जौनपुर के एक असहाय पिता ने एम्बुलेंस के अभाव में बेटी का शव ठेले पर लादकर किया स्वास्थ्य व्यवस्था को शर्मसार

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
30-12-2022 10:47 AM
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जौनपुर के एक असहाय पिता ने एम्बुलेंस के अभाव में बेटी का शव ठेले पर लादकर किया स्वास्थ्य व्यवस्था को  शर्मसार

भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाली सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए लगातार बड़े पैमाने पर निवेश किया जा रहा है। भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र विश्व स्तर के मानकों को आगे बढ़ा और प्राप्त भी कर रहा है, लेकिन दुर्भाग्य से, भारत में आपातकालीन चिकित्सा प्रतिक्रिया प्रणाली पिछड़ रही है। कुशल जनशक्ति और प्रौद्योगिकी सक्षमता के साथ-साथ गुणवत्ता वाली एंबुलेंस की उपलब्धता की कमी आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं में व्यापक रूप से परिलक्षित होती है।
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में बीते दिनों में एक ऐसी दिल दहला देने वाली तस्वीर सामने आई थी जिसने आपातकालीन सेवाओं के घोटाले की ओर प्रशासन का मुख मोड़ दिया। जिसमें एक असहाय पिता एम्बुलेंस के अभाव में चिलचिलाती धूप में ही अपनी मासूम बच्ची के शव को ठेले पर लाद अपने घर के लिए निकल पड़ा। पिता द्वारा जिला अस्पताल में शव वाहन की मांग करने पर भी किसी ने उसकी एक न सुनी। पिता बेटी का मृत शरीर तो ठेले पर घर ले गया परंतु पीछे छोड़ गया कुछ ऐसे गहरे सवाल जो जौनपुर स्वास्थ्य व्यवस्था के उन घोटालों की तरफ इशारा कर रही है जो आज वर्तमान समय में न केवल जौनपुर बल्कि संपूर्ण देश में एक सबसे बड़ी समस्या का रूप ले चुके है। इसे स्वास्थ्य व्यवस्था द्वारा की गई लापरवाही कहें या घोटाला दोनों ही परिस्थितियों में यह गलत है। जहाँ एक तरफ उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार लगातार स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाने का प्रयास कर रही है, वहीं इस तस्वीर ने एक आम आदमी को झकझोर कर रख दिया है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि लोगों की सुविधा के लिए जौनपुर जिले में 102 नंबर की 50 और 108 नंबर की भी 50 एम्बुलेंस चलाई जा रही है , साथ ही जिला अस्पताल में तीन शव वाहन भी है ।
फिर भी जिले में ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था की एक पिता को उसकी पुत्री हेतु एक भी एम्बुलेंस नही मिली?आपको बता दें कि मरीजों के लिए आपातकालीन सेवा व बेहतर चिकित्सा सुविधाओं के लिए चलाई जा रही 108 व 102 नंबर की एंबुलेंस सेवा की बड़े पैमाने पर धांधली की जा रही है। पिछले महीने आई एक रिपोर्ट के मुताबिक मरीजों के फर्जी आंकड़े और फर्जी पीसीआर भरकर हर महीने लाखों रुपये की ठगी की जा रही है। संघ के पदाधिकारियों का आरोप है कि कर्मचारियों द्वारा जो आंकड़ा एंबुलेंस सेवा प्रदाता कंपनी को उपलब्ध कराया जाता है उसमें सबसे अधिक फर्जीवाड़ा मरीजों को घर पहुंचाने का होता है। अगर इसकी सही जांच की जाए और उनके मोबाइल नंबर पर फोन किया जाए तो पता चलता हैकि ज्यादातर नंबर फर्जी हैं। इतना ही नहीं एक ही मरीज को कई बार अस्पताल ले जाने का भी आरोप लगाया गया है। अस्पताल के रजिस्टर में मरीज कब आया है, उसका भी मिलान किए जाने की मांग की गई है। पदाधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर केस ईएमटी पायलट के नंबर पर या आशा के नंबर पर लिया जाता है, जिसकी पोल सत्यापन से खुल सकती है।जिले में मरीजों को एम्बुलेंस उपलब्ध कराना आपातकालीन चिकित्सा सेवा (Emergency Medical Services (EMS) का दायित्व हैं।
