भारत में सदियों से घर घर जाकर काबुलीवाला बेचता रहा है अफ़ग़ान मेवा मसाले और काबुली चने

स्वाद - भोजन का इतिहास
01-09-2021 10:30 AM
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भारत में सदियों से घर घर जाकर काबुलीवाला बेचता रहा है अफ़ग़ान मेवा मसाले और काबुली चने

भारतीय शहर कोलकाता (कलकत्ता) में हजारों अफगान दशकों से रह रहे हैं। 1892 में, भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता, रबिन्द्रनाथ टैगोर ने प्रतिष्ठित लघु कहानी, काबुलीवाला लिखी थी। यह एक दूर देश अफगानिस्तान (Afghanistan) के एक व्यक्ति की कहानी थी, जो पश्चिम बंगाल राज्य की राजधानी कोलकाता में रह रहा था। दरसल पिछली शताब्दी में, इस व्याख्या ने बंगाल और उसके बाहर के अफगानों की अद्भुत छवि को आकार देने में मदद की है। माना जाता है कि पुरुषों में आमतौर पर विशिष्ट विशेषताएं होती हैं,उनकी काफी तेज आँखें और रूखा चेहरा होता है। अपने पारंपरिक परिधान पहने उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि वे हजारों मील दूर अपनी मातृभूमि से दूर रह रहे हैं।कोलकाता के अफगानों को अभी भी लोग टैगोर की कहानी काबुलीवाला के नाम से बुलाते हैं, जिसका अर्थ है "काबुल के लोग"।
अपने देश के मसालों, सूखे मेवों और इत्र से लैस, पहले काबुलीवाले घर-घर जाकर अपना माल बेचते थे। दशकों से, वे शहर के बुराबाजार क्षेत्र में सिलाई की दुकानों की स्थापना सहित अन्य व्यवसायों को चला रहे हैं।इनकी सदियों पुराने रीति-रिवाज और परंपराएं पीढ़ियों को जोड़ते हैं और यह अल्पज्ञात समुदाय को चलते रहने का हौसला देती हैं। हालांकि आज 16 मिलियन की आबादी वाले शहर कोलकाता में केवल 5,000 काबुलीवाला परिवार हैं।
वहीं शुरुआती दौर में अफगानिस्तान के लोग देश में चने बेचते थे।उन्हीं के नाम पर उनकी तरफ से बेचे गए चनों को लोग काबुली चने कहने लगे और धीरे-धीरे सफेद चनों को काबुली चने के नाम से जाना जाने लगा। गरबेन्ज़ोबीन्स (Garbanzo beans) या 'काबुली' चना हल्के रंग के, बड़े और चिकने परत वाले होते हैं, और मुख्य रूप से भूमध्यसागरीय, दक्षिणी यूरोप (Europe), उत्तरी अफ्रीका(Africa), दक्षिण अमेरिका (America) और भारतीय उपमहाद्वीप में उगाए जाते हैं। जब इसे 18 वीं शताब्दी में भारत में पेश किया गया था,तब ऐसा माना जाता था कि ये किस्म काबुल, अफगानिस्तान से आई थी।चना, चटनी और चना मसाला में एक प्रमुख सामग्री है, और इसे फलाफेल (Falafel) बनाने के लिए आटे में पिसा जा सकता है। इसका उपयोग सलाद, सूप (Soups), करी और अन्य खाद्य उत्पादों जैसे छोले की सब्जी में भी किया जाता है। भारतीय, भूमध्यसागरीय और मध्य पूर्वी व्यंजनों में चना महत्वपूर्ण है।
2019 में, वैश्विक चने के उत्पादन में भारत का 70% हिस्सा था। सिसर रेटिकुलटम (Cicer reticulatum) छोले का जंगली जनक है, और वर्तमान में केवल दक्षिण-पूर्व तुर्की (Turkey) में उगता है, जहाँ माना जाता है कि उन्हें घरेलू रूप से उगाया गया था। तुर्की और लेवेंट (Levant) में प्री-पॉटरी नियोलिथिक बी (Pre-Pottery Neolithic B - 9900–9550 BP) स्थलों पर घरेलू छोले पाए गए हैं।चना तब भूमध्यसागरीय क्षेत्र में लगभग 6000 ईसा पूर्व और भारत में लगभग 3000 ईसा पूर्व में फैल गया। 1793 में, एक जर्मन (German) लेखक ने यूरोप में कॉफी के विकल्प के रूप में भुने हुए छोले का जिक्र किया था। प्रथम विश्व युद्ध में, वे जर्मनी के कुछ क्षेत्रों में इस उपयोग के लिए उगाए गए थे। उन्हें अभी भी कभी-कभी कॉफी (Coffee) के बजाय उपयोग किया जाता है। पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी के प्राचीन भारतीय साहित्य पुराणों में, छोले को संस्कृत में चेन्नुक के रूप में जाना जाता था। भारतीय उपमहाद्वीप की अधिकांश संस्कृत-व्युत्पन्न भाषाओं में छोले को चना कहा जाता है। भारतीय व्यंजनों में छोले की बहुमुखी प्रतिभा का दृष्टान्त शाहजहाँ(1628 से 1658 तक भारत के मुगल सम्राट) द्वारा दिया गया। अपने साथ कैद में ले जाने के लिए एक खाद्यान्न का चयन करते समय उन्होंने छोले का चयन किया क्योंकि इसका उपयोग कई सारे व्यंजनों की तैयारी में किया जा सकता है।
चने का पौधा 20–50 सेंटीमीटर ऊँचा होता है और तने के दोनों ओर छोटे, पंख वाले पत्ते होते हैं। चना एक प्रकार की दाल है, जिसमें एक बीज की फली में दो या तीन बीज होते हैं। इसमें नीले, बैंगनी या गुलाबी लतों वाले सफेद फूल होते हैं। विश्व भर में छोले की दर्जनों किस्मों की खेती की जाती है। सामान्य तौर पर, अमेरिकी (American) और ईरानी (Iranian) छोले भारतीय छोले की तुलना में अधिक मीठे होते हैं। 8 और 9 के आकार में केरमानशाह छोले दुनिया में उच्चतम गुणवत्ता वाले माने जाते हैं।
देसी चना जैसा कि उत्तर भारत में कहा जाता है या पूर्वी भारत(असम, बिहार के कुछ हिस्सों) में बूट कहा जाता है, इनके छोटे, गहरे रंग के बीज और एक मोटी परत होती है। वे ज्यादातर भारत और भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य हिस्सों के साथ-साथ इथियोपिया (Ethiopia), मैक्सिको (Mexico) और ईरान (Iran) में उगाए जाते हैं।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3gId2QW
https://bit.ly/3mPsqyC
https://bbc.in/3ytrPoF

चित्र संदर्भ

1. अफगानी काबुलीवाले का एक चित्रण (manoramaonline)
2. काबुली चनों के दो मुख्य प्रकारों का एक चित्रण (wikimedia)
3. फूल और फलने वाले काबुली चने के पोंधे का एक चित्रण (Wikimedia)