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 कैंसर अस्पताल में भर्ती होने पर आने वाला खर्च कुल औसत अस्पताल में भर्ती खर्च का लगभग 2.5 गुना है।2017-18 में कुल कैंसर देखभाल का खर्च राष्ट्रीय स्तर पर, लगभग 1,16,218 रुपये था।निजी अस्पतालों में, कैंसर देखभाल की कुल लागत 1,41,774 रुपये थी, जबकि सार्वजनिक अस्पतालों में यह तुलनात्मक रूप से 72,092 रुपये थी।राज्यवार पैटर्न से देंखे तो इस समय भारत में कैंसर देखभाल की कुल लागत ओडिशा में 74,699 रुपये थी, जबकि झारखंड राज्य में 2,39,974रुपये थी।आठ राज्यों, ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार और हरियाणा में, कैंसर के इलाज की कुल लागत 1 लाख रुपये से कम थी।हालांकि, पंजाब, कर्नाटक, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में कैंसर रोगियों नेइलाज पर 1 लाख रुपये से 1.5 लाख रुपये के बीच खर्च किया। वहीं चिकित्सा और गैर-चिकित्सा व्यय के हिस्से की बात करें, तो कुल कैंसर देखभाल खर्च का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा चिकित्सा देखभाल से संबंधित है, जिसमें डॉक्टरों के परामर्श, दवाओं, नैदानिक परीक्षणों, बिस्तरों के शुल्क और अन्य चिकित्सा सेवाओं जैसे रक्त आधान और ऑक्सीजन पूरकता पर होने वाले खर्च शामिल हैं।शेष 10 प्रतिशत हिस्सा गैर-चिकित्सीय देखभाल से सम्बंधित है।जिसमें परिवहन, भोजन, अनुरक्षण और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए परिवहन शामिल है।भारत में कैंसर देखभाल खर्च का सबसे चिंताजनक पहलू आउट ऑफ पॉकेट व्यय की अधिकता है।आउट ऑफ पॉकेट व्यय से तात्पर्य उस प्रत्यक्ष भुगतान से है,जो सेवा के उपयोग के समय व्यक्तियों द्वारा स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को किया जाता है।इसमें स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कोई पूर्व भुगतान शामिल नहीं है, उदाहरण के लिए करों या विशिष्ट बीमा प्रीमियम या योगदान के रूप में।2017-18 में सभी कैंसर देखभाल व्यय का लगभग 93 प्रतिशत हिस्सा आउट ऑफ पॉकेट व्यय के माध्यम से पूरा किया गया था।आउट ऑफ पॉकेट व्यय में सार्वजनिक-निजी अंतर भी देखा गया।सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं के संबंध में कैंसर देखभाल लागत में एक विपरीत पैटर्न उभरा है।राष्ट्रीय स्तर पर, एक सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा में आउट ऑफ पॉकेट व्यय 64,977 रुपये था।एक निजी स्वास्थ्य सुविधा में यह लगभग 1,33,464 रुपये पाया गया।प्रमुख राज्यों में कैंसर देखभाल में सार्वजनिक और निजी आउट ऑफ पॉकेट व्यय के संदर्भ में काफी भिन्नता पायी गयी।उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में, एक सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा में कैंसर की देखभाल पर आउट ऑफ पॉकेट व्यय 8,448 रुपये था,जबकि एक निजी स्वास्थ्य सुविधा के मामले में यह 2,49,086 रुपये था,जो कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा के खर्च से लगभग 30 गुना अधिक था।स्पष्ट है कि भारत में कैंसर के इलाज की लागत काफी हद तक अपनी जेब से खर्च की जाती है। राज्यों में और सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं के बीच कैंसर देखभाल खर्च में काफी भिन्नता चिंता का एक अन्य विषय है।