इस्लाम और रमज़ान का एक महत्वपूर्ण पहलू : निय्याह

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
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इस्लाम और रमज़ान का एक महत्वपूर्ण पहलू : निय्याह


प्रत्येक वर्ष नए साल में हम में से अधिकांश लोग जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए नए साल का संकल्प लेते हैं। ऐसे ही लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हम जितना आगे बढ़ते हैं, उस समय में एक बार रुक कर हमें उन नीयतों पर फिर से विचार करना चाहिए जो हमें हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं। हमेशा अपने लक्ष्यों को पूरा करने में जल्दबाजी करने के बजाए उन्हें पूरा करने के पीछे के उद्देश्य की पहचान करना अच्छा अभ्यास है ताकि हम उसका अधिक लाभ उठा सकें। नीयत प्रत्येक क्रिया की जड़ हैं, यह हमारे द्वारा किसी कार्य को करने के अंतर्निहित उद्देश्यों को दर्शाता है। इस्लाम में बताया गया है कि, प्रत्येक कार्य को नीयत से आंका जाता है, अरबी (Arabic) शब्द ‘निय्याह’ (जिसका अभिप्राय नीयत से है), का इस्लाम में विशेष महत्व है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे कर्मों का मूल्य अल्लाह द्वारा हमारी नीयत के आधार पर आंका जाता है। निय्यत (Niyyat) और इसके एकवचन यानि निय्याह (niyyah) की इस्लाम धर्म और किसी भी व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक महत्ता होती है। इसका अर्थ दो चीजों की ओर इशारा करता है, पहला वस्तु और दूसरा इरादा। यह एक इस्लामी अवधारणा है जिसका तात्पर्य अल्लाह के लिए अच्छा कार्य करने के इरादे से है। इरादा, इस्लाम और रमज़ान का बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है।
इरादे से तात्पर्य यह है कि आपने किसी कार्य को करने का निश्चय किया तथा अब आप यह प्रार्थना करते हैं कि अल्लाह उस कार्य को पूरा करने में आपकी मदद करेगा। यहाँ तक कि कुछ नेक करने के इरादे के लिए आपको पुरस्कृत भी किया जायेगा। इस्लाम धर्म के कई विद्वान मानते हैं कि इरादा रमजान के दौरान उपवास या रोज़े करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। यदि आपके द्वारा उपवास करने से पूर्व कोई इरादा नहीं किया गया है तो आपका उपवास मान्य नहीं होगा। प्रत्येक दिन रखे जाने वाले रोज़े में यह आवश्यक नहीं है कि आप हर दिन कोई इरादा लें, पहले दिन किया गया इरादा ही पर्याप्त होता है, किन्तु यदि रोजा बीच में किसी कारण वश टूट जाता है, तब पुनः इरादा करके रोजा रखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि आप अपने इरादे को मुंह से बाहर बोले, आप इसे दिल से मौन रहकर करते हैं तो भी यह पर्याप्त होता है।
पैगम्बर ने कहा है कि अच्छे कर्म किये जाने चाहिए किन्तु अल्लाह उसे तब ही कबूल करता है जब उसे इरादे के साथ किया जाता है। कोई भी व्यक्ति जो उपवास के लिए सुबह होने से पूर्व इरादा नहीं करता उसका उपवास मान्य नहीं है। अल्लाह द्वारा दिया जाने वाला ईनाम इरादे पर ही निर्भर करता है। प्रत्येक व्यक्ति को उसके इरादे के अनुसार ही पुरस्कृत किया जाता है। वैधानिक अर्थों में निय्याह ह्रदय का वह इरादा है जो प्रार्थना कार्य के दौरान ईश्वर या अल्लाह के करीब होने के लिए किया जाता है। एक मुसलमान को प्रार्थना शुरू करने से पहले और हज (Hajj - मक्का की तीर्थयात्रा) शुरू करने से पहले निय्याह करना आवश्यक है। इबादत, जैसे कि पांच बार प्रार्थना करना, उपवास, ज़काह, और हज, एक मुस्लिम से शुद्ध समर्पित निय्याह की माँग करता है, ताकि एक वैध इबादत की स्थिति को प्राप्त किया जा सके। यदि कोई व्यक्ति सुबह जल्दी उठता है और सुबह के अपने सभी धार्मिक कार्यों को सुचारू रूप से करता है किन्तु यदि उन कार्यों के साथ इरादा न हो, तो वह सभी कार्यों को 'सुबह की दिनचर्या' के रूप में करता है।
इस प्रकार उसके धार्मिक कार्य इबादत के रूप में अमान्य हो जाते हैं, क्योंकि वह उन सभी कार्यों को एक दिनचर्या के रूप में कर रहा था न कि एक धर्मी मुसलमान के रूप में अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए। आस्तिक के निय्याह को अहंकार और स्वार्थ से मुक्त होना आवश्यक है। अन्यथा, यह बाहरी अच्छा काम ईश्वर के लिए अमान्य माना जाएगा। निय्याह केवल एक मुस्लिम की इबादत का महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं है, बल्कि यह उसके दैनिक जीवन और पारस्परिक संबंधों में भी शामिल है। किसी मुस्लिम के जीवन में उसके द्वारा की जाने वाली साधारण गतिविधियों का भी धार्मिक मूल्य हो सकता है यदि वह उनके लिए निय्याह का अभ्यास करता है। उदाहरण के लिए, एक मुसलमान के दैनिक भोजन को इबादत माना जा सकता है जब निय्याह या इरादा न केवल शारीरिक भूख मिटाने का हो बल्कि ये प्रदाता के रूप में परमात्मा को भी प्रतिबिंबित करें। विद्वानों का कहना है कि भगवान को दैनिक रोटी की भांति अपने उपहार के लिए तीन चीजों की आवश्यकता होती है, दिक्र-फ़िक्र-सुक्र (Ḏikr-fikr-šukr)। इस सन्दर्भ में दिक्र से तात्पर्य परमात्मा का नाम लेकर भोजन की शुरूआत करने से है। सुक्र परमात्मा की प्रशंसा करने और फ़िक्र परमात्मा की कृपा, दया और शक्ति को पहचानने के लिए खाने के दौरान आध्यात्मिक प्रतिबिंब को संदर्भित करता है।

