जौनपुर के गौरी शंकर धाम में, समग्रता की प्रतिमा, अर्धनारीश्वर रूप के दिव्य दर्शन

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
22-05-2023 09:23 AM
Post Viewership from Post Date to 23- Jun-2023 31st
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
4126 692 0 4818
* Please see metrics definition on bottom of this page.
जौनपुर के गौरी शंकर धाम में, समग्रता की प्रतिमा, अर्धनारीश्वर रूप के दिव्य दर्शन

सनातन धर्म में ईश्वर के समक्ष नर और नारी के बीच कोई भी भेद नजर नहीं आता है। श्री हरि (भगवान विष्णु) ने पुरुष के रूप में कई लीलाएं रची, किंतु साथ ही वे मोहिनी रूप में नारी भी बने! वहीं भगवान शिव ने भी अपने एक अवतार में नारी स्वरूप धरा था, जिसे अर्धनारीश्वर कहा गया। माँ पार्वती एवं भगवान शिव के इस सुंदर स्वरूप के दर्शन आप हमारे जौनपुर के गौरी शंकर धाम में भी कर सकते हैं।
अर्धनारीश्वर, भगवान् शिव का एक अनूठा रूप है, जो उनकी पत्नी पार्वती के साथ संयुक्त रूप से जुड़ा हुआ है। शिव के इस रूप को आधे पुरुष और आधी महिला के रूप में दर्शाया गया है। दाहिना आधा शरीर भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता है और बायीं तरफ का आधा शरीर, माता पार्वती का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्वरूप ब्रह्मांड में पुरुष और स्त्री ऊर्जा के, संलयन का प्रतीक माना जाता है। अर्धनारीश्वर का सबसे पहला चित्रण कुषाण काल के दौरान, पहली शताब्दी ईस्वी पूर्व की एक प्रतिमा में मिलता है। आज अर्धनारीश्वर रूप को भारत भर के कई शिव मंदिरों में देखा जा सकता है। अर्धनारीश्वर का अर्थ "भगवान जो आधी स्त्री हैं" होता है। इसे अन्य नामों जैसे (अर्धनारनारी, अर्धनारिशा और अर्धनारीनटेश्वर) से भी जाना जाता है। अर्धनारीश्वर की अवधारणा विभिन्न स्रोतों से प्रभावित थी, जिनमें वैदिक साहित्य, ग्रीक पौराणिक कथाएं और अलौकिक मिथक शामिल हैं। यह स्वरूप पुरुष (मर्दाना) और प्रकृति (स्त्रीलिंग) की ऊर्जा के मिलन का प्रतिनिधित्व करता है और इसे सम्पूर्ण सृष्टि का स्रोत माना जाता है।
यह ब्रह्मांड में विरोधों की एकता को दर्शाता है। अर्धनारीश्वर का दाहिना आधा पुरुष भाग, पुरुष सिद्धांत और ब्रह्मांड की निष्क्रिय शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि बायीं तरफ का आधा महिला भाग, सक्रिय शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। सनातन धर्म में, इन दो हिस्सों के मिलन से ब्रह्मांड उत्पन्न होता है, जैसे शिव के लिंग और देवी की योनि से ब्रह्मांड का निर्माण होता है। अर्धनारीश्वर वासना के तत्व का भी प्रतिनिधित्व करते हैं, जो सृष्टि के सृजन की ओर ले जाता है। अर्धनारीश्वर रूप द्वैत से परे समग्रता, भगवान में पुरुष और महिला की द्वि-एकता, एवं सर्वोच्च होने के अद्वैत का भी प्रतीक है। यह रूप जीवन के आध्यात्मिक और भौतिकवादी मान्यताओं को समेटता है,और पार्वती में प्रकट शिव और उनकी शक्ति की अन्योन्याश्रितता पर जोर देता है।
अर्धनारीश्वर रूप दर्शाता हैं कि शिव और शक्ति दोनों एक ही हैं। यह विभिन्न संस्कृतियों में प्रजनन क्षमता और विकास से भी जुड़ा है। यह आकृति, प्रकृति की शाश्वत प्रजनन शक्ति और सांसारिक इच्छाओं से ऊपर उठकर स्त्री और पुरुष की एकता का प्रतिनिधित्व करती है। अर्धनारीश्वर रूप में, दाहिना हिस्सा आमतौर पर पुरुष होता है और आधा बायां हिस्सा महिला का होता है। दिल से जुड़ा बायां हिस्सा अंतर्ज्ञान और रचनात्मकता जैसी स्त्रैण विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि मस्तिष्क से जुड़ा दाहिना हिस्सा तर्क और वीरता जैसे मर्दाना गुणों का प्रतिनिधित्व करता है।
