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 हिंदू धर्म, ताओवाद और बौद्ध धर्म में वर्णित चक्र प्रणाली की भांति ही इस्लाम धर्म में भी, हृदय के सूक्ष्म ऊर्जा केंद्रों के रूप में लतैफ-इ-सिट्टा का वर्णन मिलता है जो मनुष्य को वास्तविकता समझने में सहायता करते हैं ।   सूफी मनोविज्ञान में लतैफ-इ-सिट्टा का अर्थ मनोआध्यात्मिक “अंग” या, कभी-कभी, संवेदी और अतिसंवेदी धारणा के संकाय भी हैं। जिस तरह ग्रंथियां और अंग हमारे शरीर का हिस्सा हैं, उसी तरह इन्हें स्वयं(आत्मा) का हिस्सा माना जाता है। सूफी आध्यात्मिक मनोविज्ञान में, लतैफ-इ-सिट्टा अनुभव और कर्म के लिए सूक्ष्म मानव क्षमताओं में धारणा के विशेष अंग हैं। संदर्भ के आधार पर, लतैफ को अनुभव या क्रिया के अनुरूप गुणों के रूप में भी समझा जाता है। 
वस्तुतः अरबी शब्द लतैफ का अर्थ है “सूक्ष्मता” और वाक्यांश लतैफ-इ-सिट्टा का अर्थ है “छह सूक्ष्मताएं”। हालांकि, लतैफ की संख्या विशिष्ट सूफी परंपरा के आधार पर भिन्न हो सकती है। समझा जाता है कि सभी लतैफ मिलकर मानव के अंदर एक “सूक्ष्म शरीर” बनाते हैं, जिसे जिस्म लतैफ के नाम से जाना जाता है ।
हालांकि विभिन्न विचारधाराओं में मानव शरीर में मुख्य ऊर्जा केंद्रों की संख्या और उनके स्थान भिन्न हो सकते हैं, किंतु सभी विचारधाराएं इस बात से सहमत हैं कि सभी मनुष्यों के शरीर में ये लतैफ या चक्र या सूक्ष्मताएं विद्यमान हैं। एक बार सक्रिय होने के बाद, ये लतैफ मानवीय क्षमताओं को, जो आध्यात्मिक बोध को बुद्धि के स्तर से परे रखती हैं, बदलने में सक्षम हैं ।.png) सूफीवाद के अनुसार, एक इंसान के अंदर 10 मौलिक लतैफ होते हैं। इनमें से 5 लतैफ दिव्य सिंहासन के नीचे स्थित हैं, जो सृष्टि की दुनिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे है– खाक (पृथ्वी), मा’(जल), बद (वायु), नर (अग्नि), और नफ़्स (अहंकार या आत्मा)। जबकि अन्य 5 ईश्वरीय सिंहासन के ऊपर स्थित हैं, जो ईश्वर के आदेश की दुनिया का प्रतीक हैं। वे है– कल्ब (हृदय), रूह (आत्मा), सिर (गुप्त), खाफी (छिपा हुआ) और अखफा (सबसे छिपा हुआ)।
सूफीवाद के अनुसार, एक इंसान के अंदर 10 मौलिक लतैफ होते हैं। इनमें से 5 लतैफ दिव्य सिंहासन के नीचे स्थित हैं, जो सृष्टि की दुनिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे है– खाक (पृथ्वी), मा’(जल), बद (वायु), नर (अग्नि), और नफ़्स (अहंकार या आत्मा)। जबकि अन्य 5 ईश्वरीय सिंहासन के ऊपर स्थित हैं, जो ईश्वर के आदेश की दुनिया का प्रतीक हैं। वे है– कल्ब (हृदय), रूह (आत्मा), सिर (गुप्त), खाफी (छिपा हुआ) और अखफा (सबसे छिपा हुआ)।
दिल का लतैफ (कल्ब) भौतिक दुनिया और आध्यात्मिक दुनिया के बीच का दरवाजा है। भौतिक दुनिया वह जगह है जहाँ नफ़्स (अहंकार, निचला स्व) रहता है और आध्यात्मिक दुनिया वह है जहाँ रूह (आत्मा, उच्च स्व) निवास करती है।
सूफी शिक्षाओं के अनुसार, क़ल्ब का अर्थ आध्यात्मिक हृदय है, न कि भौतिक हृदय, जो आंतरिक संसार के दर्पण की तरह कार्य करता है। अर्थात्, जो मनुष्य बाहरी दुनिया मेंदेखता है , वह उसके आंतरिक ह्रदय में होने वाले भावों का प्रतिबिंब होता है । क़ल्ब के लतैफ का रंग पीला है। पीला सबसे चमकदार रंग है, जो ईश्वरीय चेतना और अनंत बुद्धिमत्ता का प्रतिनिधित्व करता है।
