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गरुड़ मानव सदृश एक बहुत बड़ा पक्षी होता है जिसकी अनेक धर्मों में बड़ी मान्यता है। गरुड़ को पक्षियों का राजा माना जाता है, इसलिए मंदिरों में इसका महत्वपूर्ण स्थान होता है हिंदू धर्म में इसे भगवान विष्णु की सवारी माना जाता है और यह नाग प्रजाति का प्रबल शत्रु होता है। इन सारी भूमिकाओं के कारण गरुड़ दक्षिण पूर्व एशिया की विभिन्न कला, वास्तु शास्त्र और विभिन्न सभ्यताओं का प्रतिनिधि प्रतीक बन गया है। गरुड़ के अनेक चेहरे हैं जो तमाम धर्मों में विविधता के साथ प्रचलन में हैं।
 गरुड़: एक नजर में:
गरुड़: एक नजर में: 
गरुड़ का आकार आधा मनुष्य और आधा पक्षी का मिलाजुला स्वरूप है। इसकी तुलना  चील या पतंग से की जा सकती है। गरुण का धड़  मनुष्य का है लेकिन उसके पंख ,पंजे, सिर  और चोंच  पक्षी की तरह होते हैं। कुछ अवसरों पर जब वह सिर्फ भगवान विष्णु का वाहन होता है तो वह पूरी तरह पक्षी लगता है। गरुड़ के चित्रण में सुनहरा धाड़, लाल पंख और सफेद चेहरा दिखाया जाता है। उसके पैरों की संख्या 2 से 8 में बदलती रहती है। अगर उसके पैरों में नाग नजर आते हैं तो यह साबित हो जाता है कि यह गरुड़ ही है। गरुड़ का शरीर विशाल होता है। कुछ विवरण में उसके पंख को मीलों लंबा बताया गया है जबकि कुछ में उसे इतना बड़ा बताया गया है कि सूर्य को ढक ले।
 विभिन्न धर्मों में गरुड़
विभिन्न धर्मों में गरुड़
हिंदू धर्म
हिंदू धर्म में गरुड़ पुराण की बहुत मान्यता है जिसमें गरुड़ एक प्रमुख देवता है जो भगवान विष्णु का वाहन है। गरुड़ की कहानी प्राचीन संस्कृत महाकाव्य महाभारत में भी बताई गई है। गरुड़ विनीता की दूसरी संतान थे जो जन्म से ही विशाल और शक्तिशाली थे। एक शर्त हार जाने पर गरुड़ की मां अपनी बहन कदरु और उसके बच्चों यानी नागों की दास्ता का शिकार हो गई। गरुड़ अपनी मां की मुक्ति के लिए प्रतिबद्ध था, उधर नागों ने शर्त रखी कि बदले में उन्हें अमर होने के लिए अमृत चाहिए। गरुड़ ने स्वर्ग जाकर देवताओं से युद्ध करके अमृत हासिल किया। अब गरुड़ ने चाल चली की मां के आजाद होने के बाद भी नागों को अमृत पीने से रोका। इसके बाद से गरुड़ नाग का शत्रु हो गया और सारी जिंदगी उसने नागों का भक्षण किया। स्वर्ग से वापस आते समय गरुड़ की भेंट भगवान विष्णु से हुई और उसने उनका वाहन बनना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार गरुड़ अमर हो गया और उसे हिंदू धर्म में अमिट महत्व प्राप्त हो गया। कुछ हिंदू आख्यान में बताया गया है कि गरुड़ सूर्य की किरणों का प्रतिनिधि है। उसके पिता सात प्रमुख ऋषि में से एक थे। ऐसा भी मानना है कि गरुड़ ने इंद्र से अमृत चुराया था, जिसे वापस लेने के युद्ध में गरुड़ ने इंद्र का वज्र तोड़ दिया था।
बौद्ध धर्म
बौद्ध पौराणिक कथाओं में गरुड़ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गरुड़ को एक अकेला प्राणी मानने के बजाय बौद्ध धर्म में उसे एक विशिष्ट समूह में रखा गया है- विशाल, बुद्धिमान पक्षी जिसमें कुछ मनुष्यों जैसे गुण भी हैं। यह समूह अपने पंख के फड़फड़ाने से तूफान ला सकते हैं, पेड़ों को जड़ों से उखाड़ सकते हैं। बौद्ध धर्म के अंदर गरुड़ मैं बहुत तरह के मानवीय गुण होते हैं जैसे कि शहरों का निर्माण और राजशाही में रहना। कभी-कभी गरुड़ पूरे मनुष्य के रूप में भी आ जाते हैं जब यह मनुष्यों से मिलते जुलते हैं। हिंदू धर्म में गरुड़ और नाग में शत्रुता दिखाई जाती है, जबकि बौद्ध धर्म इन दोनों के बीच शांति स्थापित करता है। 
