 
                                            समय - सीमा 268
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                                            भारत कई विविध पर्वों का केंद्र है, और इसलिए साल भर में यहां विभिन्न प्रकार के पर्व मनाये जाते हैं। आज के दिन को हम बैसाखी के पर्व के रूप में मना रहे हैं, जिसमें भारत सहित अन्य देशों में भी कई परंपराओं और समारोहों का आयोजन किया जाता है। इस दिन की जाने वाली विभिन्न परंपराओं में नगर कीर्तन भी शामिल है, जिसे मुख्य रूप से दुनिया भर में रहने वाले सिख समुदाय द्वारा आयोजित किया जाता है। 'नगर कीर्तन’ एक पंजाबी शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ, सामुदायिक या क्षेत्रीय या शहरी कीर्तन है। शब्द "नगर" का अर्थ है "शहर या क्षेत्र," और "कीर्तन" का अर्थ है, शबद (दिव्य भजनों) का गायन। यह परंपरा शहर में पवित्र गायन के माध्यम से सिख संगत द्वारा निभाई जाती है जिसका उद्देश्य गुरू के संदेश को शहर या क्षेत्र के प्रत्येक घर-द्वार तक पहुंचाना है। उन सभी क्षेत्रों में जहां भी सिख निवास करते हैं, वहां नगर कीर्तन करना बहुत आम बात होती है। परंपरागत रूप से, जुलूस का नेतृत्व भगवा-रंजित पंज प्यारों (गुरु के पांच प्यारे) द्वारा किया जाता है, जोकि पवित्र सिख ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब का अनुसरण करते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब को अच्छे से सजायी गयी पालकी पर एक सजे वाहन पर सुशोभित किया जाता है तथा कीर्तन विभिन्न जगहों से होता हुआ गुरुद्वारा पहुंचता है। जुलूस के सदस्य प्रदर्शित धर्मग्रंथ के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हुए अपने सिर को ढंकते हैं और केसरिया रंग के वस्त्र धारण करते हैं। जुलूस से पहले मार्ग को सेवादारों द्वारा साफ कर दिया जाता है।
 
गुरू ग्रन्थ साहिब को सम्मान देने के लिए सभी अपना सिर झुकाते हैं। जुलूस में शामिल होने वाले लोगों को श्रद्धालु भोजन तथा पेय पदार्थ भी निश्चित क्षेत्र बिंदुओं पर वितरित करते हैं। जुलूस का समापन गुरुद्वारे में अरदास (प्रार्थना) के साथ होता है। ऐसा माना जाता है कि नगर कीर्तन की परंपरा बाबा बुद्ध जी द्वारा शुरू की गई थी, जब श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी 40 दिनों की अवधि के लिए जहाँगीर (गवालियर जेल) की जेल में कैद रहे थे। संगत के साथ बाबा जी को श्री गुरु जी से अलग रहना सहन नहीं हुआ और वे संगत का नेतृत्व करते हुए ग्वालियर जा पहुंचे तथा जेल के आसपास नगर कीर्तन करने लगे। ऐसा कहा जाता है कि बाणी कीर्तन (जोतियां वाले शबद) करने और गुरु जी के लिए प्यार प्रकट करने की परंपरा शुरू करने के लिए श्री गुरु जी बेहद प्रसन्न हुए। उस दिन से, सिखों ने गुरु साहिबान के गुरुपर्वों को नगर कीर्तन के साथ मनाना शुरू कर दिया। सिखों ने पाया कि नगर कीर्तन पंथ में एकता लाने और प्रचार करने का एक बड़ा माध्यम था। हाल के इतिहास में, भाई साहिब रणधीर सिंह जी, अपने गले में बाजा लेकर, कीर्तन करते हुए गाँव-गाँव जाते थे। इस तरह की कीर्तन यात्राओं ने बड़े पैमाने पर प्रचार किया। ऐसा कहा जाता है कि बाबा अत्तर सिंह जी मस्तूने वाले (Mastuanay waaley) ने बड़े पैमाने पर नगर कीर्तन को बढ़ावा दिया। उन्होंने कुछ सबसे बड़े नगर कीर्तन कार्यक्रम आयोजित किए।
 
