प्राचीन काल से ही जौनपुर संस्कृति का केंद्र रहा है। शिक्षा का अनुपम स्थान होने के नाते ही 15 शताब्दी में इसे इल्म शहर के नाम से भी जाना जाता था। यहाँ पर कई राजाओं, विद्वानों व मनीषियों ने शिक्षा अध्ययन किया। शेर शाह सूरी की भी शिक्षा जौनपुर से ही हुयी थी। हुसैन शाह शर्की, जौनपुर में वास्तुकला को एक अद्भुत मुकाम तक ले गया। उसने जौनपुरी गायकी को भी अपनी नई शैली की गायकी से नवाज़ा। मिनाक्षी खन्ना द्वारा संपादित पुस्तक कल्चरल हिस्ट्री ऑफ़ मेडिवल इंडिया, सोशल साइंस प्रेस 2007 के अनुसार हुसैन शाह खुद एक विशिष्ट लेखक होने के साथ-साथ एक उत्क्रिस्ट श्रेणी के संगीतकार भी थे तथा उन्हें ही राग जौनपुरी का जनक माना जाता है। यहाँ की गायकी सुबह की गायकी के एक रूप में विकसित हुयी। हुसैन शाह ने उत्तर भारत को गायकी के एक नए रूप से नवाजा तथा यहीं से संगीत का यह नया प्रकार ग्वालिअर के राजा मान सिंह तोमर (1468-1517) ने भी अपने यहाँ की गायकी में सम्मलित किया। दिल्ली सल्तनत में भी राग जौनपुरी ने एक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया।