मिट्टी के बर्तन बनाने की कला एक ऐसी कला है, जिसके जरिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निर्माण किया जा सकता है। फूलों के बर्तन हों, टेराकोटा चाइम्स (Terracotta wind chimes) हों या फिर प्यास बुझाने वाली 'सुराही' और 'मटकी', विभिन्न रूपों में इस कला का महत्व हमें दिखाई देता है।एक कला और शिल्प के रूप में मिट्टी के बर्तन बनाने की प्रक्रिया देश के कोने-कोने में प्रचलित है।यह भारत की सबसे कालातीत जीवित शिल्प परंपराओं में से एक है।यदि आप ग्रामीण इलाकों और "कुम्हारों के गांवों" की यात्रा करते हैं, तो इस शिल्प के आर्थिक महत्व को आप भली-भांति समझ पाएंगे।भारत के कई हिस्सों में निर्वाह कृषि के साथ-साथ लोग पारंपरिक कुम्हार के पहियों और भट्टों का उपयोग करके मिट्टी के बर्तनों को बनाने की प्रक्रिया में संलग्न होते हैं।विशेष रूप से त्योहारी मौसम के दौरान मिट्टी के बर्तन हाट, बाज़ारों और शहरी बाज़ारों का एक अभिन्न अंग बन जाते हैं।मिट्टी के बर्तनों को बनाने की कला अपने शिथिल प्रभाव के कारण भी जानी जाती है। इस कला की लयबद्धता और प्रक्रिया के बेहद धीमी गति से होने के कारण यह तनावपूर्ण नसों पर बाम की तरह काम करती है।महत्वपूर्ण बात यह है, कि आज की तनावपूर्ण दुनिया में, इस तरह के शौक की सकारात्मकता को देखते हुए इसकी लागत अधिक नहीं है।