 
                                            समय - सीमा 268
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                                            औद्योगिक विकास के पीछे बिजली, एक रीढ़ की हड्डी की तरह आधुनिक अर्थव्यवस्था को संतुलन प्रदान करती है। भारत प्रचुर प्राकृतिक साधनों से संपन्न देश है और ज्यादातर बिजली थर्मल (Thermal) और पनबिजली संयंत्रों से उत्पादित करता है। कुछ हद तक नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र भी इस काम में थोड़ी बहुत मदद करते हैं, लेकिन फिर भी बहुत से गांव में बिजली पहुंचाना बाकी है। क्योंकि भारत प्रमुख रूप से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है, इसलिए देश के सुदूर, अविकसित क्षेत्रों में बिजली पहुंचाना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत हमारे पशुओं द्वारा निर्मित जैव ईंधन है, जो बायोगैस (Biogas) से चलने वाले संयंत्रों द्वारा सरकार के ग्रामीण विकास पर जोर देने की नीति के तहत बिजली उत्पादन में इस्तेमाल हो रहा है। पशुओं की जनसंख्या भारत में 4.6% बढ़ी है, 2012 में यह 512 मिलियन थी जो 2019 में करीब 536 मिलियन हो गई। हालांकि यह एक मामूली सुधार ही कहा जाएगा, लेकिन गाय जो कुल पशुधन का एक चौथाई भाग है, उनमें 18% की अच्छी वृद्धि हुई है। राज्यवार पशुधन के मामले में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है। भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय की महत्वकांक्षी योजना का ढांचा काफी हद तक साफ और अक्षय ऊर्जा पर आधारित है और भारत की बढ़ती हुई बिजली की मांग को पूरा करने की दृष्टि से बनाया गया है। दुनिया के कुल पशुधन की संपदा के मामले में भारत का नंबर तीसरे स्थान पर है। भारत की गाय की खाद में मीठे तत्व की ऊंची मात्रा होती है और इसे आसानी से बायोगैस में तब्दील किया जा सकता है। इस तरह पशुधन से उत्पन्न खाद भारत में अक्षय ऊर्जा का अक्षय भंडार है। सोचने की बात यह है कि व्यक्तिगत स्तर पर लोग कैसे पशुओं से निर्मित खाद का इस्तेमाल अपने घर में बिजली लाने के लिए प्रेरित होंगे और कितना असरदार होगा यह प्रयास?
 
 
राष्ट्रीय पैमाने पर गोबर से बिजली उत्पादन
1000 पाउंड की दुधारू गाय रोजाना औसतन 80 पाउंड खाद देती है। इसको अगर अमेरिका के 9 मिलीयन दुधारू पशुओं से गुणा करें  तो इससे ढेरों खाद उत्पादन का मामला सामने आता है। डोमिनियन एनर्जी(Dominion Energy)(अमेरिका की बड़ी बिजली उत्पादन कंपनी में से एक है, जिसका मुख्यालय रिचमंड(Richmond) में है) चाहती है कि पशुओं  के इतने बड़े उत्सर्जन में से कुछ हिस्सा अगर बिजली उत्पादन में इस्तेमाल हो सके तो इससे प्रदूषण भी कम होगा। डोमिनियन ने वैनगार्ड रेनेवबल्स (Vanguard Renewables) और डेरी फार्मर्स ऑफ़ अमेरिका (Dairy Farmers of America) के साथ हिस्सेदारी में दूसरा गोबर से बिजली उत्पादन का प्रोजेक्ट शुरू किया है। डोमिनियन एनर्जी का कहना है कि दोनों प्रोजेक्ट इस बात के जबरदस्त उदाहरण है कि नवोन्मेष ( Innovation)  के द्वारा और दूसरे उद्योगों के साथ हिस्सेदारी करके पर्यावरण संबंधी विकास किया जा सकता है। दोनों प्रोजेक्ट में पशुओं की खाद से उत्सर्जित मीथेन गैस का इस्तेमाल घरों को गर्म करने और जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध मुकाबले में किया जा सकता है। इसमें उत्पादित बिजली से लगभग एक लाख अमेरिकी घरों को गर्म किया जा सकता है, साथ ही अमेरिकी खेतों से उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैस(Greenhouse Gas) को कम किया जा सकता है। इसकी कल्पना इस रूप में भी की जा सकती है कि इस प्रयोग के परिणाम  6,50,000 गैर बिजली से चलने वाले वाहनों को सड़क से हटाने या हर साल 50 मिलियन पेड़ों को लगाने के बराबर हैं। एक तरह से इस प्रोजेक्ट के तीन लाभ हैं- उपभोक्ताओं के लिए स्वच्छ ऊर्जा, किसान परिवारों के लिए राजस्व का नया स्रोत और पर्यावरण को होने वाले प्रमुख लाभ।
 
बहस:  पुरानी और नई तकनीक की
मुख्यतः भारत एक खेती आधारित देश है। ज्यादातर आबादी गांव में रहती है, जहां पर प्राकृतिक साधन भरपूर मात्रा में उपलब्ध हैं। पशुधन और उनके द्वारा उत्सर्जित गोबर बायोगैस बनाने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और यह व्यर्थ ही नष्ट हो जाता है। वर्तमान में इस जैव ईंधन के उपयोग से बायोगैस को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करके आधुनिक बड़ी डेयरियों में प्रयोग किया जा रहा है। हालांकि, शुरुआत में किसी नई तकनीक को अपनाने में बहुत ही रुकावटें आती हैं। सबसे बड़ी दिक्कत है नया ढांचा खड़ा करने के लिए आर्थिक व्यवस्था, तार्किक मुद्दे, पुराने और अपर्याप्त अपशिष्ट से निपटाने के तरीके, संग्रह, व्यवस्था और किसी नई चीज को स्वीकार करने में सामान्य तौर पर असहमति। बाधाओं के बावजूद अपशिष्ट आधारित अक्षय ऊर्जा के एक छोटे से हिस्से को अगर सच्चे अर्थों में अमल किया जाए, तो यह ग्रामीण जीवन में क्रांति ला सकती है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की मांग को पूरा कर, उभरते हुए उद्योग जगत के लिए दरवाजे खोल सकती है। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में अपशिष्ट निपटारण के पुराने तरीके अभी भी चलन में हैं, इसलिए नई तकनीक मुश्किल से इसमें जगह बना पा रही है। यह सुधार चरणों में ही संभव है। क्षेत्र में पायलट प्रोजेक्ट का काम शुरू हो चुका है, जरूरत है इनकी अहमियत समझ कर इन्हें समर्थन देने की।
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में बायोगैस के प्लांट को दिखाया गया है। (Pexels)
दूसरे चित्र में गोबरगैस या अक्षय ऊर्जा का स्त्रोत दिखाई दे रहा है। (Wikipedia)
अंतिम चित्र में सामूहिक रूप से व्यवस्थित गोबर गैस के प्लांट दिखाई दे रहे हैं। (Flickr)
सन्दर्भ:
 
https://www.mdpi.com/1996-1073/10/7/847/htm (effectiveness) (abstract and conclusion only)
http://www.sciencepolicyjournal.org/uploads/5/4/3/4/5434385/narayan_2018_jspg.pdf (Abstract and conclusion)(how to gain access,family plants)
https://thehill.com/changing-america/sustainability/energy/480316-turning-cow-waste-into-clean-power-on-a-national-scale
https://timesofindia.indiatimes.com/india/livestock-population-up-by-4-6-cow-count-rises-by-18/articleshow/71622775.cms
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        