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भारत में तांबे का उपयोग प्राचीन काल से किया जा रहा है। लोहे की खोज के पहले से ही तांबा ही मानव सभ्यता के विकास का आधार था, इसलिये इतिहास में तांबे का एक प्रमुख स्थान है। भारत में तांबे के सिक्के, मिर्तियां तथा बर्तन आदि प्राचीन काल से ही बनाये जाते आ रहे हैं। माना जाता है कि भारत में तांबे का उपयोग वैदिक युग से होता आ रहा है। हालांकि प्राचीन भारत में तांबे के उपयोग के प्रमाण, लोहे की तुलना में कम देखने को मिलते है। परंतु फिर भी तांबे के अस्तित्व की एक सतत कहानी प्रागैतिहासिक काल से ही भारत में पाई जाती हैं। भारत में ताम्रकाल की कई बस्तियां थी जहां तांबे का उपयोग सीमित मात्रा में किया जाता था। उस समय लोग लोहे के उपयोग से ज्यादा परिचित थे।
नवपाषाण काल के बाद उत्तरी भारत में तांबा के उपयोग अस्तित्व में आये। कहा जाता है कि भारत के मूल गैर-आर्य निवासियों द्वारा तांबे का उपयोग किया जाता था। पूर्व-ऐतिहासिक ताम्र उपकरणों की अनूठी खोज मध्य प्रदेश के गुंगेरिया से प्राप्त हुई थी, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि भारत में प्रागैतिहासिक काल से ही तांबे का उपायोग किया जा रहा है। इसमें 424 तांबे के उपकरण 102 चांदी के पत्तर मिले थे। प्राचीन भारत में ज्ञात तांबे के अयस्कों में से सबसे महत्वपूर्ण कॉपर पाइराइट (Copper Pyrite) था, जिससे तांबा निकाला गया था। 3 शताब्दी ईसा पूर्व से ही तांबे के यौगिक जैसे नीला थोथा या सल्फेट कृत्रिम रूप से तैयार किए जा रहे थे। जो यह दर्शाता है कि भारत में ताबें का उपयोग सदियों से होता आ रहा है। इसके आलावा रांची, बिहार और उड़ीसा की खुदाई से ताम्र औजारों के कई साक्ष्य मिले हैं जो इस बात का संकेत हैं कि भारतवासी तांबे के आरंभिक स्वरूप से परिचित थे।
इसके बाद पूरे भारत में कई जगहों पर तांबे की खानों की खोज की गई थी परंतु समय के साथ साथ इसकी मांग बढ़ती गई, और मांग की आपूर्ति के लिए विदेशों से भारत ने तांबा आयात करना शुरू किया। उस समय नेपाल से प्राप्त तांबा बेहतर माना जाता था। भारत में ऐतिहासिक रूप से तांबे का खनन 2000 वर्ष से अधिक समय से होता आ रहा है। लेकिन औद्योगिक मांग को पूरा करने के लिए इसका उत्पादन 1960 के मध्य से शुरू किया गया था। यह एक तन्य धातु है जिसका प्रयोग वर्तमान में विद्युत के चालक के रूप में प्रधानता से किया जाता है। अधिकाशं बिजली के तारों और उपकरणों का निर्माण ताबें से ही किया जाता हैं। ताबें के उत्पादन में भारत अधिक धनी देश नही है। भारत में तांबे का उत्पादन वैश्विक उत्पादन का केवल 2% है। इसकी संभावित आरक्षित सीमा 60,000 वर्ग किमी (विश्व रिज़र्व का 2%) तक सीमित है, जिसमें 20,000 वर्ग किमी क्षेत्र अन्वेषण के अधीन है। लेकिन उत्पादन में, यह अभी भी दुनिया के पहले 20 देशों में से एक है तथा चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और जर्मनी के साथ भारत तांबे के सबसे बड़े आयातकों में से भी एक है। इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस (Indian Bureau of Mines) द्वारा अप्रैल 2005 के सर्वेक्षण के अनुसार तांबे के अयस्क का कुल भंडार 1394.42 मिलियन टन अनुमानित है। इनमें से 369.49 मिलियन टन (26.5%) 'भंडार श्रेणी' के अंतर्गत आते हैं जबकि शेष 1024.93 मिलियन टन 'शेष संसाधन' श्रेणी आते हैं। विश्व के कुल तांबा उत्पादन में भारत की केवल 2 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, जबकि परिष्कृत तांबे के उत्पादन का लगभग 4% हिस्सेदार है तथा परिष्कृत तांबे की खपत में भारत 7वें स्थान पर है।