कैंसर देखभाल से जुड़े गैर-चिकित्सा व्यय कई राज्यों में गरीबों के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा बन गए हैं क्योंकि आयुष्मान भारत योजना सहित कोई भी स्वास्थ्य बीमा योजना केवल चिकित्सा खर्चों से जुड़ी लागत को कवर करती है।पिछले एक दशक से भारत पर कैंसर का बोझ बढ़ता जा रहा है, तथा कोरोना महामारी ने इस समस्या को और भी अधिक कर दिया है। महामारी के कारण स्क्रीनिंग गैप (Screening gap) बढ़ गया है तथा कैंसर देखभाल में प्रगति धीमी हो गई है। लैंसेट (Lancet) अध्ययन के अनुसार, भारत में नए रोगी पंजीकरण, आउट पेशेंट (Outpatient services) सेवाएं, अस्पताल में प्रवेश और प्रमुख सर्जरी जैसी कैंसर सेवाएं मार्च और मई 2020 के बीचइसी अवधि में 2019 की तुलना में कम हो गई थीं।किसी भी अन्य बीमारी की तुलना में कैंसर का आर्थिक बोझ सबसे अधिक है।उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती हुए लोगों में से 40 प्रतिशत लोग उपचार हेतु मुख्य रूप से उधार, अपनी संपत्ति की बिक्री और मित्रों और रिश्तेदारों द्वारा दी गयी मदद पर निर्भर होते हैं। जबकि निजी क्षेत्र से अपनी देखभाल चाहने वाले 60 प्रतिशत से अधिक परिवार अपने वार्षिक प्रति व्यक्ति घरेलू खर्च का20 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अपने इलाज के लिए खर्च करते हैं। स्पष्ट रूप से उच्च और वहनीय कैंसर उपचार लागत को संबोधित करने के लिए आय और उपचार संबंधी कैंसर नीतियों की आवश्यकता है।सटीक अनुमानों के लिए मानकीकृत परिभाषाओं और उपकरणों का उपयोग करके सभी प्रकार की लागतों का अनुमान लगाने के लिए आर्थिक अध्ययन की जरूरत है।मजबूत कैंसर डेटाबेस/रजिस्ट्रियां और किफायती कैंसर देखभाल पर केंद्रित कार्यक्रम आर्थिक बोझ को कम कर सकते हैं।
कैंसर अस्पताल में भर्ती होने पर आने वाला खर्च कुल औसत अस्पताल में भर्ती खर्च का लगभग 2.5 गुना है।2017-18 में कुल कैंसर देखभाल का खर्च राष्ट्रीय स्तर पर, लगभग 1,16,218 रुपये था।निजी अस्पतालों में, कैंसर देखभाल की कुल लागत 1,41,774 रुपये थी, जबकि सार्वजनिक अस्पतालों में यह तुलनात्मक रूप से 72,092 रुपये थी।राज्यवार पैटर्न से देंखे तो इस समय भारत में कैंसर देखभाल की कुल लागत ओडिशा में 74,699 रुपये थी, जबकि झारखंड राज्य में 2,39,974रुपये थी।आठ राज्यों, ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार और हरियाणा में, कैंसर के इलाज की कुल लागत 1 लाख रुपये से कम थी।हालांकि, पंजाब, कर्नाटक, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में कैंसर रोगियों नेइलाज पर 1 लाख रुपये से 1.5 लाख रुपये के बीच खर्च किया। वहीं चिकित्सा और गैर-चिकित्सा व्यय के हिस्से की बात करें, तो कुल कैंसर देखभाल खर्च का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा चिकित्सा देखभाल से संबंधित है, जिसमें डॉक्टरों के परामर्श, दवाओं, नैदानिक परीक्षणों, बिस्तरों के शुल्क और अन्य चिकित्सा सेवाओं जैसे रक्त आधान और ऑक्सीजन पूरकता पर होने वाले खर्च शामिल हैं।शेष 10 प्रतिशत हिस्सा गैर-चिकित्सीय देखभाल से सम्बंधित है।जिसमें परिवहन, भोजन, अनुरक्षण और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए परिवहन शामिल है।भारत में कैंसर देखभाल खर्च का सबसे चिंताजनक पहलू आउट ऑफ पॉकेट व्यय की अधिकता है।आउट ऑफ पॉकेट व्यय से तात्पर्य उस प्रत्यक्ष भुगतान से है,जो सेवा के उपयोग के समय व्यक्तियों द्वारा स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को किया जाता है।