तंदूर का इतिहास

स्वाद - भोजन का इतिहास
04-08-2020 08:45 AM
तंदूर का इतिहास

स्वादिष्ट लजीज खाना किसे नहीं पसंद है? हम सभी अपने जीवन में कई प्रकार के व्यंजनों को बनाते और खाते हैं। इन्ही तमाम व्यंजनों में से कई ऐसे व्यंजन हैं, जिनका इतिहास अत्यंत ही दिलचस्प है। हम आये दिन तंदूरी खाने की बात करते रहते हैं, वर्तमान समय में हम सभी तंदूरी खाना तो किसी न किसी अवसर पर खाते ही हैं। तंदूरी खाने में रोटी आदि भी आती है, जिसे की हम आम भाषा में तंदूरी रोटी के नाम से भी जानते हैं। इसके इतिहास के विषय में यदि हम अध्ययन करते हैं तो जो प्रमुख बिंदु हमारे सामने आते हैं, उसके अनुसार यह करीब हड़प्पा काल तक जाता है। इतिहासकारों और पुरातत्वविदों ने प्राचीनतम मांस तैयार करने का जो प्रमाण पाया है, वह हड़प्पा के पुरास्थल से ही प्राप्त हुआ है तथा वह देखने में तंदूरी मुर्गे की तरह ही दिखता है। इसके अलावा कई तथ्य इसकी ऐतिहासिकता के सम्बन्ध में प्रस्तुत किये गए हैं, अब सबसे पहले हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर यह तंदूर होता क्या है?

तंदूर वास्तव में एक बेलनाकार बर्तन या घड़ा है, जिसका उपयोग खाना पकाने आदि के लिए किया जाता है। तंदूर का उपयोग दक्षिणी मध्य (Southern Central) और पश्चिमी एशिया (Western Asia) में खाना पकाने के लिए किया जाता है। तंदूर में मुख्य रूप से लकड़ी और कोयले के आग से खाना पकाया जाता है परन्तु वर्तमान में विद्युत् से भी इसको चलाया जाता है। तंदूर का प्रयोग भारत में प्राचीन काल से होता आ रहा है और प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में मिटटी के चूल्हे में मांस के पकाए जाने का उल्लेख है तथा यहीं से प्राचीनतम मैरिनेट (Marinate) की प्रक्रिया का भी तथ्य हमें प्राप्त होता है, जिसमें सरसों और सुगन्धित मसाले के चूरे का उल्लेख मिलता है।

जैसा कि यह पहले ही बताया जा चुका है कि इसके प्रयोग के अवशेष हड़प्पा और मोहनजोदड़ो पुरास्थल से हमें प्राप्त हुए हैं। जैसा कि हमें पता है कि तंदूर पर शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं तथा प्राचीन काल में भी इसका प्रयोग दोनों ही तरह के खाना बनाने के लिए किया जाता था। भारत में यह परंपरा सदियों से चली आ रही थी परन्तु मुगलों के साम्राज्य के समय में इसमें कई बदलाव हमें देखने को मिले, जिनमें दम देना, खाने के बर्तन को पूर्ण रूप से आंटे आदि से बंद करना शुरू हुआ तथा जहाँगीर बादशाह ने तंदूर को चलायमान बनाया। जहाँगीर के पहले तक तंदूर को एक ही स्थान पर फिक्स (Fix) बनाया जाता था परन्तु बाद में जहाँगीर के समय में ऐसे तंदूर बनाए जाने लगे, जिन्हें अपनी सुविधानुसार कहीं भी ले जाया जा सकता था। 14वीं शताब्दी के कवि अमीर खुसरो तंदूर में बनी रोटी का जिक्र अपनी कविता में भी करते हैं।

वर्तमान समय में प्रसिद्द खाद्य जिसे की तंदूरी चिकन (Tandoori Chicken) के रूप में जाना जाता है का विकास जहाँगीर के समय से चलन में है तथा इसका वर्तमान स्वरुप 19वीं शताब्दी के दौरान पाकिस्तान के पेशावर में मोती महल रेस्तरां में संभव हुआ। वर्तमान समय में यह भोज सम्पूर्ण विश्व भर में फ़ैल चुका है तथा तंदूर के भी कई प्रकार आज हमारे मध्य में मौजूद हैं। वर्तमान समय में बड़े शहरों में प्रदूषण अपने चरम पर है, यहाँ प्रदूषण फैलाने में तंदूर भी एक कारक है। जैसे जैसे इस खाद्य की लोकप्रियता बढ़ी, तो उतने ही अधिक तौर पर इसे उपयोग में लाना भी बढ़ा। तंदूर में मुख्य रूप से भारी मात्रा में लकड़ी आदि का प्रयोग किया जाता है, जिससे भारी संख्या में धुआं निकलता है, जो कि पर्यावरण के लिए सही नहीं है।

सन्दर्भ :
https://en.wikipedia.org/wiki/Tandoor
https://timesofindia.indiatimes.com/life-style/food-news/the-history-of-tandoori-chicken-infographics/articleshow/75203860.cms
http://chefnaim.blogspot.com/2010/12/history-of-tandoor.html
https://www.indiachefatlanta.com/2017/03/15/the-history-and-magic-of-tandoor-cooking/
https://www.hindustantimes.com/delhi/delhi-hotels-restaurants-with-tandoors-serve-pollution/story-9yb3SchFISAk7otY4v1zuL.html

चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में एक भारतीय खानसामा तंदूर में रोटी पकाते हुए दिखाई दे रहा है। (Youtube)
दूसरे चित्र में तंदूरी चिकन को दिखाया गया है। (Prarang)
तीसरे चित्र में तंदूर में पकती हुई रोटी को दिखाया गया है। (Picseql)
चौथे चित्र में विधुत संचालित तंदूर दिखाया गया है। (Flickr)
अंतिम चित्र में एक शादी समारोह में तंदूर को दिखाया गया है। (Youtube)