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                                              ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (National Crime Records Bureau (NCRB)  के, 2021 के गुमशुदा व्यक्तियों के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में लापता व्यक्तियों से संबंधित दर्ज मामलों की कुल संख्या 7566 थी, जबकि 2017 में अकेले हमारे शहर जौनपुर में लापता व्यक्तियों से संबंधित 86 नए पंजीकृत मामले थे। 
 इस तरह, राज्य के कुल गुमशुदा मामलों में जौनपुर में 1.2% मामले दर्ज किए गए थे। ‘गुमशुदा बच्चों पर सूचना के अधिकार अधिनियम’ के तहत पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में ‘राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’(State Crime Record Bureau(SCRB) ने बताया, कि उनके आंकड़ों के अनुसार, 2017 में उत्तर प्रदेश में हर हफ्ते औसतन 32 लड़कियों के लापता होने के मामले दर्ज कराए गए थे । बाल अधिकार कार्यकर्ताओं को डर था कि लापता लड़कियों में से ज्यादातर लड़कियों की तस्करी की गई हो सकती है। 
आंकड़ों के अनुसार, 2017 में राज्य के 75 जिलों के पुलिस थानों में लगभग 1,675 लड़कियों के लापता होने की सूचना मिली थी। वर्ष 2018 के पहले तीन महीनों में लगभग 435 लड़कियों के लापता होने की सूचना पुलिस को मिली थी। और तब भी यह संदेह था कि इनमें से कई बच्चों की तस्करी की गई हो सकती है। लेकिन वास्तव में उत्तर प्रदेश में गुमशुदा बच्चों के वास्तविक आंकड़े पुलिस की प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report (FIR) की पंजीकरण दर से कहीं अधिक है। यह स्थिति सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बावजूद भी बनी हुई है कि लापता बच्चों के मामलों में तत्काल एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और पुलिस थानों में कोई ढिलाई नहीं होनी चाहिए। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि, शायद कई मामलों में एफआईआर दर्ज ही नहीं होती। जब कोई युवा खुद कहीं चला जाता है या कहें कि गायब हो जाता है, तो शायद उसकी भी एफआईआर दर्ज नहीं होती। बहुत से मामलों में  तो लोग पुलिस से दूर रहना ही उचित समझते हैं । साथ ही अनाथ एवं निराधार लोगों के लापता होने की भी सूचना ही दर्ज नहीं की जाती है ।
लेकिन वास्तव में उत्तर प्रदेश में गुमशुदा बच्चों के वास्तविक आंकड़े पुलिस की प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report (FIR) की पंजीकरण दर से कहीं अधिक है। यह स्थिति सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बावजूद भी बनी हुई है कि लापता बच्चों के मामलों में तत्काल एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और पुलिस थानों में कोई ढिलाई नहीं होनी चाहिए। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि, शायद कई मामलों में एफआईआर दर्ज ही नहीं होती। जब कोई युवा खुद कहीं चला जाता है या कहें कि गायब हो जाता है, तो शायद उसकी भी एफआईआर दर्ज नहीं होती। बहुत से मामलों में  तो लोग पुलिस से दूर रहना ही उचित समझते हैं । साथ ही अनाथ एवं निराधार लोगों के लापता होने की भी सूचना ही दर्ज नहीं की जाती है ।
देश भर में लापता बच्चों, महिलाओं और पुरुषों के मामलों की संख्या में चौंकाने वाला रुझान देखा जा रहा है। भारत में हर घंटे औसतन 88  लोग, जिनमें बच्चे, महिलाएं और पुरुष सभी शामिल हैं, लापता हो रहे हैं। भारत में हर दिन औसतन 2,130 लोग लापता हो जाते हैं। वर्ष 2019 की तुलना में 2020 में लापता व्यक्तियों की संख्या में 34,295 की कमी आई थी; परंतु चौंकाने वाला तथ्य यह है कि 2020 में, जब भारत कोविड-19 महामारी से जूझ रहा था और सभी लोग लॉकडाउन के चलते अपने घरों में बंद थे, तब भी कुल 6,70,145 लापता व्यक्तियों के मामले सामने आए । जबकि 2019 में, पूरे भारत में 6,93,003 लापता व्यक्तियों के मामले सामने आए थे।
