लंकापति रावण की संगीतमय विरासत,जो आज भी राजस्थान की गलियों में गूँजती है!

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
28-05-2023 07:56 AM
Post Viewership from Post Date to 28- Jun-2023 31st
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
2311 613 0 2924
* Please see metrics definition on bottom of this page.
लंकापति रावण में बुराइयों के साथ कुछ अद्वितीय हुनर भी थे! रावण के बारे में यह माना जाता था कि वह संगीत का इतना बड़ा ज्ञाता था कि उसके द्वारा विरचित शिव तांडव स्त्रोत सुनकर स्वयं भगवान शिव भी प्रभावित हो गए थे! आपको जानकर हैरानी होगी कि संगीत के क्षेत्र में लंकेश की सुरीली विरासत आज भी राजस्थान की प्राचीन गलियों में गूंजती है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं “रावण हत्था” नामक एक अनोखे वाद्य यंत्र की! पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण हत्था की रचना लंकापति रावण द्वारा ही की गई थी।सारंगी और वायलिन (violin) दोनों के गुणों को आत्मसात करता, रावण हत्था सबसे पुराने ज्ञात वाद्य यंत्रों में से एक है, जिसका इतिहास, कई सदियों पुराना माना जाता है। और सदियों से ही यह यन्त्र अपने स्वर और धुनों से, सुनने और सुनाने वाले में एक मनोरम भावनात्मक अनुभव उत्पन्न कर, हमारी धार्मिक और कलात्मक संस्कृति का हिस्सा बना हुआ है। अब अगर इसकी भौतिक विशेषताओं की बात की जाए, तो शुरू में इसे बांस के गुंजायमान यंत्र, घोड़े के बालों के तार, और एक नारियल के गोले का उपयोग करके बनाया गया था। गुज़रते समय के साथ, रावण हत्था राजस्थान की लोक और शास्त्रीय संगीत परंपराओं का एक अभिन्न अंग बन गया, जो मांगणियार और लंघा समुदायों से निकट रूप से जुड़ा हुआ था। रावणहत्था का राजस्थानी संस्कृति में अत्यधिक सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक मूल्य है। मोर या कछुए के आकार काइसका गुंजायमान यंत्र, प्रकृति के साथ सद्भाव का प्रतिनिधित्व करता है। घोड़े के बाल के तार ताकत और धीरज का प्रतीक हैं, जबकि नारियल के गोले का साउंडबोर्ड (soundboard) शरीर, मन और आत्मा के मिलन या योग को दर्शाता है। ऊपर दिए गए वीडियो में आप रावण हत्था की मोहक धुनों और जीवंत संगीत का अनुभव कर सकते हैं।