वैसाख के महीने में यह कीर्तन विशेष रूप से आम होता है जिसका नेतृत्व पंज प्यारों द्वारा किया जाता है। नगर कीर्तन तब शुरू किया जाता है जब पंज प्यारे पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के सामने चलते हैं। सिख धर्म में संख्या 5 बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि यह पंज प्यारों या पांच प्यारों की अवधारणा से जुड़ी हुई है। 1699 में वैसाखी के इस दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने भारत के प्रत्येक कोने और अलग-अलग पृष्ठभूमि से 5 स्वयंसेवकों को बपतिस्मा (Baptism) देकर खालसा पंथ का वंशक्रम बनाया। पंज प्यारों की इस अवधारणा की शुरूआत उन्होंने ही की थी। इस दिन उन्होंने निस्वार्थ भाव से अपना जीवन समर्पित करने वाले लोगों का आह्वान किया। ये पंज प्यारे वही थे, जिन्होंने 80,000 लोगों में से आगे आकर उस तम्बू में प्रवेश किया, जहां गुरु गोविंद सिंह ने अपने प्रिय सिखों का सिर मांगा। पंज प्यारों ने उस तम्बू में प्रवेश तो किया लेकिन यह सभी को अचंभित करने वाला था कि वे जीवित शानदार शौर्य वीरता के साथ केसरिया पोशाक और 5 कक्कड़ (kakkars) या काके (kakke) पहने बाहर आये। 5 कक्कड़ (kakkars) या काके सभी बपतिस्मा प्राप्त सिखों द्वारा पहनी गयी आस्था की पाँच वस्तुएँ हैं। गुरु गोबिंद सिंह ने पंज प्यारों को बहुत सम्मान दिया क्योंकि वे पहले अमृतधारी (बपतिस्मा लेने वाले) सिंह थे। पंज प्यारों को गुरू ने स्वयं नमन किया और उनसे अमृत (बपतिस्मा) लिया।
 
इसके बाद पूरी संगत (उपासकों) ने अमृत संचार (Amrit Sanchar) के पवित्र आयोजन में भाग लिया और खालसा पंथ का गठन हुआ। भारत के अलावा ऐसे कई अन्य देश हैं, जहां यह पर्व बहुत मायने रखता है, जैसे पाकिस्तान। यहाँ ऐसे कई स्थल हैं जो सिख धर्म के लिए ऐतिहासिक महत्व के हैं, जैसे कि गुरु नानक जी की जन्मभूमि। ये स्थल हर साल वैसाखी पर देश-विदेश के तीर्थ यात्रियों को आकर्षित करते हैं। पाकिस्तान में भारी मात्रा में सिख रहते थे, लेकिन 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान एक बड़ा बहुमत भारत आ गया। समकालीन पाकिस्तान में लगभग 20,000 सिख हैं, जो वैसाखी का पर्व पांजा साहिब परिसर, ननकाना साहिब गुरुद्वारों और लाहौर में विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों पर बड़े हर्ष-उल्लास के साथ मनाते हैं। इसके अलावा ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, और मलेशिया के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाली आबादी भी बैसाखी के पर्व को धूमधाम से मनाती है तथा नगर कीर्तन का आयोजन करती है।
संदर्भ:
1.	https://en.wikipedia.org/wiki/Vaisakhi#Sikh_celebrations_outside_India
2.	https://en.wikipedia.org/wiki/Nagar_Kirtan
3.	https://www.sikhsangat.com/index.php?/topic/2958-the-history-of-nagar-kirtan/
4.	https://www.sikhiwiki.org/index.php/Nagar_Kirtan
चित्र सन्दर्भ:
1.	Flickr.com – मेक मेल (Mack Male) - वैसाखी नगर कीर्तन सिख परेड
2.	Piqsels.com – वैशाखी नगर कीर्तन
3.	Piqsels.com – वैशाखी
4.	Piqsels.com – वैशाखी नगर कीर्तन
 
                                         
                                         
                                         
                                        