जो बात सबसे ज्यादा परेशान करने वाली है  वह यह है कि पूरे भारत में हर घंटे लापता होने वाले औसतन 88 लोगों में से करीब 12 बच्चे और हर दिन लापता होने वाले औसतन 2,130 लोगों में से 296 बच्चे होते हैं। और इसके साथ ही हर महीने भारत में लापता होने वाले 9,019 बच्चों की संख्या विचलित करने वाली है। ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’  के आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 में भारत में 1,19,617 बच्चे लापता हुए थे। लापता बच्चों की कुल संख्या में, 69.7% अर्थात 82617 युवा लड़कियां थीं, जोकि एक चौंकाने वाली संख्या हैं। कुल गुमशुदा बच्चों में लड़कों की संख्या 28.4% अर्थात  33,972 है; जबकि शेष 26 बच्चे विपरीत लिंगी थे। वही दूसरी ओर, भारत में हर घंटे लापता होने वाले पुरुषों एवं महिलाओं की  दर्ज संख्या क्रमशः 28 और 48 है । इसका मतलब हर दिन, पूरे भारत में औसतन 1,160 महिलाएं और 674 पुरुष लापता होते हैं। एनसीआरबी के आंकडे बताते हैं कि 2019 में भारत में 4,22,439 महिलाएं और 2,70,433 पुरुष लापता हुए थे। वही 121 विपरीत लिंगी लोग भी लापता हुए थे।
वही दूसरी ओर, भारत में हर घंटे लापता होने वाले पुरुषों एवं महिलाओं की  दर्ज संख्या क्रमशः 28 और 48 है । इसका मतलब हर दिन, पूरे भारत में औसतन 1,160 महिलाएं और 674 पुरुष लापता होते हैं। एनसीआरबी के आंकडे बताते हैं कि 2019 में भारत में 4,22,439 महिलाएं और 2,70,433 पुरुष लापता हुए थे। वही 121 विपरीत लिंगी लोग भी लापता हुए थे।
व्यक्तियों के लापता होने का एक प्राथमिक कारण अपहरण है, जो मानव तस्करी, यौन शोषण, जबरन विवाह और बाल श्रम जैसे विभिन्न कारणों से किए जाते हैं। 15 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लापता होने के पीछे एक और बड़ा कारण उनका खुद से गायब हो जाना है। युवाओं के खुद से गायब  होने के कारणों में परिवार द्वारा अपमानजनक व्यवहार और बेरोजगारी शामिल हैं। साथ ही बच्चों के जानबूझकर लापता होने के इन मामलों के अलावा, कुछ अनजाने कारण भी है, जैसे कि जब बच्चे भीड़-भाड़ वाली जगहों पर गुम हो जाते हैं। क्या आपको पता है कि हमारे राज्य में कुछ ऐसे जिले हैं जहां से काम के लिए बड़ी संख्या में बच्चों की तस्करी की जाती है। और यह तथ्य इस समस्या को और भी अधिक गंभीर  बनाता है।
एक अन्य गंभीर मुद्दा यह है कि अब तक इनमें से कितने गुमशुदा व्यक्तियों को ढूंढा या बचाया जा चुका है ? 2019 में, लापता हुई लड़कियों में से 59.8% लड़कियों और लापता हुए लड़कों में से 59% लड़कों का पता लगा लिया गया है। लेकिन, 2019 की रिपोर्ट के हिसाब से 40% से अधिक बच्चे अभी भी लापता हैं। 2019 में 52.8% लापता महिलाओं का पता लगाया गया। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि 53% से अधिक पुरुष और 47% से अधिक महिलाएं अभी भी लापता हैं । आज तक गुमशुदा रहे व्यक्तियों के ये आंकड़े, उन परिवारों के लिए महत्वपूर्ण है जिन्होंने अपने रिश्तेदारों को खो दिया है । भारत सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह देश में अपने लापता लोगों को खोजने में असमर्थता के कारणों का पता लगाए और साथ ही भारत में बच्चों, महिलाओं और पुरुषों के निरंतर लापता होने की संख्या की  वृद्धि को रोकने के लिए एक ठोस प्रणाली स्थापित करे।
आज तक गुमशुदा रहे व्यक्तियों के ये आंकड़े, उन परिवारों के लिए महत्वपूर्ण है जिन्होंने अपने रिश्तेदारों को खो दिया है । भारत सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह देश में अपने लापता लोगों को खोजने में असमर्थता के कारणों का पता लगाए और साथ ही भारत में बच्चों, महिलाओं और पुरुषों के निरंतर लापता होने की संख्या की  वृद्धि को रोकने के लिए एक ठोस प्रणाली स्थापित करे।
किसी का लापता हो जाना आम बात नही है। हमने भारत तथा उत्तर प्रदेश में लापता लोगों के बारे में कुछ चौंकाने वाले तथ्य देखे। इन आंकड़ों की बड़ी संख्या ही हमें चिंता करने पर मजबूर करती हैं। हालांकि, कुछ लोगों को बचाया भी जाता है, परंतु,  प्रत्येक बच्चा, महिला और पुरुष एक परिवार और हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण है। अतः हमारा उद्देश्य  सभी पीड़ितों को बचाने तथा इस समस्या की व्यापकता को कम करने का ही होना चाहिए।
 
 
संदर्भ 
shorturl.at/lpPS7 
shorturl.at/fKP69 
shorturl.at/BIQX4 
 
चित्र संदर्भ 
1. गुमशुदगी को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere) 
2. लापता बच्चे की छानबीन को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels) 
3. बाल मजदूरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia) 
4. एक लापता वृद्ध को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)   
 
                                         
                                         
                                         
                                        