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भूवैज्ञानिक कालखंड में सिलुरियन काल(Silurian Period), पैलियोज़ोइक युग(Palaeozoic era) की तीसरी अवधि है। इसकी शुरुआत 443.8 मिलियन वर्षों पहले हुई, और यह 419.2 मिलियन वर्ष पहले समाप्त हुआ। इस अवधि के दौरान, महाद्वीपों के वर्तमान ऊंचे क्षेत्र समतल थे, और समुद्र का स्तर बढ़ रहा था। सिलुरियन काल भूमि पर व्यापक गैर-सूक्ष्म जीवन का साक्षी भी है। इसी सिलुरियन काल को ‘स्पीति और कश्मीर की सिलुरियन प्रणाली’ के रूप में भी जाना जाता है।
सिलुरियन काल से संबंधित सिलिसियस चूना पत्थर(Siliceous limestones) ऑर्डोविशियन चट्टानों(Ordovician rocks) के ऊपर पाए जाते हैं। ये चूना पत्थर सफेद क्वार्टजाइट(Quartzite) से ढके होते हैं, और इसे मुथ क्वार्टजाइट(Muth quartzite) के रूप में जाना जाता है।सिलुरियन चट्टानें, जिनमें विशिष्ट सिलुरियन जीवों के जीवाश्म भी होते हैं, कश्मीर के विही जिले में भी पाए जाते हैं। अतः आइए,आज सिलुरियन काल के इतिहास के बारे में जानें, और समझें कि, सिलुरियन काल के दौरान हमारी पृथ्वी में क्या परिवर्तन हुए। साथ ही, जानें कि, इसका पर्यावरण और जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है।
‘सिलुरियन’, यह नाम वेल्श जनजाति(Welsh tribe), यानि कि, सिलुरेस(Silures) के नाम पर रखा गया था। यह जनजाति उस क्षेत्र में रहती थी, जहां रॉडरिक इम्पे मर्चिसन(Roderick Impey Murchison) ने पहली बार इस युग की चट्टानों का वर्णन किया था। मर्चिसन ने 1830 के दशक में, पश्चिमी वेल्स के जटिल भूविज्ञान का अध्ययन और सिलुरियन स्तर में मौजूद प्रचुर जीवाश्मों का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण किया था।
सिलुरियन काल के दौरान पृथ्वी में काफी परिवर्तन हुए, जिसका पर्यावरण और जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इस समय के दौरान पृथ्वी के वायुमंडल में, एक प्रभावी ओजोन(Ozone) सांद्रता विकसित हुई। इससे जलवायु स्थिर हो गई, और जलवायु संबंधी अनियमित उतार-चढ़ाव का स्वरुप समाप्त हो गया।इससे, हिमनद पिघलने लगे और वैश्विक समुद्र स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
सिलुरियन काल के दौरान संभवतः सबसे उल्लेखनीय जैविक घटना, मछली का विकास और उनमें विभिन्नता का प्रकट होना थी। यह समयावधि न केवल बिना जबड़े वाली मछलियों के व्यापक और तेजी से प्रसार को चिह्नित करती है, बल्कि, मीठे पानी की पहली ज्ञात मछली और जबड़े वाली पहली मछलियों की उपस्थिति को भी दर्शाती है।
इसी समय के दौरान, प्रवाल भित्तियों का भी विकास हुआ। इसके अलावा, महासागरों में क्रिनोइड्स(Crinoids) का व्यापक विकिरण तथा ब्राचिओपोड्स (Brachiopods) का प्रसार और विस्तार भी हुआ। सिलुरियन रिकॉर्ड में आमतौर पर पाए जाने वाले अन्य समुद्री जीवाश्मों में – ट्रिलोबाइट्स(trilobites), ग्रेप्टोलाइट्स(graptolites), कोनोडोन्ट्स(conodonts), प्रवाल, स्ट्रोमेटोपोरोइड्स(stromatoporoids) और मोलस्क(Mollusks) शामिल हैं।
साथ ही, सिलुरियन काल में ही भूमि पर जीवन का पहला अच्छा सबूत संरक्षित है; उदाहरण के लिए, मकड़ियों और सेंटीपीड(Centipedes)से मिलते–जुलते कीट और संवहनी पौधों(जो अपने विकास के बाद से, स्थलीय पारिस्थितिकी का आधार रहे हैं) के सबसे पुराने जीवाश्म के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। सिल्यूरियन चट्टानों ने संभावित एस्कोमाइसीट(Ascomycete) जीवाश्म (कवक का एक समूह) और पहले अरचिन्ड(Arachnids) और सेंटीपीड के अवशेष भी प्रदान किए हैं।