इसमें स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कोई पूर्व भुगतान शामिल नहीं है, उदाहरण के लिए करों या विशिष्ट बीमा प्रीमियम या योगदान के रूप में।2017-18 में सभी कैंसर देखभाल व्यय का लगभग 93 प्रतिशत हिस्सा आउट ऑफ पॉकेट व्यय के माध्यम से पूरा किया गया था।आउट ऑफ पॉकेट व्यय में सार्वजनिक-निजी अंतर भी देखा गया।सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं के संबंध में कैंसर देखभाल लागत में एक विपरीत पैटर्न उभरा है।राष्ट्रीय स्तर पर, एक सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा में आउट ऑफ पॉकेट व्यय 64,977 रुपये था।एक निजी स्वास्थ्य सुविधा में यह लगभग 1,33,464 रुपये पाया गया।प्रमुख राज्यों में कैंसर देखभाल में सार्वजनिक और निजी आउट ऑफ पॉकेट व्यय के संदर्भ में काफी भिन्नता पायी गयी।उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में, एक सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा में कैंसर की देखभाल पर आउट ऑफ पॉकेट व्यय 8,448 रुपये था,जबकि एक निजी स्वास्थ्य सुविधा के मामले में यह 2,49,086 रुपये था,जो कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा के खर्च से लगभग 30 गुना अधिक था।स्पष्ट है कि भारत में कैंसर के इलाज की लागत काफी हद तक अपनी जेब से खर्च की जाती है। राज्यों में और सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं के बीच कैंसर देखभाल खर्च में काफी भिन्नता चिंता का एक अन्य विषय है।कैंसर देखभाल से जुड़े गैर-चिकित्सा व्यय कई राज्यों में गरीबों के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा बन गए हैं क्योंकि आयुष्मान भारत योजना सहित कोई भी स्वास्थ्य बीमा योजना केवल चिकित्सा खर्चों से जुड़ी लागत को कवर करती है।पिछले एक दशक से भारत पर कैंसर का बोझ बढ़ता जा रहा है, तथा कोरोना महामारी ने इस समस्या को और भी अधिक कर दिया है। महामारी के कारण स्क्रीनिंग गैप (Screening gap) बढ़ गया है तथा कैंसर देखभाल में प्रगति धीमी हो गई है। लैंसेट (Lancet) अध्ययन के अनुसार, भारत में नए रोगी पंजीकरण, आउट पेशेंट (Outpatient services) सेवाएं, अस्पताल में प्रवेश और प्रमुख सर्जरी जैसी कैंसर सेवाएं मार्च और मई 2020 के बीचइसी अवधि में 2019 की तुलना में कम हो गई थीं।किसी भी अन्य बीमारी की तुलना में कैंसर का आर्थिक बोझ सबसे अधिक है।उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती हुए लोगों में से 40 प्रतिशत लोग उपचार हेतु मुख्य रूप से उधार, अपनी संपत्ति की बिक्री और मित्रों और रिश्तेदारों द्वारा दी गयी मदद पर निर्भर होते हैं। जबकि निजी क्षेत्र से अपनी देखभाल चाहने वाले 60 प्रतिशत से अधिक परिवार अपने वार्षिक प्रति व्यक्ति घरेलू खर्च का20 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अपने इलाज के लिए खर्च करते हैं। स्पष्ट रूप से उच्च और वहनीय कैंसर उपचार लागत को संबोधित करने के लिए आय और उपचार संबंधी कैंसर नीतियों की आवश्यकता है।सटीक अनुमानों के लिए मानकीकृत परिभाषाओं और उपकरणों का उपयोग करके सभी प्रकार की लागतों का अनुमान लगाने के लिए आर्थिक अध्ययन की जरूरत है।मजबूत कैंसर डेटाबेस/रजिस्ट्रियां और किफायती कैंसर देखभाल पर केंद्रित कार्यक्रम आर्थिक बोझ को कम कर सकते हैं। 
                                         
                                         
                                         
                                        