरियों को सम्भवतः अब पूरी दुनिया में पाया जा सकता है, लेकिन पारंपरिक रूप से यह भारत, म्यांमार, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के क्षेत्रों में उपयोग किए जाते थे। इनकी बुनाई शैली में ऐसी तकनीकें शामिल होती हैं जिनका उपयोग हज़ारों शताब्दियों से किया गया है। इसकी उत्पत्ति भारत और आसपास के क्षेत्र से हुई है। हालांकि फर्श पर बिछाने वाली दरियों का प्रयोग हज़ारों साल से हो रहा है किंतु 20वीं शताब्दी तक इसे आकर्षक नहीं माना जाता था। उस दौर में दरियों के डिज़ाईन (Design) और पैटर्न आकर्षक नहीं बनाए जाते थे तथा इसका उपयोग केवल बिस्तर पर कंबल के रूप में या ध्यान लगाने के दौरन आसन के रूप में किया जाता था। दिलचस्प बात यह है कि आसन के रूप में दरी का इस्तेमाल सामान्य और शाही परिवार दोनों के द्वारा किया जाता था।
भारत के विभाजन के समय कुछ बुनकर पानीपत चले गये जहां बुनाई का पुश्तैनी शिल्प वास्तव में फल-फूल रहा था। किंतु कुछ समय बाद स्थानीय बुनकरों और बड़ी कपड़ा मिलों के बीच एक समस्या विकसित हो गई। मिलें कम समय में दरियों का निर्माण करने में सक्षम थीं और इसलिए उन्हें सस्ती कीमत पर बेचने लगीं। अपनी आय को खोने के डर से स्थानीय बुनकरों ने जटिल पैटर्न, रंगों और डिज़ाइनों को दरी विनिर्माण में शामिल करना शुरू किया ताकि इन्हें मशीनों द्वारा बना पाना सम्भव न हो। इस कारण दरी बुनने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री धीरे-धीरे कपास से ऊन में बदलनी शुरू हुई तथा नये-नये पैटर्न, रंग और डिज़ाइन भी नज़र आने लगे। पंजा दरी (Panja Dhurrie), हैंडलूम दरी (Handloom Dhurrie), चिंदी दरी (Chindi Dhurrie), डिज़ाईनर दरी (Designer Dhurrie) आदि आधुनिक दरियों के कुछ मुख्य प्रकार हैं।

संदर्भ:
1. http://odopup.in/en/article/Jaunpur
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Dhurrie
3. http://blog.plushrugs.com/blog/2019/04/17/what-are-dhurrie-rugs/