 
                                            समय - सीमा 268
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                                            भारत में शर्की राजाओं के तहत, जौनपुर इस्लामी कला, वास्तुकला और शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था, जिस वजह से इसे 'शिराज-ए-हिंद' के नाम से भी जाना जाने लगा। ऐसे ही जौनपुर में इस्लामी वास्तुकला के कई अद्भुत उदाहरण देखे जा सकते हैं और जिनमें से अधिकांश कार्यों में वास्तुकला की एक बहुत ही सामान्य विशेषता इस्लामिक ज्यामितीय और जिल्द प्रतिरूप को भी देखा जा सकता है। जैसा कि हम में से अधिकांश लोग जानते ही हैं कि इस्लामी सजावट में आलंकारिक छवियों का उपयोग करने के बजाए सदियों से ज्यामितीय प्रतिरूपों का उपयोग किया जाता आ रहा है। इस्लामी संस्कृति में, प्रतिरूप को आध्यात्मिक क्षेत्र, मन और आत्मा को शुद्ध करने का साधन माना जाता है।
 
ये प्रतिरूप पहले की संस्कृतियों (ग्रीक(Greek), रोमन(Roman) और सासैनियन(Sasanian)) में उपयोग किए जाने वाले सरल डिजाइनों (Designs) से उत्पन्न हुए थे। इस्लामिक सजावट में इन तीनों में से एक, अन्य अरबी (Arabic) और इस्लामी सुलेख को देखा जा सकता है, वहीं इस्लामिक सजावट में इन तीनों को अक्सर एक साथ उपयोग किया जाता है। इस्लामिक-अरबी सजावट, कलात्मक सजावट का एक ऐसा रूप है, जिसमें सतह पर सजावट के साथ-साथ घुमावदार और जिल्द वनस्पति, लताओं या सादी रेखाओं के आधार पर अक्सर अन्य तत्वों के साथ संयुक्त सजावट की जाती है।
 
साथ ही इस्लामी वास्तुकला में ज्यामितीय डिज़ाइन अक्सर दोहराए गए वर्गों और वृतों के संयोजन से संस्थापित किए जाते हैं, जिन्हें अतिच्छादन और अन्तर्ग्रथित भी किया जा सकता है। इन ज्यामितीय डिज़ाइन से संपूर्ण सजावट जैसे पुष्प या सुलेख अलंकरण के लिए एक रूपरेखा को तैयार कर सकते हैं या अन्य रूपांकनों के आसपास की पृष्ठभूमि में भी उपयोग किया जा सकता है। वहीं जिल्द प्रतिरूप उन पंक्तियों और आकृतियों के पैटर्न हैं जिनमें पारंपरिक रूप से इस्लामी कला का वर्चस्व देखा जा सकता है।
 
इस वास्तुकला में चौथा मूल आकार बहुभुज होता है, जिसमें पंचकोण और अष्टकोण शामिल हैं। इन सभी को संयुक्त करके, प्रतिबिंब और घुमाव के साथ विभिन्न प्रतिरूप बनाए जा सकते हैं। इन प्रतिरूप का निर्माण उन ग्रिडों (grids) पर किया जाता है, जिन्हें बनाने के लिए केवल रूलर (ruler) और कम्पास (compass) की आवश्यकता होती है। जहां वृत के आकार को प्रकृति में एकता और विविधता का प्रतीक माना जाता है, वहीं कई इस्लामी प्रतिरूप एक वृत से शुरू होते हैं।
 
वहीं पश्चिम में कारीगरों और कलाकारों दोनों के बीच इस्लामी ज्यामितीय पैटर्न में काफी रुचि बढ़ रही है। इस्लामी कला और वास्तुकला में कई प्रकार के ज्यामिति पैटर्न शामिल हैं जिनमें किलिम कालीन, फ़ारसी गिरी और मुकर्नस सजावटी वॉल्टिंग (Mukarnas decorative vaulting), चीनी मिट्टी की चीज़ें, चमड़ा, स्टेंड ग्लास (Stained glass), काष्ठकला, और धातुकार्य हैं। प्रमुख पश्चिमी संग्रहालय (Major Western Museum), इस्लामी ज्यामितीय पैटर्न के साथ व्यापक रूप से भिन्न सामग्रियों की कई वस्तुओं को संरक्षित रखे हुए है। पश्चिमी सजावट (Western Decoration) पर इस्लामी सजावट और शिल्प कौशल का एक महत्वपूर्ण प्रभाव तब से ही था, जब वेनिस (Venice) के व्यापारी 14 वीं शताब्दी से आयात करके इटली में कई प्रकार के सामान लाते थे।
संदर्भ :-
1. http://islamicarchitectureinindia.weebly.com/jaunpur-style.html
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Islamic_interlace_patterns
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Islamic_geometric_patterns
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        