 
                                            समय - सीमा 268
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                                            एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ी चित्रकार, थॉमस डेनियल (Thomas Daniel - जो 1790 ईस्वी के आसपास जौनपुर आए थे) द्वारा बनाया गया जौनपुर का एक तैल चित्र हाल ही में सामने आया है। यह एक दिलचस्प चित्र है, जिसमें एक नृत्यांगना जौनपुर के किसी महल में अपने नृत्य का प्रदर्शन करते हुए दिखाई गयी है। यह चित्र नृत्यांगनाओं के पेशे के बारे में अतीत की याद दिलाता है जो 1950 और 60 के दशक तक जारी रहा था। थॉमस डेनियल की चित्रकला के बारे में और अधिक जानकारी आप हमारे इन लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।
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•	https://jaunpur.prarang.in/posts/1814/postname
वहीं हाल के शोध से पता चलता है कि नृत्यांगनाओं द्वारा बड़े पैमाने पर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन किया गया था। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के लिए सूचना के स्रोत के रूप में और यहां तक कि आर्थिक रूप से आंदोलन का समर्थन करते हुए मदद की थी। 1856 में अवध साम्राज्य को ब्रिटिश द्वारा हड़पे जाने के बाद तथा उसके राजा और कई दरबारियों के निर्वासन के बाद नृत्यांगनाओं के लिए शाही सहायता बंद हो गई। वहीं संक्रामक रोगों के नियमों को लागू करने के बाद अंग्रेज़ों ने इन नृत्यांगनाओं को सामान्य तवायफों के रूप में देखना शुरू कर दिया जिससे इनकी आमदनी का गला और भी घुंटने लगा तथा इन पर भरी नियम भी लगाये गए।
 
तभी अचानक नृत्यांगनाओं ने खुद को एक आदर्श परिस्थिति में पाया। जब सैन्य-विद्रोह शुरू हुआ, तब ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा था, और तवायफों ने पर्दे के पीछे से विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाते हुए इसमें भाग लिया। उनके द्वारा अपने निवास स्थान को सैनिकों के लिए बैठक और रक्षागार के रूप में दिया गया और जिनके पास धन था उन्होंने विद्रोहियों को आर्थिक सहायता प्रदान की। साथ ही गांधीजी ने भी भारत की स्वतंत्रता में नृत्यांगनाओं के योगदान को स्वीकार किया है।
 
इनके द्वारा भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में दिए गए योगदान में से एक अज़ीज़ूनबाई की कहानी काफी प्रेरणादायक है। जिस समय भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश अफसरों के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, तब पूरे भारत में तनाव की स्थिति बन गई थी। वहीं भारतीय सैनिक जब कानपुर की घेराबंदी कर रहे थे उस वक्त उनके साथ एक नृत्यांगना भी मौजूद थी। वह नृत्यांगना और कोई नहीं बल्कि अज़ीज़ूनबाई थी जो मर्दाना कपड़ों में, पिस्तौल, पदक से लैस घोड़े पर सवार उनके साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ रही थी। अज़ीज़ूनबाई एक जासूस, खबरी और सेनानी थीं और इनका जन्म लखनऊ में हुआ था। अज़ीज़ूनबाई के अलावा एक और नाम भी है, हुसैनी, जोकि बीबीघर नरसंहार के प्रमुख साजिशकर्ताओं में से एक थी। इसके अलावा ऐसी और कई सौ बहादुर नृत्यांगनाएं होंगी जिन्होंने अपने देश के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी परन्तु आज उनका इतिहास में कोई ज़िक्र नहीं है।
संदर्भ:
1.http://www.artnet.com/artists/william-daniell/a-palace-in-juanpore-india-with-a-nautch-girl-Hiqadq-sO0GWxfoBdW1gJw2
2.https://hindi.thebetterindia.com/26888/lucknow-1857-freedom-women-fighters-courtesans-india-struggle-azeezunbai-history/
3.https://scroll.in/magazine/921715/how-history-erased-the-contribution-of-tawaifs-to-indias-freedom-struggle
4.http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00routesdata/1800_1899/women/nautchphotos/nautchphotos.html
5.http://archiv.ub.uni-heidelberg.de/volltextserver/27037/1/PhD%20Thesis%20Edited%20for%20heiDOK%20PDFA.pdf
6.https://jaunpur.prarang.in/posts/677/postname
7.https://jaunpur.prarang.in/posts/1814/postname
चित्र सन्दर्भ:
1.	http://www.artnet.com/artists/william-daniell/a-palace-in-juanpore-india-with-a-nautch-girl-Hiqadq-sO0GWxfoBdW1gJw2
2.	http://dsal.uchicago.edu/images/image.html
3.	A group of musicians, North India, c.1870's, Source: ebay, Mar. 2010
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        