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 प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के पावन अवसर पर जौनपुर की गलियां और चौराहे स्वादिष्ट पकवानों की सुगंध से महक उठते हैं। छतों पर पतंगबाज़ी करने के बाद थकान से चूर हो चुके छोटे-छोटे बच्चे दादी मां के बुलावे पर घर की रसोई की ओर दौड़ पड़ते हैं। सूर्य देव को समर्पित मकर संक्रांति के पर्व को अपने स्वादिष्ट पकवानों और अनोखे अनुष्ठानों के कारण सभी त्यौहारों में विशिष्ट माना जाता है। 
मकर संक्रांति के पावन अवसर पर खिचड़ी का भोग करना विशेषतौर पर महत्वपूर्ण माना गया है। यहां तक कि कुछ क्षेत्रों में मकर संक्रांति को  ‘खिचड़ी' के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिस कारण इसे सूर्य संक्रांति भी कहा जाता है। मकर संक्रांति के पर्व को भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। केरल, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में इसे ‘संक्रांति’ के रूप में, तो वहीं तमिलनाडु में इस पर्व को ‘पोंगल’  के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा पंजाब और हरियाणा में इस पर्व को ‘लोहड़ी’ के रूप में मनाया जाता है। असम के लोग इसे ‘बिहू’ के रूप में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते है।  मकर संक्रांति के अवसर पर बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में खिचड़ी खाने की प्राचीन और अनूठी परंपरा आज भी मनाई जाती है। माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन सात्विक भोजन के रूप में खिचड़ी खाने  के पीछे बहुत ही पौराणिक और शास्त्रीय मान्यताएं हैं। इस अवसर पर कई स्थानों पर खिचड़ी को मुख्य पकवान के तौर पर बनाया जाता है। मकर संक्रांति पर चावल, दाल, हल्दी, नमक और सब्जियों को मिलाकर खिचड़ी बनाई जाती है।  ताज़े अनाज की खिचड़ी खाने से शरीर भी रोगमुक्त रहता है। 
मकर संक्रांति से जुड़ी हुई एक अत्यंत रोचक कथा भी खिचड़ी के महत्व को उजागर करती है,जिसके अनुसार कहा जाता है कि जब अलाउद्दीन खिलजी ने भारत पर आक्रमण किया, तो उसके विरुद्ध बाबा गोरखनाथ ने भी अपने शिष्यों के साथ संघर्ष किया था। युद्ध के बीच में कई बार योगी अपना भोजन नहीं बना पाते थे, जिसके कारण बाबा ने दाल चावल और सब्जियों को मिलाकर भोजन बनाने का आदेश दिया और उनके द्वारा इस व्यंजन को खिचड़ी का नाम दिया गया। बाद में खिलजी की हिंदुस्तान से वापसी के बाद योगियों द्वारा मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का प्रसाद वितरित किया जाने लगा। 
आयुर्वेद में खिचड़ी को सुपाच्य अर्थात आसानी से पचने वाला और स्वास्थ्य के लिए औषधि पूर्ण भोजन माना गया है। शास्त्रों में चावल को चंद्रमा का एवं काली उड़द की दाल को शनि का प्रतीक माना गया है। इसके अलावा हल्दी को बृहस्पति और नमक को शुक्र का प्रतीक माना गया है। हरी सब्जियों को बुध ग्रह से संबंधित माना जाता है। इस प्रकार मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का सेवन करने से सभी ग्रह मजबूत हो जाते हैं।
मकर संक्रांति के अवसर पर बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में खिचड़ी खाने की प्राचीन और अनूठी परंपरा आज भी मनाई जाती है। माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन सात्विक भोजन के रूप में खिचड़ी खाने  के पीछे बहुत ही पौराणिक और शास्त्रीय मान्यताएं हैं। इस अवसर पर कई स्थानों पर खिचड़ी को मुख्य पकवान के तौर पर बनाया जाता है। मकर संक्रांति पर चावल, दाल, हल्दी, नमक और सब्जियों को मिलाकर खिचड़ी बनाई जाती है।  ताज़े अनाज की खिचड़ी खाने से शरीर भी रोगमुक्त रहता है। 
मकर संक्रांति से जुड़ी हुई एक अत्यंत रोचक कथा भी खिचड़ी के महत्व को उजागर करती है,जिसके अनुसार कहा जाता है कि जब अलाउद्दीन खिलजी ने भारत पर आक्रमण किया, तो उसके विरुद्ध बाबा गोरखनाथ ने भी अपने शिष्यों के साथ संघर्ष किया था। युद्ध के बीच में कई बार योगी अपना भोजन नहीं बना पाते थे, जिसके कारण बाबा ने दाल चावल और सब्जियों को मिलाकर भोजन बनाने का आदेश दिया और उनके द्वारा इस व्यंजन को खिचड़ी का नाम दिया गया। बाद में खिलजी की हिंदुस्तान से वापसी के बाद योगियों द्वारा मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का प्रसाद वितरित किया जाने लगा। 
आयुर्वेद में खिचड़ी को सुपाच्य अर्थात आसानी से पचने वाला और स्वास्थ्य के लिए औषधि पूर्ण भोजन माना गया है। शास्त्रों में चावल को चंद्रमा का एवं काली उड़द की दाल को शनि का प्रतीक माना गया है। इसके अलावा हल्दी को बृहस्पति और नमक को शुक्र का प्रतीक माना गया है। हरी सब्जियों को बुध ग्रह से संबंधित माना जाता है। इस प्रकार मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का सेवन करने से सभी ग्रह मजबूत हो जाते हैं। शास्त्रों में मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान करना अत्यंत लाभदायक माना गया है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस विशेष अवसर पर साबुत उड़द या काली उड़द और चावल को मिलाकर खिचड़ी का दान किया जाता है। इसके अलावा गुड़, घी, नमक और तिल के दान भी इस परंपरा में शामिल है। 