जैन धर्म
जैन शास्त्रों और पौराणिक ग्रंथों में गरुड़ को यक्ष शांतिनाथ के अभिभावक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जैन मूर्तियों में गरुड़ को मनुष्य के रूप में पंख और चक्र के साथ दर्शाया गया है।
 गरुड़ का सांस्कृतिक महत्व
गरुड़ का सांस्कृतिक महत्व
हिंदू और बौद्ध धर्म में प्रमुख भूमिका निभाने के साथ साथ गरुड़ दक्षिण पूर्व एशिया की संस्कृति में पूरी तरह छाए हुए हैं। इनमें गरुड़ की छवि बेहद शक्तिशाली और विद्वान के रूप में अंकित है। एक रक्षक के रूप में यहां गरुड़ पहचाने जाते हैं। अपने विशाल शरीर, गति और मजबूत पंख के कारण इन्हें शक्तिशाली योद्धा माना जाता है। भारत और थाईलैंड (Thailand) के मंदिरों में गरुड़ की मूर्तियां विष्णु भगवान के वाहन के रूप में दिखाई देती हैं, लेकिन नाग से उनकी शत्रुता के कारण उन्हें नाग से रक्षा करने वाला भी माना जाता है।
प्रतीक के रूप में गरुड़:
गरुड़ की शक्तिशाली पहचान उन्हें राष्ट्रीय चिन्ह से भी जोड़ती है। थाईलैंड (Thailand) और इंडोनेशिया (Indonesia) में गरुड़ राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के रूप में सम्मानित हैं। थाईलैंड के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह में गरुड़ को एक पारंपरिक गरुड़ के रूप में दिखाया गया है- उसका धड़ मनुष्य की तरह है, पंजे, पंख और चोंच चील की तरह है और इनका रंग लाल और सुनहरा है। इंडोनेशिया के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह में एक सुनहरा पक्षी दिखाया गया है जो जावा की चील से मिलता जुलता है। गरुड़ दूसरे बहुत से दक्षिण पूर्व एशियाई संस्थानों, खासकर सैनिक मुख्यालय का प्रतीक चिन्ह है। गरुड़ नाम से एक विमान सेवा भी है। इस नाम का योग में एक आसन भी है। वीडियो गेम, कॉमिक किताब, दूरदर्शन धारावाहिक और ताश के खेल में डिजीमोन (Digimon) और यू-गी-ओह (yu -gi-oh!) गरुड़ की छाप से प्रभावित हैं। गरुड़ और नाग की कहानी कई रूप में प्रचलित है। नाटक और कठपुतलियों के प्रदर्शन में भी इसका प्रयोग होता है।
अविस्मरणीय गरुड़
गरुड़ के भगवान विष्णु से संबंध को इस रूप में भी देखा जाता है कि एक हिंदू देवता जो अन्याय के विरुद्ध लड़ता है और अपने विभिन्न अवतारों में पाप को नष्ट करता है ताकि धर्म की रक्षा हो सके- उसके साथ उन्होंने गरुड़ को एक प्रतिष्ठित पहचान दिलाई। उसके चील जैसे स्वरूप ने उसके दैवी स्वरूप को स्थापित किया। बहुत से राजसी सिक्कों पर अंकित गरुड़ की छवि चाहे 1 सिर वाले पक्षी या 3 सिर वाले पक्षी के रूप में हो; वह यह दर्शाती है कि सारी दिशाओं पर उसकी नजर है। महाभारत में द्रोणाचार्य गरुड़ नाम से सेना का गठन करते हैं। भगवान कृष्ण अपनी पताका पर गरुड़ का चित्र धारण करते हैं।
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        