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 गुजरात राज्य का टेक्सटाइल हब (Textile Hub) कहा जाने वाला सूरत शहर उ.प्र. के प्रवासियों का एक बड़ा केंद्र है। सूरत में काम करने वाले प्रवासी श्रमिकों की काम करने की कठिन परिस्थितियों का जायजा लेना अपने आप में ही एक बड़ी बात है। हाल ही में सूरत में जौनपुर के एक मजदूर की मौत ने इस विषय को सुर्खियों में ला दिया है।  सूरत में 40 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिक रहते हैं , जिनमें से अधिकांश निर्माण उद्योग में मजदूरी का काम करते हैं। इनमें से करीब आधे श्रमिक खुले स्थानों में निवास करने के लिए मजबूर है,  वो भी शौचालय और स्वच्छ पानी जैसी बुनियादी जरूरतों के अभाव में। सूरत में सड़क पर रहने वालों की संख्या विवादित है। 2019 में, सूरत नगर निगम ने "फुटपाथ पर रहने वालों" की कुल संख्या 36,000 से कुछ अधिक होने का अनुमान लगाया था।
महिला श्रमिकों की स्थिति सबसे ज्यादा खराब हैं। वे पुरुषों की तुलना में ज्यादा समय के लिए काम करती हैं । मजदूरी के साथ-साथ उन्हें घरेलू कार्य भी करने पड़ते हैं, जिसके कारण उन्हें अपनी नींद भी पूरी करने का समय नहीं मिलता है साथ ही बचत के लिए वे अपनी भूख जैसी शारीरिक जरूरतों से भी समझौता करती हैं। महिला श्रमिकों को पुरुषों की तुलना में वेतन भी कम मिलता है।उन्हें शौच के लिए सुबह बहुत जल्दी उठकर नदी तक लंबी दूरी तय करने के लिए मजबूर होना पड़ता है । कभी-कभी तो उन्हें यौन हिंसा का सामना भी करना पड़ता है। लॉकडाउन (lockdown) के बाद गांवों में कठिन आर्थिक परिस्थितियों के कारण जैसे ही मजदूर काम की तलाश में शहर लौटे, सूरत में सड़कों पर उन्हें नई चुनौतियाँ दिखाई दीं। गुजरात और राजस्थान के प्रवासियों के साथ काम करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था आजीविका ब्यूरो (Aajeevika Bureau) ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से सूरत में, मुख्य रूप से कुशलगढ़ और सज्जनगढ़ ब्लॉक से, आने वाली किशोर लड़कियों की संख्या में वृद्धि हुई है । इनमें से अधिकांश लड़कियां ऐसी हैं, जिन्होंने कभी अपने गांवों से बाहर कदम नहीं रखा था। महामारी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल और कॉलेज एक साल के लिए बंद कर दिए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप स्कूल छोड़ने वाले बच्चों और युवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। पढ़ाई  छूटने के कारण इन युवाओं ने काम के लिए शहरों की ओर रुख कर लिया।
लॉकडाउन (lockdown) के बाद गांवों में कठिन आर्थिक परिस्थितियों के कारण जैसे ही मजदूर काम की तलाश में शहर लौटे, सूरत में सड़कों पर उन्हें नई चुनौतियाँ दिखाई दीं। गुजरात और राजस्थान के प्रवासियों के साथ काम करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था आजीविका ब्यूरो (Aajeevika Bureau) ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से सूरत में, मुख्य रूप से कुशलगढ़ और सज्जनगढ़ ब्लॉक से, आने वाली किशोर लड़कियों की संख्या में वृद्धि हुई है । इनमें से अधिकांश लड़कियां ऐसी हैं, जिन्होंने कभी अपने गांवों से बाहर कदम नहीं रखा था। महामारी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल और कॉलेज एक साल के लिए बंद कर दिए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप स्कूल छोड़ने वाले बच्चों और युवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। पढ़ाई  छूटने के कारण इन युवाओं ने काम के लिए शहरों की ओर रुख कर लिया।
 श्रमिकों के लिए इससे भी अधिक विकट एक अन्य समस्या काम की कम उपलब्धता और अपर्याप्त वेतन  है। लॉकडाउन के दौरान निर्माण क्षेत्र सबसे गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों में से एक था। लॉकडाउन के बाद जैसे ही सूरत की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे खुली, अधिक संख्या में श्रमिकों के सूरत में पलायन करने के कारण प्रत्येक श्रमिक के लिए उपलब्ध कार्य दिवसों की संख्या कम हो गई। परिणाम स्वरूप उनके द्वारा अर्जित वेतन कम हो गया और भोजन और अन्य आवश्यकताओं पर अपनी आय के अनुपातिक रूप से अधिक खर्च करने के कारण ये श्रमिक बचत भी बहुत कम कर पाते हैं । इसका मतलब यह है कि वे गांवों में अपने परिवारों को ज्यादा पैसा नहीं भेज पाते हैं तथा  इनके परिवार भी आजीविका के अन्य साधनों के अभाव में कठिनाई पूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर होते हैं।  