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जैन धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति कम से कम 2,500 साल पहले भारत में हुई थी।
जैन धर्म का आध्यात्मिक लक्ष्य पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मुक्त होना और मोक्ष नामक एक सर्वज्ञ अवस्था को
प्राप्त करना है। जैन धर्म में महावीर स्वामी 24 वें और अंतिम तीर्थंकर (उद्धारकर्ता और आध्यात्मिक शिक्षक) रहे हैं,
जिनके जन्मदिन को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है, इसे आमतौर पर महावीर जयंती के नाम से जाना जाता है।
महावीर जयंती जैन समुदाय में सबसे शुभ त्योहारों में से एक है। यह दिन वर्धमान, महावीर के जन्म का प्रतीक है।
जैन ग्रंथों के अनुसार, महावीर का जन्म वर्ष 599 ईसा पूर्व (चैत्र सूद 13) में चैत्र महीने में चंद्रमा के शुक्ल पक्ष की
तेरहवीं तिथि को हुआ था। इस वर्ष 2022 में महावीर जयंती गुरुवार, 14 अप्रैल को मनाई जाएगी।
जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार, महावीर का जन्म आज के पटना शहर से कुछ मील की दूरी पर वैशाली (बिहार) में
राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर चैत्र के उगते चंद्रमा के तेरहवें दिन हुआ था। कई आधुनिक इतिहासकार
कुंदग्राम (जो कि बिहार के चंपारण जिले में आज का कुंडलपुर है) को उनका जन्म स्थान मानते हैं। महावीर का जन्म
एक लोकतांत्रिक राज्य (गणराज्य), वज्जी में हुआ था, जहां राजा को वोटों से चुना जाता था। इसकी राजधानी वैशाली
थी। उनके माता-पिता ने उनका नाम वर्धमान रखा। श्वेतांबर के अनुसार, वर्धमान की गर्भवती माँ ने उनकी गर्भावस्था के
दौरान 14 सपने देखे थे। जब ज्योतिषियों ने इन सपनों की व्याख्या की, तो उन्होंने भविष्यवाणी की, कि आने वाला
बच्चा या तो सम्राट बनेगा अथवा तीर्थंकर बनेगा, जो आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने वाला अद्भुत व्यक्ति होगा।
ज्योतिषियों की भविष्यवाणियां सच हुईं और बाद में वे जैन समुदाय के 24वें तीर्थंकर बने।
उनके माता-पिता ने उनका नाम वर्धमान रखा। श्वेतांबर के अनुसार, वर्धमान की गर्भवती माँ ने उनकी गर्भावस्था के
दौरान 14 सपने देखे थे। जब ज्योतिषियों ने इन सपनों की व्याख्या की, तो उन्होंने भविष्यवाणी की, कि आने वाला
बच्चा या तो सम्राट बनेगा अथवा तीर्थंकर बनेगा, जो आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने वाला अद्भुत व्यक्ति होगा।
ज्योतिषियों की भविष्यवाणियां सच हुईं और बाद में वे जैन समुदाय के 24वें तीर्थंकर बने।
 महावीर भले ही एक
राजकुमार के रूप में जन्मे थे लेकिन, अपने प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने जैन धर्म की मूल मान्यताओं में गहरी रुचि
विकसित कर ली थी, और ध्यान करना प्रारम्भ कर दिया। 30 वर्ष की आयु में, उन्होंने आध्यात्मिक सत्य की खोज के
लिए अपना शाही सिंहासन और अपने परिवार को त्याग दिया, तथा बारह वर्ष एक तपस्वी के रूप में बिताए।
उन्होंने अपना अधिकांश समय ध्यान और लोगों को अहिंसा का उपदेश देने में बिताया। महावीर ने अत्यंत घोर
तपस्वी जीवन चुना, जिस दौरान उन्होंने अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना भी सीख लिया। इंद्रियों को नियंत्रित करने
में उनके साहस और अनुकरणीय कार्य के आधार पर उन्हें महावीर नाम दिया गया। महावीर ने अपना शेष जीवन
आध्यात्मिक स्वतंत्रता के सत्य का प्रचार करते हुए समर्पित कर दिया। इस प्रकार, हर साल उनके द्वारा दिए गए
