पवन पुत्र हनुमान, भारतीय पहलवानों की प्रेरणा रहे हैं। कुश्ती शुरू करने से पहले बजरंग बली की पूजा अवश्य की जाती है। एक किवदंती के अनुसार एक बार रावण के भाई, अहिरावण द्वारा प्रभु श्री राम और लक्ष्मण का अपहरण कर लिया गया, और वह उन्हें पाताल लोक की एक गुप्त गुफा में ले गया। यह सूचना मिलते ही हनुमान जी तुरंत उनकी रक्षा के लिए दौड़ पड़े। लेकिन गुफा के प्रवेश द्वार पर, हनुमान जी की भेंट मकरध्वज नाम के एक बच्चे से हो गई, जिसका चेहरा बंदर का और शरीर मगरमच्छ का था। हनुमान जी को देखते ही मकरध्वज ने उन्हें तुरंत युद्ध के लिए ललकारा, और इस युद्ध में हनुमान जी जीत गए। अहिरावण के चंगुल से प्रभु श्री राम तथा लक्ष्मण को बचाने के बाद, हनुमान जी ने मकरध्वज के माता-पिता से मिलने की इच्छा जताई। इसके बाद मकरध्वज ने हनुमान जी को बताया कि उनके पिता का नाम हनुमान था। यह सुनते ही हनुमान जी आश्चर्यचकित हो गए, क्योंकि उनका तो विवाह ही नहीं हुआ था, फिर संतानों का प्रश्न कैसे उठता । मकरध्वज ने बताया कि जब हनुमान जी लंका से उड़ते हुए वापस लौट रहे थे, तो उनके पसीने की एक बूंद समुद्र में गिर गई, और एक मगरमच्छ ने इसे निगल लिया, उसी मगरमच्छ से मकरध्वज का जन्म हुआ।
आगे चलकर मकरध्वज और हनुमान के बीच की यह कुश्ती, एक पौराणिक कहानी बन गई, और कई पहलवान उनके भक्त बन गए। कुश्ती का मैदान यानी अखाड़ा, वाराणसी की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रहे हैं। इस शहर के मध्य में स्थित तुलसी अखाड़ा काफी प्रसिद्ध है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसे स्वयं गोस्वामी तुलसीदास ने स्थापित किया था। आधुनिक कुश्ती, मुगल और फारसी कुश्ती परंपराओं के साथ-साथ, रामायण और महाभारत में उल्लिखित मल्ल युद्ध जैसी प्राचीन भारतीय कुश्ती शैलियों से प्रभावित रही है। 14वीं शताब्दी में "मल्ल पुराण" नामक ग्रंथ लिखा गया, जो आगे चलकर पहलवानों के लिए एक नियमावली बन गई। यह एक पहलवान को उसके शरीर, आहार और तंदरुस्ती के संबंध में मार्गदर्शन प्रदान करती है। मुग़ल भी अपने साथ अपनी कुश्ती शैलियों को मध्य एशिया से भारत लेकर आए थे। अकबर के शासनकाल के दौरान, मध्य एशियाई और भारतीय कुश्ती शैलियों का विलय हो गया।
आज भारत ने दुनिया को कई प्रसिद्ध कुश्ती विजेता दिए हैं, जिनमें गुलाम मुहम्मद भी शामिल हैं, जिन्हें 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ग्रेट गामा (Great Gama) के नाम से जाना जाता था। उनका व्यायाम और आहार दोनों खूब चर्चा में रहे। ग्रेट गामा के साथ ही भारत के दारा सिंह और साक्षी मलिक की पहलवानी भी खूब सराही गई, साक्षी भारत के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाली, पहली महिला पहलवान बनीं।
हालांकि आज इन पहलवानों की अपार सफलता के बावजूद, वाराणसी और भारत के अन्य हिस्सों में युवाओं के बीच अखाड़ों की लोकप्रियता हर दिन कम हो रही है। पारंपरिक कुश्ती के अखाड़ों को आधुनिक जिमों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है। भारत के कई अखाड़े बंद हो गए हैं। एक समय में अकेले वाराणसी में 50 से अधिक अखाड़े हुआ करते थे, लेकिन अब कुछ गिने चुने ही बचे हैं। इन्ही चुनिंदा अखाड़ों में से एक दिल्ली का हनुमान अखाड़ा भी है, जिसकी झलक आप ऊपर दिए गए विडियो में देख सकते हैं। इस अखाड़े के पहलवान कीचड़ में सतत प्रशिक्षण लेते हैं, और ओलंपिक में भाग लेने का सपना देखते हैं।