हालांकि सूरत नगर निगम द्वारा इन अप्रवासी श्रमिकों को आश्रय देने के लिए कुछ आश्रय घर बनाए गए हैं किंतु नगर निगम द्वारा बनाए गए ये  आश्रय घर शहर की बेघर लोगों की आबादी को समायोजित करने के लिए बहुत छोटे हैं। ये आश्रय घर शहरी ग़रीबों के लिए आवास से संबंधित सबसे बुनियादी प्रश्नों जैसे कि ये आश्रय स्थल कहाँ और विशेष रूप से किसके लिए बनाए जाने चाहिए, का समाधान करने में भी विफल रहे हैं।  उदाहरण के लिए, ये आश्रय घर भूमि की उपलब्धता के अनुसार श्रमिकों  के काम करने के स्थानों से दूर ऐसे स्थानों पर बनाए जाते हैं जहां पर इन श्रमिकों के लिए रहना मुश्किल होता है।
हालांकि सूरत नगर निगम द्वारा इन अप्रवासी श्रमिकों को आश्रय देने के लिए कुछ आश्रय घर बनाए गए हैं किंतु नगर निगम द्वारा बनाए गए ये  आश्रय घर शहर की बेघर लोगों की आबादी को समायोजित करने के लिए बहुत छोटे हैं। ये आश्रय घर शहरी ग़रीबों के लिए आवास से संबंधित सबसे बुनियादी प्रश्नों जैसे कि ये आश्रय स्थल कहाँ और विशेष रूप से किसके लिए बनाए जाने चाहिए, का समाधान करने में भी विफल रहे हैं।  उदाहरण के लिए, ये आश्रय घर भूमि की उपलब्धता के अनुसार श्रमिकों  के काम करने के स्थानों से दूर ऐसे स्थानों पर बनाए जाते हैं जहां पर इन श्रमिकों के लिए रहना मुश्किल होता है।
जबकि निर्माण श्रमिक सूरत के आबादी क्षेत्र में रहते हैं ताकि आने-जाने पर पैसे बचा सकें। यदि श्रमिक कार्य स्थलों से दूर रहते हैं तो ठेकेदार उनके लिए परिवहन की व्यवस्था तो कर देते हैं, लेकिन अक्सर उस राशि को श्रमिकों के वेतन से काट लेते हैं। अतः ये  श्रमिक  बचत के लिए या तो कार्य स्थलों के पास ही खुले में रहते हैं या फिर परिवहन के पैसे बचाने के लिए कई कई किलोमीटर दूर पैदल चलते हैं जिससे इन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। । परिणाम स्वरूप काम और मजदूरी की कमी के साथ-साथ, आश्रय  का अभाव हमेशा इन श्रमिकों को बेघर बनाए रखता है । हालांकि इन प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं को कुछ हद तक कम करने के लिए सूरत में एक प्रवासी सेल की स्थापना की गयी है जिसका प्राथमिक उद्देश्य सूरत शहर में प्रवासी श्रमिकों की गणना को सुगम बनाना और उनका पंजीकरण करके उन्हें उनके अधिकारिक सरकारी लाभों से जोड़ना है।
प्रवासी सेल का प्राथमिक उद्देश्य अपने साथी संगठनों के सहयोग से श्रमिकों के लिए पंजीकरण अभियान को सुविधाजनक बनाना है। सेल, श्रमिकों द्वारा प्रभावी पहुंच के लिए अपने भागीदारों के माध्यम से पंजीकरण शिविरों का आयोजन करता है। साथ ही प्रवासी डेटाबेस (Database) और डैशबोर्ड (Dashboard) को बनाए रखकर प्रवासियों की संख्या सुनिश्चित करता है ।
हालांकि इन प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं को कुछ हद तक कम करने के लिए सूरत में एक प्रवासी सेल की स्थापना की गयी है जिसका प्राथमिक उद्देश्य सूरत शहर में प्रवासी श्रमिकों की गणना को सुगम बनाना और उनका पंजीकरण करके उन्हें उनके अधिकारिक सरकारी लाभों से जोड़ना है।
प्रवासी सेल का प्राथमिक उद्देश्य अपने साथी संगठनों के सहयोग से श्रमिकों के लिए पंजीकरण अभियान को सुविधाजनक बनाना है। सेल, श्रमिकों द्वारा प्रभावी पहुंच के लिए अपने भागीदारों के माध्यम से पंजीकरण शिविरों का आयोजन करता है। साथ ही प्रवासी डेटाबेस (Database) और डैशबोर्ड (Dashboard) को बनाए रखकर प्रवासियों की संख्या सुनिश्चित करता है ।
संदर्भ:
https://bit.ly/3KFajHU
https://bit.ly/3SyzE8o
https://bit.ly/3SuaoQq
चित्र संदर्भ
1. टेक्सटाइल श्रमिकों को संदर्भित करता एक चित्रण (Depositphotos)
2. महिला टेक्सटाइल श्रमिकों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भोजन के लिए एकत्र महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (
wastematters.theoutsider)
4. कपड़ों को रंगते टेक्सटाइल श्रमिकों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
   
 
                                         
                                         
                                         
                                        