उपदेशों का अनुकरण और जैन दर्शन का प्रचार करने के लिए महावीर जयंती मनाई जाती है।  जैन धर्म की पुस्तक
"आओ जैन धर्म को जाने" में वर्णित है कि, महावीर जैन जी ने अपने पिछले जन्म में मरीचि के रूप में 363
आध्यात्मिक प्रथाएं शुरू की थी, जो आज दुनिया भर में प्रचलित विभिन्न धर्मों में भी विकसित हुई हैं।
जैन धर्म की पुस्तक
"आओ जैन धर्म को जाने" में वर्णित है कि, महावीर जैन जी ने अपने पिछले जन्म में मरीचि के रूप में 363
आध्यात्मिक प्रथाएं शुरू की थी, जो आज दुनिया भर में प्रचलित विभिन्न धर्मों में भी विकसित हुई हैं।
महावीर जयंती जैन समुदाय में एक अत्यंत पवित्र और शुभ अवसर होता है। इस दौरान जैन अनुयायी मंदिरों में जाते
हैं और महावीर की मूर्ति का औपचारिक स्नान करते हैं, जिसे 'अभिषेक' के रूप में जाना जाता है। भगवान महावीर की
जयंती के उपलक्ष्य में मंदिरों को झंडों से भव्य रूप में सजाया जाता है। प्रार्थनाओं का जाप करते हुए लाखों भक्तों
द्वारा अनुसरण की जाने वाली महवीर की छवियों के साथ राजसी रथ जुलूस भी निकाला जाता है। इस विशेष दिन
पर पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जाते हैं और गरीबों को भिक्षा दान भी दिया जाता है। इस विशेष अवसर पर, महावीर
द्वारा दिए गए गए स्वतंत्रता और सदाचार के दर्शन का प्रचार करने के लिए मंदिरों में उपदेश भी आयोजित किए
जाते हैं। महावीर के जीवन के प्रमुख अध्याय भक्तों द्वारा पढ़े जाते हैं जिनमें जैन तीर्थंकरों की जीवनियां भी शामिल
हैं। यह त्योहार जैन समुदाय द्वारा धर्म के अंतिम आध्यात्मिक शिक्षक की याद में व्यापक रूप से मनाया जाता है।
स्तवनों या जैन प्रार्थनाओं का पाठ करते हुए, भगवान की मूर्तियों को अभिषेक (औपचारिक स्नान) कराया जाता है।
अंतिम जैन तीर्थंकर ने अपने शिष्यों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करने), ब्रह्मचर्य (शुद्धता) और अपरिग्रह
(गैर-लगाव) की शिक्षा दी, और उनकी शिक्षाओं को जैन आगम कहा गया। ऐसा माना जाता है कि इस महान संत ने
72 वर्ष की आयु में मोक्ष (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त किया था। भक्त इस दिन भी उनकी प्रार्थना और
उपदेश का जाप करते हैं।
यह त्योहार जैन समुदाय द्वारा धर्म के अंतिम आध्यात्मिक शिक्षक की याद में व्यापक रूप से मनाया जाता है।
स्तवनों या जैन प्रार्थनाओं का पाठ करते हुए, भगवान की मूर्तियों को अभिषेक (औपचारिक स्नान) कराया जाता है।
अंतिम जैन तीर्थंकर ने अपने शिष्यों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करने), ब्रह्मचर्य (शुद्धता) और अपरिग्रह
(गैर-लगाव) की शिक्षा दी, और उनकी शिक्षाओं को जैन आगम कहा गया। ऐसा माना जाता है कि इस महान संत ने
72 वर्ष की आयु में मोक्ष (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त किया था। भक्त इस दिन भी उनकी प्रार्थना और
उपदेश का जाप करते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3KD6v6S
https://bit.ly/37J2kb5
https://bit.ly/3KACncB
चित्र संदर्भ
1. जैन अनुष्ठानों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. चाँद खेड़ी मंदिर - महावीर स्वामी मूर्ति को दर्शाता एक अन्य चित्रण (wikimedia)
3. महावीर के मुख्य मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. जैन समुदाय को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
 
                                         
                                         
                                         
                                        