भारत में हर त्यौहार  पूजा-पाठ और देवताओं से जुड़ा हुआ रहता है। ज्यादातर सभी त्यौहारों पर ईश्वर के प्रसाद के रूप में भोग भी अवश्य बनाया जाता है । सूर्य, शनि के पिता माने जाते हैं। इस तरह मकर संक्रांति पर काली उड़द और चावल की खिचड़ी का भोग लगाने और दान करने से दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शास्त्रों में मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान करना अत्यंत लाभदायक माना गया है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस विशेष अवसर पर साबुत उड़द या काली उड़द और चावल को मिलाकर खिचड़ी का दान किया जाता है। इसके अलावा गुड़, घी, नमक और तिल के दान भी इस परंपरा में शामिल है। 
भारत में हर त्यौहार  पूजा-पाठ और देवताओं से जुड़ा हुआ रहता है। ज्यादातर सभी त्यौहारों पर ईश्वर के प्रसाद के रूप में भोग भी अवश्य बनाया जाता है । सूर्य, शनि के पिता माने जाते हैं। इस तरह मकर संक्रांति पर काली उड़द और चावल की खिचड़ी का भोग लगाने और दान करने से दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मकर संक्रांति को आध्यात्मिक साधनाओं के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और इस दिन पवित्र जल में स्नान, दान-पुण्य, भगवान का नाम जप, ध्यान और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व होता है। तदनुसार, लोग नदियों, विशेष रूप से गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी में पवित्र डुबकी लगाते हैं। ऐसा माना जाता है कि स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है और पिछले पापों का नाश होता है। यह आम धारणा है कि इस दिन सभी देवी-देवता अपना रूप बदलते हैं और स्नान करने के लिए प्रयाग यानी गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर जाते हैं। इसलिए, प्रयाग में एक पवित्र डुबकी निस्संदेह स्वयं को शुद्ध करने और 'पुण्य' प्राप्त करने के लिए सबसे शुभ मानी जाती है। पवित्र स्नान के लिए बीस लाख से अधिक लोग उत्तर प्रदेश में प्रयागराज और वाराणसी, तथा उत्तराखंड में हरिद्वार में इकट्ठा होते हैं । मकर संक्रांति का त्यौहार केवल भारतवर्ष में ही नहीं, वरन विश्व के अन्य देशों में भी खिचड़ी के त्यौहार के रूप में प्रसिद्ध है। हमारे जौनपुर में भी मकर संक्रांति (खिचड़ी) के अवसर पर बाजारों में काफी चहल-पहल रहती है। इस अवसर पर शहरों और ग्रामीण क्षेत्र के बाजारों में भी लाई, चिवड़ा के साथ ही तिल-गुड़ पट्टी, गट्टा, तिलवा आदि खाद्य सामग्रियों को खरीदने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। साथ ही जौनपुरवासी परंपराओं का निर्वहन करते हुए बहन-बेटियों के घर खिचड़ी भेजने में जुट जाते हैं। इस अवसर पर पतंगबाजी भी अपने चरम पर होती है। मकर संक्रांति पर्व पर दो दिन पूर्व से ही पतंगबाजी शुरू हो जाती है। स्नान व दान के इस पर्व को ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। स्नान के साथ दिन की शुरुआत करने के पश्चात् एक तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर उसमें गुड, तिल, चंदन, अक्षत और पुष्प डालने के बाद दोनों हाथों को ऊपर उठाकर, श्रद्धा भक्ति पूर्वक ‘ओम घृणि सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप करते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान कर नमस्कार करना चाहिए।
मकर संक्रांति का त्यौहार केवल भारतवर्ष में ही नहीं, वरन विश्व के अन्य देशों में भी खिचड़ी के त्यौहार के रूप में प्रसिद्ध है। हमारे जौनपुर में भी मकर संक्रांति (खिचड़ी) के अवसर पर बाजारों में काफी चहल-पहल रहती है। इस अवसर पर शहरों और ग्रामीण क्षेत्र के बाजारों में भी लाई, चिवड़ा के साथ ही तिल-गुड़ पट्टी, गट्टा, तिलवा आदि खाद्य सामग्रियों को खरीदने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। साथ ही जौनपुरवासी परंपराओं का निर्वहन करते हुए बहन-बेटियों के घर खिचड़ी भेजने में जुट जाते हैं। इस अवसर पर पतंगबाजी भी अपने चरम पर होती है। मकर संक्रांति पर्व पर दो दिन पूर्व से ही पतंगबाजी शुरू हो जाती है। स्नान व दान के इस पर्व को ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। स्नान के साथ दिन की शुरुआत करने के पश्चात् एक तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर उसमें गुड, तिल, चंदन, अक्षत और पुष्प डालने के बाद दोनों हाथों को ऊपर उठाकर, श्रद्धा भक्ति पूर्वक ‘ओम घृणि सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप करते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान कर नमस्कार करना चाहिए।
संदर्भ 
https://bit.ly/3k7kcmi
https://bit.ly/3XkzAKr
https://bit.ly/3GX8GDa
चित्र संदर्भ
1. दाल खिचड़ी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सूर्य देव को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. बाबा गोरखनाथ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. माँ गंगा में डुबकी लगाकर लौट रहे हिंदू श्रद्धालु को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)   
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        