रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच भारत में कितना महंगा होगा ईंधन?

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
11-03-2022 11:16 AM
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रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच भारत में कितना महंगा होगा ईंधन?

आज एक ओर जहां विकसित प्रौद्योगिकी के कारण दुनिया के सभी देश एक दूसरे के साथ मजबूती से जुड़ चुकें हैं, वहीं दूसरे देशों के संसाधनों पर यह निर्भरता, युद्ध जैसे अनिश्चित हालातों में, युद्ध में शामिल नहीं होने वाले देशों को भी प्रभावित करती है। जिसका प्रबल उदाहरण हमें हाल ही में शुरू हुए रूस और यूक्रेन के बीच के संघर्ष में देखने को मिल रहा हैं। जहाँ यह युद्ध संकट वैश्विक स्तर पर कई देशों की अर्थव्यवस्था का आधार माने जाने वाले तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतों को प्रभवित कर रहा है।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे भयंकर युद्ध और निरंतर मांग के कारण वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों को अल्पावधि में $ 95 से $ 125 प्रति बैरल के दायरे में रखने की उम्मीद जताई जा रही है। अतः इस भू-राजनीतिक संकट के कारण परिणामस्वरूप कच्चे तेल की कीमतों में वैश्विक वृद्धि से भारत के पेट्रोल और डीजल की घरेलू कीमतों में 15-22 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि होने की उम्मीद है। वर्तमान में भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी कच्चे तेल का आयात दूसरे देशों से करता है। इसके अलावा, उच्च ईंधन लागत का व्यापक प्रभाव एक सामान्य मुद्रास्फीति (महंगाई) को भी बढ़ाएगा। उद्योग की गणना के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत की वृद्धि से सीपीआई मुद्रास्फीति (CPI Inflation) में लगभग 10 आधार अंक (basis points) की वृद्धि होती है।
वर्तमान में रूस दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। अतः रूस के खिलाफ प्रतिबंध तेल की वैश्विक आपूर्ति को कम कर देंगे और वैश्विक विकास को प्रभावित करेंगे। तेल की ऊंची कीमतों के बीच भारत सरकार यूपी चुनाव के बाद ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी कर सकती है। उम्मीद है कि शुरू में 10-15 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी होगी।
बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड (brent crude) के 119 डॉलर प्रति बैरल के निशान को पार करने के बाद सरकार तेल की कीमतों में वृद्धि के प्रभाव को सीमित करना चाहती है। वहीँ खुदरा विक्रेताओं को पेट्रोल और डीजल पर लगभग 20-22 रुपये प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है, क्योंकि उन्होंने 4 नवंबर से पंप की कीमतें नहीं बढ़ाई हैं, जब इंडियन बास्केट अर्थात जब उनके द्वारा खरीदे गए कच्चे तेल का मिश्रण - 83 डॉलर प्रति बैरल था। तेल, केंद्र और राज्यों के लिए कर संग्रह (tax collection) का एक प्रमुख स्रोत है। मेगा इनिशियल पब्लिक ऑफर (Mega Initial Public Offer) पर अनिश्चितता को देखते हुए, केंद्र यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि तेल की बढ़ी कीमतों का राजस्व पर महत्वपूर्ण प्रभाव न पड़े, ताकि वह जीडीपी के 6.9% के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के भीतर रहे। सरकार में एक आकलन यह भी है कि रूस-यूक्रेन तनाव कम होने के बाद कीमतें शांत हो जाएंगी। हालांकि भारत की आपूर्ति अभी भी प्रभावित नहीं हुई है, लेकिन वह सबसे बड़ा तेल निर्यातक है। भारत का गैस निर्यात वैश्विक आपूर्ति का 34% हिस्सा है। दोनों देशों के बीच के संघर्ष ने आपूर्ति की असुरक्षा को जन्म दिया है क्योंकि पश्चिमी प्रतिबंध उपभोक्ताओं को शिपिंग और बीमा मुद्दों के कारण रूसी तेल से दूर रहने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
कुछ अनुमानों ने रूसी आपूर्ति के नुकसान को 2.5 मिलियन बैरल पर रखा है। संयुक्त राज्य अमेरिका में वैश्विक और घरेलू मुद्रास्फीति की स्थिति पहले से ही चिंताजनक थी। वही इस संघर्ष ने वैश्विक बाजारों को हिलाकर रख दिया है, जिससे शेयर बाजार में उथल-पुथल मच गई है, तेल की कीमतें बढ़ गई हैं , और दुनिया भर में पहले से ही असंतुलित अर्थव्यवस्था में और भी अधिक अनिश्चितता पैदा हो गई है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index), जो वस्तुओं और सेवाओं के लिए उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान की जाने वाली कीमतों में औसत परिवर्तन को मापता है, जनवरी में पिछले वर्ष की तुलना में 7.5 प्रतिशत अधिक था, जो की 40 सालों का उच्चतम स्तर है।
रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस उत्पादकों में से एक है, और यहां उत्पन्न किसी भी व्यवधान का कीमतों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने घोषणा की कि अमेरिका रूसी तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले के आयात पर प्रतिबंध लगाएगा। फरवरी की शुरुआत में, जेपी मॉर्गन (JP Morgan) के विश्लेषकों ने अनुमान लगाया कि रूस से तेल प्रवाह में प्रतिबंध तेल की कीमतों को 120 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ा सकता है, जो एक साल पहले 60 डॉलर प्रति बैरल रेंज में थी, और 2020 में 70 डॉलर और 80 डॉलर में शुरू हुई थी। कुछ विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि सबसे खराब स्थिति में तेल की कीमतें 200 डॉलर तक पहुंच सकती हैं। शेल और बीपी (Shell and BP) जैसी प्रमुख तेल कंपनियों ने कहा है कि वे रूस से तेल और गैस खरीदना बंद कर देंगी और देश के साथ व्यापार पर अंकुश लगाएंगी, जिससे अस्थिरता और कीमतों में भी बदलाव हो रहा है।
यूरोप भी रूस पर अपनी निर्भरता से दूर होने लगा है। एएए (AAA) के अनुसार , राष्ट्रीय स्तर पर गैस की औसत कीमत 4.17 डॉलर प्रति गैलन है, जो एक साल पहले 2.66 डॉलर से काफी अधिक है। तेल की ऊंची कीमतों से आर्थिक विकास पर असर पड़ सकता है। लोगों और कंपनियों को तेल और गैस पर अधिक खर्च करने से अन्य क्षेत्रों में खर्च कम हो सकता है, और इससे जीडीपी में कटौती हो सकती है। एक अनुमान के अनुसार, गैस की कीमतों में दीर्घकालीन वृद्धि से सामान्य परिवार को प्रति वर्ष 2,000 अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है। आगे के हालात इस संघर्ष पर निर्भर हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/3w8aiFd
https://bit.ly/3sRrZqh
https://bit.ly/3CrEUlW

चित्र संदर्भ   
1. इंडियन आयल के सरंरक्षण टेंकों को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
2. बैंगलोर में शेल पेट्रोल स्टेशन को दर्शाता चित्रण (wikipedia)
3. तेल रिफाइनरी को दर्शाता चित्रण (Picryl)
4. रूसी परिसंपत्ति मूल्य कंपनियों के विभाजन को दर्शाता चित्रण (wikipedia)
5. शेल गैस स्टेशन को दर्शाता चित्रण (wikipedia)