रूह मनुष्य की दिव्य प्रकृति है, अर्थात उच्च स्व या दिव्य आत्मा। सूफीवाद के अनुसार, रूह नफ़्स के साथ निरंतर संघर्ष करती रहती है ताकि क़ल्ब को चेतना के एक नए स्तर तक पहुंचने में मदद मिल सके। रूह का ग्रह मंगल है क्योंकि यह नफ़्स के खिलाफ प्रयास, संघर्ष और युद्ध का प्रतिनिधित्व करता है। रूह के लतैफ का रंग लाल होता है जो अग्नि का प्रतीक है। रूह की रोशनी से आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है, विचारों से मुक्ति मिलती है, व्यक्तित्व का परिवर्तन होता है और आध्यात्मिक एकाग्रता बढ़ती है। सिर का अनुवाद ‘गुप्त’, ‘रहस्य’ और ‘छिपा हुआ’ के रूप में किया जाता है। कुछ सूफीवाद परंपराओं में, इस स्तर को “सिर–ए–सिर” भी कहा जाता है। सिर के लतैफ प्राणियों की छिपी हुई रहस्यमय चेतना या आत्मा की गहराई का प्रतिनिधित्व करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में, चंद्रमा मनुष्य के अवचेतन, स्वप्न और छिपी हुई प्रकृति का प्रतीक है, जो इन सूक्ष्मताओं पर शासन करता है। इसका रंग सफेद है क्योंकि यह चेतना की शुद्धता को इंगित करता है, जहां भगवान अपनी जादुई शक्ति को स्वयं प्रकट करते हैं। सूफी शिक्षाओं के अनुसार, सिर सभी बुरी विशेषताओं और सांसारिक इच्छाओं के त्याग का क्षेत्र है ।
सिर का अनुवाद ‘गुप्त’, ‘रहस्य’ और ‘छिपा हुआ’ के रूप में किया जाता है। कुछ सूफीवाद परंपराओं में, इस स्तर को “सिर–ए–सिर” भी कहा जाता है। सिर के लतैफ प्राणियों की छिपी हुई रहस्यमय चेतना या आत्मा की गहराई का प्रतिनिधित्व करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में, चंद्रमा मनुष्य के अवचेतन, स्वप्न और छिपी हुई प्रकृति का प्रतीक है, जो इन सूक्ष्मताओं पर शासन करता है। इसका रंग सफेद है क्योंकि यह चेतना की शुद्धता को इंगित करता है, जहां भगवान अपनी जादुई शक्ति को स्वयं प्रकट करते हैं। सूफी शिक्षाओं के अनुसार, सिर सभी बुरी विशेषताओं और सांसारिक इच्छाओं के त्याग का क्षेत्र है । 
खफी का लतैफ शांति, अंतर्ज्ञान और स्थिरता की स्थिति को प्रेरित करता है जिसका कार्य भगवान की भव्यता को समझना है। इस अवस्था में, मनुष्य अत्यधिक तीव्रता से ईश्वर से भरपूर प्रेम प्राप्त करता है ।
इस्लाम परंपरा में, हरा रंग एक ऐसी वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करता है, जहां मनुष्य दिव्य दुनिया को महसूस करने में सक्षम होता है ।  खफी का रंग हरा है क्योंकि यह नवीनीकरण, संतुलन और पुनर्जन्म का प्रतिनिधित्व करता है।
पांचवे लतैफ “अखफा” का अर्थ है “सबसे अस्पष्ट”, “जटिल” और “रहस्यमय”। यह वह अवस्था है जब मनुष्य वास्तव में परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करता है और उसे देखने में सक्षम होता है । इसके लतैफ का रंग काला है क्योंकि यह ऐसा रंग है जो इस पर प्रक्षेपित प्रकाश को प्रतिबिंबित करता है। काले रंग के माध्यम से यह प्रकाश सब कुछ परिलक्षित करता है क्योंकि उसमें स्वयं कोई गुण नहीं है। सूफीवाद में काला रंग “ज्ञान” और “समझ” का प्रतीक है।
 
 
संदर्भ 
https://bit.ly/3kEedWO 
https://bit.ly/3J49BTl 
https://bit.ly/3IJB4Iq 
 
चित्र संदर्भ 
1.नासिर अल-मुल्क मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
2. लतैफ-इ-सिट्टा रंगों को दर्शाता एक चित्रण (prarang, Creazilla) 
3. भीतर से नासिर अल-मुल्क मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)   
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        