क्या आप जानते हैं कि, मेंडिप(Mendip), इंग्लैंड(England) मैं मौजूद सिलुरियन चट्टानों को कोलब्रुकडेल संरचना(Coalbrookdale Formation) के रूप में जाना जाता है? इन चट्टानों में विखंडनीय मडस्टोन(Mudstone)या ‘वेनलॉक शेल्स’(Wenlock Shales) का एक क्रम शामिल है, जो टफ्स(Tuffs), एग्लोमेरेट्स(Agglomerates) और एंडेसाइट लावा(Andesite lava) प्रवाह के द्रव्यमान या परतों द्वारा लगभग 600 मीटर मोटी परत से ढका हुआ है। सिलुरियन काल में ज्वालामुखीय चट्टानें दुर्लभ हैं, और, मेंडिप उन कुछ स्थानों में से एक है, जहां उन्हें देखा जा सकता है।
आइए, इन चट्टानों के बारे में विस्तार से जानते हैं:
वेनलॉक शेल्स:
इन सिल्टस्टोन(Siltstones) और विखंडनीय मडस्टोन में ब्राचिओपोड्स के अवशेष शामिल हैं, जो सिलुरियन के निचले वेनलॉक चट्टानों के साथ संबंध का सुझाव देते हैं।वेल्श सीमा क्षेत्र में, वेनलॉक-युग के तलछटों में पाए जाने वाले ब्राचिओपोड जीवाश्म,गहरे से उथले समुद्री संरचना तक विभिन्न प्राचीन वातावरणों की विशेषता रखते हैं।
टफ:
ज्वालामुखीय राख जो चट्टान के रूप में एकत्रित हो जाती है, उसे ‘टफ’ कहा जाता है। मेंडिप में, टफ आमतौर पर भूरे और भूरे-हरे रंग के होते हैं। साथ ही, वे महीन दानों से लेकर मोटे-बनावट (25 मिलीमीटर व्यास) वाले दानों तक हो सकते हैं।यहां की चट्टानों के कुछ स्तरों में पाए जाने वाले टफ्स पानी में जमा होने का सबूत भी देते हैं।
एंडेसाइट:
एंडेसाइट एक प्रकार का लावा है। आज, यह लावा महाद्वीपीय सीमाओं पर स्थित ज्वालामुखियों से निकलता है। मेंडिप के सिलुरियन चट्टानों के लिए,इसके समान संरचना का अनुमान लगाया जा सकता है। लावा प्रवाहित होने के कारण, गर्म गैसों के निकलने से बनी गुहाएं, बाद में खनिज अवक्षेपण, विशेष रूप से कैल्साइट(Calcite) के स्थल बन गई।
एग्लोमरेट और वेंट एग्लोमरेट:
एग्लोमरेट एक महीन लावा के टुकड़ों (व्यास में 20 मिलीमीटर से बड़े) से बनी चट्टान है, जो ज्वालामुखी विस्फोट से बनती है। मेंडिप में, विस्फोट आम तौर पर 150 मिमी तक होते हैं, और कभी-कभी 200 मिमी व्यास तक होते हैं।इसका मध्य भाग आम तौर पर भूरे या थोड़ा बैंगनी रंग का होता है।
मेंडिप चट्टानों के ऊपरी भाग में एग्लोमरेट के कम से कम तीन समूह पाए जाते हैं, और इनमें से एक की व्याख्या ‘वेंट एग्लोमरेट(Vent Agglomerate)’ के रूप में की गई है, जिसके माध्यम से लावा का विस्फोट हुआ था। वेंट एग्लोमेरेट्स आम तौर पर ज्वालामुखीय छिद्रों और दरारों को भर देते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yfa7hhh8
https://tinyurl.com/4swvh456
https://tinyurl.com/yvjvdw2a
चित्र संदर्भ
1. सिलुरियन काल की चट्टानों व समुद्री जीवन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ऑर्डोविशियन चट्टान के टुकड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. युन्नान के सिलुरियन से स्पारालेपिस टिंगी और अन्य जीवों के जीवन पुनर्स्थापन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. सिलुरियन (प्रिडोली) चूना पत्थर में क्रिनोइड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. वेनलॉक शेल्स को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. टफ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. एंडेसाइट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. एग्लोमरेट और वेंट एग्लोमरेट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)