एम्बुलेंस की सुविधा सभी लोगों को न मिलने की वजह स्वास्थ्य व्यवस्था की धांधली तो है ही, परंतु इसका एक प्रमुख कारण एम्बुलेंस की संख्या में कमी एवं बढ़ता शहरीकरण भी है जिस कारण पीड़ित एम्बुलेंस सुविधा प्राप्त करने से वंचित है। बढ़ता शहरीकरण देश के सम्मुख एक चुनौती के रूप में विद्यमान है जो लोगों द्वारा पूर्ण रूप से चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उठाने में बाध्य बन गया है। सड़कों का भारी ट्रैफिक से भरा रहना आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा तक पहुँचने में एक चुनौती बन गया है। बढ़ते शहरीकरण के कारण शहरों में 90% से अधिक आबादी एक मरीज को अस्पताल ले जाने के लिए अपने स्वयं के वाहन का उपयोग करना पसंद करती है क्योंकि उन्हें एम्बुलेंस के समय पर पहुँचने पर पर्याप्त विश्वास नही होता है। कुछ प्रयासों द्वारा हम भारत में एम्बुलेंस सेवाओं की कमियों को दूर कर सकते हैं जैसे –
(i) अधिकतम मोटरबाइक एम्बुलेंस आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा में वृद्धि कर उन्हें दुर्गम स्थानों में भी भेजकर पीड़ितों का उपचार किया जा सकता है । यह पहल शुरू भी हो चुकी ही लेकिन अभी इसमें और वृद्धि होने की जरूरत है ।
(ii) खराब हो गई एम्बुलेंस को सही कराया जाना चाहिए जिससे वह सुचारू रूप से चल सकें और लोगों को सुविधा प्रदान कर सकें।
(iii) एम्बुलेंस पर बढ़ती धांधलियो को रोककर उनके खिलाफ कार्यवाही कर मरीजों तक उचित समय पर सुविधा पहुंचाई जानी चाहिए ।
(iv) एम्बुलेंस की संख्याओं में वृद्धि की जानी चाहिए।
(v)एम्बुलेंस में पीड़ित के इलाज हेतु उपकरण के अभाव को दूर कर भारत में एम्बुलेंस सेवाओं की कमियों को दूर किया जा सकता है।
वर्तमान में, अधिकांश एंबुलेंस केवल परिवहन वाहन हैं क्योंकि उनके पास प्रशिक्षित आपातकालीन चिकित्सा तकनीकज्ञों (Technicians) की कमी है, और साथ ही ये एंबुलेंस उन्नत जीवन समर्थन (Advanced life support (ALS) ), बुनियादी जीवन समर्थन (Basic life support (BLS))और हृत्फुफ्फुसीय पुनर्जीवन (Cardiopulmonary resuscitation (CPR))जैसे महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए सुसज्जित नहीं हैं। इसलिए इन अभावों को दूर करने की आवश्यकता है। इसलिएआज के समय में इसका सबसे अच्छा विकल्प मोटर बाइक एम्बुलेंस आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा है। पिछले पांच वर्षों में, भारत ने देश के विभिन्न हिस्सों में, सेवा रहित चरम ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर पहाड़ियों और तेजी से विकासशील महानगरों तक, इस सेवा की शुरुआत देखी है। आखिरकार, सरकार का भी ध्यान मोटरबाइक एम्बुलेंस के विचार की ओर आकर्षित हुआ । मोटरबाइक एम्बुलेंस की ओर अपना ध्यान आकर्षित करते हुए,  इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research, (ICMR), जो कि देश के शीर्ष अनुसंधान संगठन है, ने गुरुवार को एक पायलट प्रोजेक्ट "मिशन दिल्ली (दिल्ली इमरजेंसी लाइफ हार्ट-अटैक इनिशिएटिव)" (Mission DELHI (Delhi Emergency Life Heart-Attack Initiative) लॉन्च किया।
 परियोजना के तहत, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences(AIIMS) के आसपास 3KM की सीमा में लोग जल्द ही दिल का दौरा पड़ने या सीने में चोट लगने की स्थिति में मोटरबाइक जनित आपातकालीन चिकित्सा सहायता इकाई के लिए टोल फ्री नंबर 14430 और 1800111044 पर कॉल करने में सक्षम हो सकते हैं। परियोजना को एम्स के हृदय रोग विभाग (Cardiology Department ) और आपातकालीन चिकित्सा विभागों से संस्थागत समर्थन और आईसीएमआर से वित्त पोषण प्राप्त है।

संदर्भ
https://bit.ly/3YJjwn1
https://bit.ly/3hHjkEl
https://bit.ly/3C15P9d
https://bit.ly/3YEjQ6B

चित्र संदर्भ
1. एम्बुलेंस के सामने लगी कतार को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. एक साइकिल रिक्शे को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. पार्क की गई एम्बुलेंस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4 . एक आर्थिक रूप से कमज़ोर भारतीय परिवार को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. कतार में खड़ी एम्बुलेंस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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