भगवान से निकटता प्राप्त करने के लिए शुद्ध इरादे विभिन्न रूपों में हो सकते हैं। कुछ को दूसरों की तुलना में अधिक मूल्य रखने के लिए माना जाता है। निम्नलिखित इरादों के कुछ सामान्य रूप हैं:
न्याय के दिन का डर : न्याय का दिन विश्वासियों के लिए पूजा का एक अच्छा इरादा है। मुसलमान बुरे कामों से दूर रहते हुए अच्छे कामों को करने का संकल्प रखें। ऐसा इसलिए है क्योंकि पुनरुत्थान के दिन उनके सभी सांसारिक कार्यों को तौला जाएगा।
इनाम के लिए लक्ष्य : एक अच्छे इरादे से पूजा करने का एक अन्य लक्ष्य है उसके बाद प्राप्त होने वाला बड़ा इनाम। स्वर्ग के सुख का उल्लेख पवित्र कुरान के छंदों में बार-बार किया गया है, क्योंकि जो लोग सीधे रास्ते पर कार्य करते हैं, वे धार्मिक कर्म करते हैं और अल्लाह में दृढ़ विश्वास रखते हैं। इस्लाम में इरादा का यह बिंदु बहुत महत्वपूर्ण है।
आशीर्वाद के लिए आभारी : पूजा में एक अद्भुत और नेक इरादे अल्लाह के प्रति आभार प्रकट करते हैं कि उनका अनगिनत आशीर्वाद हम सभी को मिले।
सभी मुसलमानों को अपने इरादों को शुद्ध रखने का विश्वास रखना चाहिए। तभी वे अपने भगवान द्वारा किसी भी भक्तिपूर्ण कार्य के लिए पुरस्कृत होने की उम्मीद कर सकते हैं। इसलिए दैनिक जीवन में किये जाने वाले कार्य में इरादे का होना आवश्यक है, क्योंकि यह मनुष्य को परमात्मा के और भी करीब कर देता है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3wvWlOT
https://w.tt/31PTvpW
https://bit.ly/3ukAg3O
https://bit.ly/3sU6QJI
https://bit.ly/3uqRxZj
https://bit.ly/3fOeaTo

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में मुस्लिम बच्चों को पढ़ते हुए दिखाया गया है। (प्रारंग)
दूसरा चित्र हज की रस्मों को दर्शाता है। (फ़्लिकर)
तीसरा चित्र एक व्यक्ति को प्रार्थना करते हुए दिखाता है। (अनस्प्लैश)