 
                                            समय - सीमा 268
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                                             कासफ़-उल-महज़ोब सूफीवाद पर सबसे प्राचीन और अद्वितीय फारसी (Persian) ग्रंथ है, जिसमें अपने सिद्धांतों और प्रथाओं के साथ सूफीवाद की पूरी पद्धति मौजूद है। केवल इतना ही नहीं अली हजवेरी द्वारा स्वयं अपने इस लेख के प्रति व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को दिखाया गया है। अनुभवों द्वारा प्रस्तुत करके इसमें रहस्यमय विवादों और वर्तमान विचारों को भी चित्रित किया गया है। इस पुस्तक ने कई प्रसिद्ध सूफी संतों के लिए ‘वसीला' (आध्यात्मिक उत्थान का माध्यम) के रूप में काम किया है। यही कारण है कि चिश्ती आदेश के एक प्रमुख संत, मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी ने एक बार कहा था कि एक महत्वाकांक्षी मुरीद जिसके पास मुर्शिद नहीं है, उसे अली हुज्जिरी की पुस्तक कासफ़-उल-महज़ोब को पढ़ना चाहिए, क्योंकि वह उसे आध्यात्मिक रूप से मार्गदर्शन प्रदान करेगी। 
ऐसा माना जाता है कि अली हुज्जिरी की यह रचना ग़ज़ना, अफगानिस्तान (Ghazna, Afghanistan) में छूट गई थी, जिस वजह से उन्हें इस पुस्तक को लिखने में काफी समय लगा था।  ज्ञान प्राप्ति के लिए उन्होंने सीरिया (Syria), इराक (Iraq), फारस, कोहिस्तान (Kohistan), अजरबैजान (Azerbaijan), तबरिस्तान (Tabaristan), करमान (Kerman), ग्रेटर खोरासन (Greater Khorasan), ट्रान्सोक्सियाना (Transoxiana), बगदाद (Baghdad) जैसी जगहों पर कम से कम 40 वर्षों तक यात्रा की थी। बिलाल ( Bilal - दमिश्क, सीरिया (Damascus, Syria)) और अबू सईद अबुल खैर (Abu Saeed Abul Khayr - मिहान गांव, ग्रेटर खोरासन (Mihne village, Greater Khorasan)) के मंदिर में उनकी यात्रा का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान कई सूफियों से मुलाकात की, उनसे मिलने वाले सभी सूफी विद्वानों में से, उन्होंने दो नामों “शेख अबुल अब्बास अहमद इब्न मुहम्मद अल-अश्कानी और शेख अबुल कासिम अली गुरगानी” का उल्लेख बेहद सम्मान के साथ किया है।
कासफ़-उल-महज़ोब सूफीवाद पर सबसे प्राचीन और अद्वितीय फारसी (Persian) ग्रंथ है, जिसमें अपने सिद्धांतों और प्रथाओं के साथ सूफीवाद की पूरी पद्धति मौजूद है। केवल इतना ही नहीं अली हजवेरी द्वारा स्वयं अपने इस लेख के प्रति व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को दिखाया गया है। अनुभवों द्वारा प्रस्तुत करके इसमें रहस्यमय विवादों और वर्तमान विचारों को भी चित्रित किया गया है। इस पुस्तक ने कई प्रसिद्ध सूफी संतों के लिए ‘वसीला' (आध्यात्मिक उत्थान का माध्यम) के रूप में काम किया है। यही कारण है कि चिश्ती आदेश के एक प्रमुख संत, मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी ने एक बार कहा था कि एक महत्वाकांक्षी मुरीद जिसके पास मुर्शिद नहीं है, उसे अली हुज्जिरी की पुस्तक कासफ़-उल-महज़ोब को पढ़ना चाहिए, क्योंकि वह उसे आध्यात्मिक रूप से मार्गदर्शन प्रदान करेगी। 
ऐसा माना जाता है कि अली हुज्जिरी की यह रचना ग़ज़ना, अफगानिस्तान (Ghazna, Afghanistan) में छूट गई थी, जिस वजह से उन्हें इस पुस्तक को लिखने में काफी समय लगा था।  ज्ञान प्राप्ति के लिए उन्होंने सीरिया (Syria), इराक (Iraq), फारस, कोहिस्तान (Kohistan), अजरबैजान (Azerbaijan), तबरिस्तान (Tabaristan), करमान (Kerman), ग्रेटर खोरासन (Greater Khorasan), ट्रान्सोक्सियाना (Transoxiana), बगदाद (Baghdad) जैसी जगहों पर कम से कम 40 वर्षों तक यात्रा की थी। बिलाल ( Bilal - दमिश्क, सीरिया (Damascus, Syria)) और अबू सईद अबुल खैर (Abu Saeed Abul Khayr - मिहान गांव, ग्रेटर खोरासन (Mihne village, Greater Khorasan)) के मंदिर में उनकी यात्रा का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान कई सूफियों से मुलाकात की, उनसे मिलने वाले सभी सूफी विद्वानों में से, उन्होंने दो नामों “शेख अबुल अब्बास अहमद इब्न मुहम्मद अल-अश्कानी और शेख अबुल कासिम अली गुरगानी” का उल्लेख बेहद सम्मान के साथ किया है।  यह रचना खुद को रूढ़िवादी सूफ़ीवाद के विभिन्न पहलुओं के परिचय के रूप में प्रस्तुत करती है, और इस्लामी समुदाय के महानतम संतों की जीवनी भी प्रदान करता है। इस पुस्तक में, अली हुज्जिरी सूफीवाद की परिभाषा को संबोधित करते हैं और कहते हैं कि इस युग में, लोग केवल आनंद की तलाश में रहते हैं और भगवान को संतुष्ट करने के लिए दिलचस्पी नहीं रखते हैं। मूल रूप से फारसी में लिखी गई इस पुस्तक का पहले ही विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। कासफ़-उल-महज़ोब की पांडुलिपियां कई यूरोपीय (European) पुस्तकालयों में संरक्षित हैं। इसे उस समय के भारतीय उपमहाद्वीप के लाहौर में शिलामुद्रण किया गया था। रेनॉल्ड ए. निकोल्सन (Reynold A. Nicholson) द्वारा कासफ़-उल-महज़ोब का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था। कासफ़-उल-महज़ोब अली हुज्जिरी का एकमात्र ऐसा कार्य है, जो आज तक हमारे बीच मौजूद है।
यह रचना खुद को रूढ़िवादी सूफ़ीवाद के विभिन्न पहलुओं के परिचय के रूप में प्रस्तुत करती है, और इस्लामी समुदाय के महानतम संतों की जीवनी भी प्रदान करता है। इस पुस्तक में, अली हुज्जिरी सूफीवाद की परिभाषा को संबोधित करते हैं और कहते हैं कि इस युग में, लोग केवल आनंद की तलाश में रहते हैं और भगवान को संतुष्ट करने के लिए दिलचस्पी नहीं रखते हैं। मूल रूप से फारसी में लिखी गई इस पुस्तक का पहले ही विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। कासफ़-उल-महज़ोब की पांडुलिपियां कई यूरोपीय (European) पुस्तकालयों में संरक्षित हैं। इसे उस समय के भारतीय उपमहाद्वीप के लाहौर में शिलामुद्रण किया गया था। रेनॉल्ड ए. निकोल्सन (Reynold A. Nicholson) द्वारा कासफ़-उल-महज़ोब का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था। कासफ़-उल-महज़ोब अली हुज्जिरी का एकमात्र ऐसा कार्य है, जो आज तक हमारे बीच मौजूद है।  
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        