भारत में तांबे की प्राप्ति आग्नेय, अवसादी एवं कायन्तरित तीनों प्रकार की चट्टानों से होती है। देश में आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, उड़ीसा, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में ताँबा के प्रमुख क्षेत्र विद्यमान है। यहां पर खनन ओपनकास्ट (Opencast) और भूमिगत दोनों तरीकों से किया जाता है। देश में झारखण्ड राज्य का सिंहभूमि ज़िला, मध्यप्रदेश का मलांजखंड और राजस्थान का खेतड़ी क्षेत्र ताँबा उत्खनन की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। देश में अभी भी आवश्यकता से कम ताँबा उत्खनित किया जाता है, अतः इनकी पूर्ति के लिए विदेशों से इसका आयात करना पड़ता है।
दुनियाभर में कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वालों की संख्यया का आंकड़ा सैंकड़ों तक पहुचं चुका है। जहाँ एक तरफ देश कोरोना वायरस से जूझ रहा था, वहीं दूसरी तरफ विश्व की अस्थिर राजनीति ने भारत की तांबे की कमी को जन्म दिया है और भारत की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। इस अस्थिर राजनीति का असर सभी देशों के राजनयिक और व्यापारिक संबंधों पर भी पड़ा है। चीन (जो वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी भंडार का 90 प्रतिशत हिस्सा नियंत्रित करता है) ने भारत की दुर्लभ पृथ्वी की निर्भरता को दूर करने की कोशिशों को बढ़ा दिया है। हाल ही में चीन ने चेतावनी दी कि अमेरिका को दुर्लभ पृथ्वी खनिजों से दूर कर सकता है, जो इलेक्ट्रिक कारों और मोबाइल फोन में व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं। ऐसे में बहुत संभव है कि चीन भारत को निर्यात होने वाले दुर्लभ पृथ्वी खनिजों पर प्रतिबंध लगा सकता है। इस माहौल में, भारत अपनी औद्योगिक धातुओं पर आपूर्ति निर्भरता की दीर्घकालिक निर्माण योजनाओं को लेकर चितिंत हैं क्योंकि देश में तांबे की खपत तेजी से बढ़ी है और हमारे पास तांबे के भंडार कम हैं।
आज घरेलू विद्युत तारों, केबलों, मोटर पंपों से लेकर अक्षय ऊर्जा उत्पादन तक में तांबे का उपयोग होता है। भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त तांबे का उत्पादन करने का तरीकें खोजने की जरूरत है। सरकार यदि इस कमी को दूर करने के लिये स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (Sterlite Industries) (तमिलनाडु का एक कॉपर प्लांट, जो जमीन के अंदर से तांबा निकालती है, बॉक्साइट और जिंक का भी खनन करती है) को शुरू करने की अनुमति दे भी दे तो विडंबना यह है कि इस प्लांट की वजह से यहां कई तरह की गंभीर बीमारियां हो रही हैं, और इस इंडस्ट्रीज पर पहले से ही कई सरकारी निकायों द्वारा मानदंडों का उल्लंघन करने का आरोप है कि इससे निकले अपशिष्टों के कारण प्रदूषण बढ़ा हैं। ऐसे में लोगों का विश्वास जीतना और नई नितियों में निवेश करना सरकार की जिम्मेदारी है। ताकि ताबें के उत्पादन के साथ-साथ प्रदूषण भी रोका जा सकें। आज एक घटक जो सभी प्रकार औद्योगिक क्षेत्रों में आवश्यक है वो है ताबां, इस लिये भारत को भविष्य बेहतर बनाने के लिये तांबे की जरूरत है।
भारत को बनना होगा आत्मनिर्भर
वर्तमान में विज्ञान और तकनीकी विकास से जुड़े हर बुनियादी क्षेत्र में ताबां बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। कोरोना वायरस ने देश को आत्मनिर्भर बनना सिखा दिया है। इसी से सीख लेते हुए अब भारत को चीन या किसी अन्य देश पर निर्भर ना रहते हुए देश में ही ताबें का प्रसंस्करण करना चाहिए। अब समय आ गया है कि भारत ताबें के उत्पादन और पुन: उपयोग की योजनाओं पर ध्यान दे इस क्षेत्र में भी सशक्त बने।