अर्धनारीश्वर की अनूठी अवधारणा, प्रकृति में पाए जाने वाले द्वैत का प्रतिनिधित्व करती है, जहां दो परिस्थितियां एक ही समय में अलग-अलग और एक-दूसरे के भीतर मौजूद होती हैं। अर्धनारी स्वरूप श्री गणेश एवं श्री हरी विष्णु में भी परिलक्षित होता है। 11 वीं शताब्दी के आसपास के हलायुध स्तोत्र में अर्धनारी रूप में गणेश का उल्लेख मिलता है। साथ ही, गोरेगांव, रायगढ़ (महाराष्ट्र) के एक मंदिर में बारह भुजाओं वाली अर्ध-नारी गणेश की एक दुर्लभ मूर्ति भी रखी गई है। अर्धनारी को अक्सर शास्त्रीय नृत्य और कला में भी चित्रित किया जाता है, जिसमें नर्तक, एक साथ मर्दाना और स्त्री दोनों का प्रतीकात्मक प्रदर्शन करते हैं। अर्धनारीश्वर को विभिन्न मुद्राओं में चित्रित किया जा सकता है, और अक्सर उन्हें कमल के आसन पर खड़ा दिखाया जाता है। अर्धनारीश्वर के रूपांतर भी मिलते हैं, जिसमें आठ भुजाओं वाला रूप भी शामिल है, जहां देवता विभिन्न वस्तुओं जैसे वीणा, पुस्तक या दर्पण को धारण किए रहते हैं।
अर्धनारीश्वर रूप एक पूर्ण संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ वे एक दूसरे पर निर्भर करते हैं, एक दूसरे को आत्मसात करते हैं, और फिर भी अपनी व्यक्तिगत पहचान बनाए रखते हैं। यहां भगवान शिव स्थिरता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि शक्ति, गतिशीलता और रचनात्मकता का प्रतिनिधित्व करती हैं।
अर्धनारीश्वर का वर्णन महाभारत और पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में पाया जा सकता है। एक किंवदंती के अनुसार माता पार्वती ने हमेशा भगवान शिव के साथ रहने की इच्छा प्रकट की जिसके बाद अर्धनारीश्वर में उनका विलय हो गया। एक अन्य किंवदंती अर्धनारीश्वर को सृष्टि के सृजन की प्रक्रिया से जोड़ती है। आपको भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप के दर्शन हेतु बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। इस रूप के दर्शन करने के लिए आप जौनपुर के ही गौरी शंकर धाम सुजानगंज, जिसे गौरीशंकर धाम के नाम से भी जाना जाता है, में जा सकते हैं। यह जिले के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह मंदिर, चौदहवीं शताब्दी पुराना है, एवं ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यहां एक शिवलिंग में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप, देखने को मिलता है। समय के साथ, गौरी शंकर धाम ने अपार प्रसिद्धि प्राप्त की है, और यहां पर दूर-दूर से भक्त भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं। साथ ही यहां गंगा नदी से पवित्र जल लाने वाले कांवरियों की संख्या भी पिछले पच्चीस वर्षों से लगातार बढ़ रही है। इस क्षेत्र में एक प्रचलित मान्यता है कि मंदिर के पांच किलोमीटर के दायरे (इसकी घंटी की आवाज से चिह्नित) के भीतर कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आएगी।

संदर्भ
https://bit.ly/3ooerD9
https://bit.ly/3Mm0lKK
https://bit.ly/3oa22Ty

 चित्र संदर्भ
1. गौरी शंकर धाम जौनपुर को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
2. अर्धनारीश्वर के रूप में एक अभिनेता को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. अर्धनारीश्वर के रूप में श्री कृष्ण को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. अर्धनारीश्वर का एक प्रारंभिक अवशेष, राजघाट में खोजा गया, जो अब मथुरा संग्रहालय में है, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. अपने-अपने वाहनों के साथ बैठे अर्धनारीश्वर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)